बेशक रात की पाली में काम करने वाले लोग हों या फिर रातों को जाग जाग कर पढने वाले किताबी कीड़े (छात्र पढ़ें इसे ),ज़रुरत से बहुत कम सो पाने वाले लोग सभी कहतें हैं उन्हें रातों को काली करने के लिए परितृप्त करने वाले केलोरी डेंस भोजन की ज़रुरत महसूस होती है .
साइंसदान कहतें हैं :
नींद से जुडी इस तलब को 'स्लीप रिलेटिड इस हंगर को' साइंसदान अंतड़ियों में अठखेलियाँ करते कुछ ऐसे हारमोन की खपत (खप्प )बतलाते हैं जिनका सम्बन्ध हमारी भूख से होता है .यह नींद से सम्बद्ध बेबस होकर खाना हमारी तौल हमारा वजन बढाने में एहम भूमिका निभाता है .
लेकिन इस तलबगारी में सारा कसूर सिर्फ इस पापी पेट का ही नहीं है दिमाग की भी हिस्सेदारी है इस खप्प में .
गत दिनों स्लीप रिसर्चरों की एक बैठक में बोस्टन में दो अध्ययन प्रस्तुत किए गए .
बतलाया गया नींद से महरूम रह जाना दिमाग के कुछ हिस्सों को सुख बोध की तलाश के लिए , प्लेज़र सीकिंग के लिए उकसाता है .ज़रुरत से ज्यादा सक्रिय हो जातें हैं ये हिस्से .इस तलाश में फास्ट फ़ूड भी शामिल होता है .(दिमाग को जंक का भी अफीम सा चस्का पड़ जाता है ).
उनींदापन दूसरी तरफ दिमाग के उन हिस्सों का शमन कर देता है जो इस तलब का विरोध करने की क्षमता रखतें हैं .
इनमे से एक अध्ययन में केलिफोर्निया विश्व -विद्यालय के रिसर्चरों ने functional magnetic resonance imaging (fMRI)का इस्तेमाल दिमाग में खून के दौरे का पता लगाने के लिए दो बार किया पहली मर्तबा तब जब २५ के २५ चयनित स्वयं सेवी पूरे आठ घंटों की भरपूर नींद सोए थे दूसरी बार तब जब इन्हेंएक रात में सोने मौक़ा सिर्फ चार घंटे सो पाने का ही मिला .
दोनों ही मर्तबा दिमागी स्केन उतारते वक्त स्वयंसेवियों को कबाड़िया भोजन के चित्र तो दिखलाए ही गए बीच बीच में स्वास्थ्यकर फल और तर -कारियों ,ओट्मील्स की तस्वीरें भी दिखलाई गईं .
पता चला नींद से मेह्रूमियत(पूरी नींद न ले पानी की स्थिति में ) के वक्त दिमाग के वह हिस्से ज्यादा रोशन ज्यादा सक्रिय दिखे जिनका सम्बन्ध तलब से और रिवार्ड किए जाने(पुरुस्कृत किए जाने ) से रहता है .ऐसा तब ज्यादा और अकसर हुआ जब उन्हें बासा भोजन (जंक फ़ूड ,फास्ट फ़ूड ,तुरता भोजन )की तस्वीरें दिखलाई गईं .
दरअसल नींद न ले पाने के हालातों में दिमाग के मौज प्रेमी हिस्से उत्तेजित हो जातें हैं ,उद्दीप्त रहतें हैं ,ऐसे में तलब होती है पेप्पर्रोनी पीज़ा (पार्क पीज़ा ),चीज़ बर्गर की और केक्स माँगता है दिमांग .(ये दिल मांगे मोर नींद हो हराम हमारी ,खाने को मिले पीज़ा ).
न्यूयोर्क विश्व -विद्यालय ओबीसिटी सेंटर के रिसर्चरों ने इस अन्वेषण को पुख्ता किया है .
मोटापे और उनींदे पन नींद से मेह्रूमियत के अंतर संबंधों पर काम करने वाले कुछ अन्य साइंसदानों को यह भी शक है कि थके मांदे ,नींद से ऊंघते लोगों को पूरा दिन निकालना होता है इसलिए भी उनका दिमाग और उनकी काया केलोरी से लदा खाना मांगतें है .
थका मांदा नींद से महरूम दिमाग खाद्य उत्तेजन से (फास्ट फ़ूड की तस्वीरों को देखने पर ) ऐसी अनुक्रिया करने लगता है मानों वह भूखा हो .नींद और ओबेसिटी के रिश्तों को खंगालने वाले रिसर्चरों ने यही अवधारणा प्रस्तुत की है .इस पर अपनी मोहर भी लगाईं है .
तो ज़नाब जंक फ़ूड ही नहीं उसकी तस्वीरें भी उनींदा होने पर उकसातीं ललचाती भरमाती हैं दिमाग को भकोसते जाने के लिए .
(जंक फ़ूड की तस्वीरें भी घातक हैं,उनींदे व्यक्ति के लिए खासकर ).
हारमोन और क्षुधा दोनों को असर ग्रस्त करता है रात्री जागरण ,निद्रा से वंचित रह जाना .
(खूब करो भैया माता का डिस्को जगराता ).
कुसूरवार और भी हैं हंगर और क्रेविंग्स के अलावा
दूसरा अध्ययन इसी की पड़ताल करता है .दिमाग का वह हिस्सा जो हमें यह कूवत देता है कि हम चीज़ों को अच्छे बुरे की कसोटी पर तर्क के स्तर पर परखें ,स्वास्थ्य कर और सेहत को चौपट करने वाली खाद्य सामिग्री में विभेद कर सकें नींद से महरूम रह जाने पर समझौते की मुद्रा में आजाता है .बहक जाता है .बहकावे में आ जाता है .
8 टिप्पणियां:
बढ़िया लेख
नींद नहीं आने पर और खाली रहने पर , डिप्रेशन में भी .... आदमी खाता जाता है जंक फ़ूड
सही बात है...जंकफूड बहुत हानिकारक होता है...बहुत अच्छा लेख है....
लेकिन इस तलबगारी में सारा कसूर सिर्फ इस पापी पेट का ही नहीं है दिमाग की भी हिस्सेदारी है इस खप्प में .
बढ़िया जानकारी मिली .... इसीलिए जो लीग रात की शिफ्ट में काम करते हैं उनको यह खाना बहुत लुभाता है ॥
बढ़िया जानकारी .... शायद इसी लिए रात की शिफ्ट में काम करने वाले लोग ऐसा खाना पसंद करते हैं
very useful post
have to read it again.
Very informative and useful post. Thanks.
कभी-कभी खराब चीज़ भी काम की होती है।
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