टूटने की कगार पर पहुँच रहें हैं पृथ्वी के पर्यावरण औ
र पारि तंत्र प्रणालियाँ
र पारि तंत्र प्रणालियाँ
Environment is at tipping point , warns UN report/TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,NEW DELHI,JUNE 8 ,2012,P19
हमारी पृथ्वी के पारिस्थितिकी पर्यावरण तंत्र अपनी जैव भौतिक सीमा का स्पर्श करने लगें हैं .यदि दोहन और शोषण इन पारितंत्रों का यूं ही ज़ारी रहा पोषण को यूं ही नजर अंदाज़ किया जाता रहा तो ऐसे अ -परिवर्त्य बदलाव इन तंत्रों में होंगें जो हमें तबाही की देहलीज़ तक ले जायेंगे .
यह दुश्चिंता संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने अपनी सद्य प्रकाशित ५२५ पृष्ठों वाली हालिया रपट में ज़ाहिर की है .
पृथ्वी की सेहत को आज सौ जोखिम मुह बाए खड़ें हैं उनमे से यहाँ इस रिपोर्ट में कुछ का ही ज़िक्र किया गया है .
एक तरफ इस रिपोर्ट में बे -तहाशा पिघलती ध्रुवीय हिम चादरों ,हिम शिखरों का ज़िक्र है दूसरी तरफ ,अफ्रिका में विस्तार पाते फैलते हुए रेगिस्तानों का भी उल्लेख किया गया है .
उष्ण कटिबंधी जंगलात के सफाए को भी रिपोर्ट में स्थान मिला है .रसायनों के निरंतर बढ़ते इस्तेमाल पर भी चिंता जतलाई गई है .
ये सब मिलाकर एक पर्यावरणी तबाही की वजह बन सकते हैं .
मानव जनित बढ़ते दवाब के साथ साथ अब कितनी ही एक दम से क्रांतिक एवं महत्वपूर्ण आलमी .,स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर की पर्यावरण पारितंत्र प्रणालियाँ दोहन की सीमा का स्पर्श करने लगीं हैं इसके आगे बस तबाही ही तबाही है .पर्यावरणी अप्रत्याशित विनाश ही विनाश है .
इसके आगे अब बस पृथ्वी पर जीवन को ही खतरे में डालने वाले अ -परिवर्त्य परिवरतन होना ही शेष है .कितनी ही प्रणालियों के अधिकतम दोहन की ऊपरी सीमा का पहले ही अति क्रमण हो चुका है .
समुन्दरों की सतह का जल स्तर ऐसे बदलावों के साथ बे -तहाशा बढ़ सकता है .बाढ़ों और सूखे की विनाश लीला गंभीर रुख लेकर बारहा अपना तांडव दिखला सकती है .इन आपदाओं की आवृत्ति बढ़ सकती है .
मतस्य उद्योग ,मत्स्य क्षेत्र चौपट हो सकता है .
रिपोर्ट गत तीन सालों के आकलन पर आधारित है जिसमे ३०० रिसर्चरों ने शिरकत की है .
तबाही के आलम और भी बयान किये गए हैं
(१)रीढ़ वाले कशेरुकीय प्राणियों की २०%प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर हैं .
(२)१९८० के बाद से अब तक कोरल रीफ्स (प्रवाल ,मूंगा चट्टानों में ३८% गिरावट दर्ज़ की जा चुकी है .
(३)आइन्दा पचास बरसों में ग्रीन हाउस गैसों की राशि बढ़के दोगुना हो सकती है .
(4)Aquatic environments से उठाए गए जल और मछलियों के ९० फीसद नमूने नाशी जीवों (pesticides ) से सने हुए मिले हैं .
नब्बे से ज्यादा लक्ष्य रखे गए थे पर्यावरण की सेहत के
गत पांच बरसों में इनमे से एक तिहाई पर कोई उल्लेखनीय काम नहीं हो पाया है .रिपोर्ट इस तथ्य का साफ़ खुलासा करती है .
"This is an indictment ," UNEP Executive director Achim Steiner said at a news conference in Rio De Janeiro.
"We live in an age of irresponsibility that is also testified in this report .
12 टिप्पणियां:
प्रलय के दिन नजदीक आ रहे हैं ... ऐसा प्रतीत हो रहा है ...
राम राम जी ...
इसके निष्कर्ष घातक होंगे..
विकट समस्या है...
सर फिर भी मानव सुधरने का नाम नहीं ले रहा है। सबसे बड़ी विडम्बना तो ये है. बाकी आपका लेख आंखे खोलने वाला है।
आदमी यही सोचकर अपनी धुन में चला जा रहा है कि हम न जाने ऐसी कितनी रिपोर्टें पढ़ चुके!
विकट समस्या है,,,,, ,
MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,
अपने विनाश को स्वयं आमंत्रित कर रहे हैं हम.....
सच मे कित्ना गैर ज़िम्मेदाराना रवैया है हमारा ....
बस आंख बंद कर के ही समस्या सुलझा ली है ....
बहुत बढ़िया खुलासा ...
सादर ,
शुभकामनायें.
विकट समस्या .... विनाश को स्वयं आमंत्रित कर रहे हैं हम. मानव फिर भी सुधरने का नाम नहीं ले रहा है। सबसे बड़ी विडम्बना है..
विकट समस्या है...
Ram-Ram ji
हम सब को अब जागना ही होगा
सचेत करता दस्तावेजी आलेख....
सादर.
smasya to bahut badhi hai par kya kare
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