शुक्रवार, 8 जून 2012

जादू समुद्री खरपतवार क़ा


शुक्रवार, 8 जून 2012

जादू समुद्री खरपतवार क़ा


जादू समुद्री खरपतवार  क़ा 


समुद्री खरपतवार (शैवाल ) कार्बन उत्सर्जन स्रोत  से निसृत कार्बन को वैसे  ही सोख लेती है  जैसे स्याही सोख स्याही को सोख  लेता है .

बहुचर्चित जत्रोपा उतने ही उत्पाद के  लिए शैवाल को  कमतर जोत की ज़रुरत पड़ती है .


 इसकी फार्मिंग (खेती )  खारे (नमकीन ) पानी में भी की जा  सकती है .

 इससे  आप साल भर में  सौ एकड़ जोत से प्राप्त कर सकते हैं  दस लाख गैलन जैव ईंधन .

जत्रोपा से इतना ही बायोफ्यूअल  लेने के लिए आपको 4500 एकड़ जोत चाहिए .

 समुन्दरों के  एक बड़े क्षेत्र से  एल्गी  प्राप्त की  जा  सकेगी .

  ज़रुरत  सिर्फ एल्गी फार्मिंग की  है .

 सस्ता सहज जैव ईंधन मुहैया करवा सकेगी एल्गी फार्मिंग .




अलबता जैव  तेल   शोधक कारखाना  खडा  करने के  लिए भारी निवेश  चाहिए .


 शैवाल एकत्र  करने के लिए एक तंत्र चाहिए .

 इसे डीज़ल से  संयुक्त करने के लिए पहले  संशोधित करना पडेगा .

 कितना निवेश हो   चुका  है 

शैवाल ईंधन प्राप्त करने के लिए  आदिनांक  दस एशियाई मुल्क  उस शोध में शिरकत कर रहें  जिस पर एक अरब डॉलर की  राशि खर्च की जा चुकी है .

सन्दर्भ -सामिग्री :-

Algae ,new -age biofuel for green tomorrow /HT,JUNE 5 ,2012,P15.

कल का ग्रीन फ्यूल होगी समुद्री शैवाल

कल का ग्रीन फ्यूल होगी समुद्री शैवाल 

प्रकाश संस्लेषी वनस्पति है समुद्री शैवाल या समुद्री खर पतवार .लेकिन यह उष्ण कटिबंधी वनस्पति अन्य पादपों से इस मायने में भिन्न है ,इसमें न वास्तविक पादपों सी पत्तियाँ होतीं हैं न तना न  जड़ .

कुछ माहिरों की मानें तो यह पृथ्वी पर मौजूद कुल ऑक्सीजन का ७१% तैयार   कर लेती है और बदले में लेती है सिर्फ पानी और कार्बन डाय -ऑक्साइड .

एक तरह से कार्बन का तो यह सोखता ही है .कार्बन अवशोषी है .

समझा जाता है यह वाहनों से निकलने वाले कारबन   को सोख कर हमारी हवा को अब और गंधाने से रोक सकती है .

उच्चतर अक्षांशों  पर  तैनात हमारे फौजियों को ऑक्सीजन मुहैया करवा सकती है .

अम्लीकृत  होते समुन्दरों से तेज़ाब की ज़ज्बी कर सकती है बा शर्ते इसकी बड़े पैमाने पर खेती की जाए .

विश्व -व्यापी तापन को कम करवा सकती है एल्गी ग्रीन हाउस गैसों में से एक कार्बन -डाय -ऑक्साइड को वायु  मंडल  में दाखिल होने से रोक कर .

क्या है आधार भारत के सन्दर्भ में इस आशावाद का ?

दिल्ली विश्व -विद्यालय से सम्बद्ध वनस्पति शास्त्री डॉ दीन बंधू साहू साहब एल्गी से कार चलाने का दावा प्रस्तुत करतें हैं .

हमारे पर्यावरण और पेट्रोलियम उत्पादों के हाथों पिटते रूपये का अवमूल्यन रोक सकतें हैं .

आपने समुद्री शैवालों की हज़ार से भी ज्यादा किस्मों का अन्वेषण  करके कुछ ऐसी स्टेंन ढूंढ निकालीं हैं जो वाहनों के एग्जास्ट से निकलते जले अधजले कार्बन को चूस सकतीं हैं .

इस प्रकार व्युत्पन्न तरल का तकरीबन ४०% अंश आपके अनुसार जैव ईंधन में भी तबदील किया जा सकता है .

इतर उद्योगों के लिए तेल भी इसी बिध पैदा किया जा सकता है .

आपके अनुसार कुल २०,००० -२५,००० के आरंभिक विनिवेश की भरपाई तीन से चार सालों में ही की जा सकेगी .

आपने इस प्रोद्योगिकी की आज़माइश अपनी मारुती ८००   पर कर ली है .आपने  इसे एक ऐसे टेंक से जोड़ा है जिसमे आधी राशि जल की रखी गई आधी शैवाल की .

कार का एग्जास्ट पाइप इसी टेंक से सम्बद्ध किया गया है .

आपकी कार कमतर ग्रीन हाउस गैस कार्बन दे  -ऑक्साइड गैस दिल्ली के पर्यावरण में छोड़  रही है ,आम मोडलों के बरक्स .

आप आलमी शैवाल संघ के एक सक्रीय सदस्य हैं .

काश भारत के अब तक की सबसे काबिल (नाकारा पढ़ें इसे )सरकार तथा तेल कम्पनियां शैवाल की बड़े पैमाने पे फार्मिंग को बढ़ावा  दे पायें ,सरकारी अनुदान (सहायता )मुहैया करवा सकें .

काश एक श्रृंखला बद्ध आपूर्ति प्राविधि अस्तित्व में आसके ,जहां  इस्तेमाल हो चुकी शैवाल पहुंचाई जा सके .

भारत अपनी ज़रूरीयात का ७०% तेल आयात करता है .यह तेल विकलांगता दिनानुदिन बढती ही जानी है .

जटरोपा से बेहतर है एल्गी 

इसे किसी भी तापमान पर तथा विभिन्न पर्यावरणी परिस्थितियों   में ,उगाया  जा सकता है .

उड़ीसा ने इसकी खेती के लिए एक ९५ लाख की प्रायोजना  हाथ में ली है .

यह अंगुल जिले के गंधाते ताप बिजली घरों के गिर्द उगाई जायेगी .ताकी हमारी हवा से प्रदूषकों को विश्व -व्यापी तापन के लिए जिम्मेवार ग्रीन हाउस गैसों को अलग किया जा सके .

लद्दाख और जम्मू कश्मीर के उच्चतर अक्षांशीय    इलाकों में तैनात हमारे प्रतिरक्षा कर्मियों को एल्गी प्रति -रक्षा शोध    प्रति -रक्षा संघ (DRDO) एल्गी  की  मारफत  ही  ऑक्सीजन  मुहैया  करवाएगा  .

हम  देर  से  ही  सही  अभी  भी  चेत  सकतें  हैं 

अमरीका चीन दक्षिण कोरिया ,कनाडा आदि मुल्क इस राह पे कबके चल चुके हैं . .

3 टिप्‍पणियां:

SANDEEP PANWAR ने कहा…

वीरु जी आज तो गजब की जानकारी बतायी है अगर यह तकनीक गलती से भी भारत सरकार आजमा ले तो देश के वारे न्यारे हो जायेंगे लेकिन तेल के खेल के पीछे जो नोट बनाए जा रहे है उनका तो घाटा हो जाएगा अत: इस बात की आशा नहीं लगती कि इसके बारे कुछ भी सरकार मान ले

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रकृति अपने पुत्रों के लिये न जाने कितने साधन एकत्र किये बैठी है।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत रोचक जानकारी...