क्या आपका बच्चा आपसे जिरह करता है रोज़ ?
Teens who argue back handle peer pressure better
FIGHTING SPIRIT : A study says that teenagers who fight verbally with their parents are less likely to turn to drug abuse and alcohol/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA,MUMBAI ,JUNE 21,2012,P15
चिंता की बात नहीं खुश खबरी हो सकती है यह आपके लिए यदि आपका बच्चा आपके आदेश या सलाह को पहले तर्क की कसौटी पर तौलता है खरा न उतरने पर रोज़ बा रोज़ आपसे तर्क वितर्क करता है .एक नए अध्ययन के अनुसार ये बच्चे नाज़ुक उम्र में (किशोरावस्था में )अपने हमजोलियों के दवाब में आकर कई बुरी आदतों से बच जातें हैं क्योंकि इनकी प्रवृत्ति होती है हर बात को तर्क पे तौलने की .इनके नशीली दवाओं और शराब के चक्कर में कच्ची उम्र में ही पड़ जाने की संभावना कमतर हो जाती है .
हम उम्रों का दवाब झेल लेनेके इनके पास ज्यादा तर्क होतें हैं .
मोल भाव करने में अपनी बात मनवाने में सामने वाले को राजी करने में भी यह प्रवीण होतें हैं .इनकी बात के वजन को सामने वाले को तवज्जो देनी ही पड़ती है .वर्जिनिया विश्व -विद्यालय के रिसर्चरों ने ,अपने एक अभिनव अध्ययन में ऐसे ही निष्कर्ष परोसें हैं .
शोध कर्ताओं का तो यहाँ तक सुझाव है कि नौनिहालों को वाद विवाद करना तर्क को उसकी परिणति सहज रूप तक ले जाना माँ बाप को आगे बढ़के सिखलाना चाहिए ताकी उनके हुनर का समुचित विकास हो सके . बुरा नहीं मनाना चाहिए और न ही इसे अवज्ञा समझना बूझना चाहिए .यह एक सकारात्मक प्रवृत्ति है जिसे परवान चढ़ाया जाना चाहिए .
बे -शक शुरू में आपको ऐसा लगे बच्चा आपके साथ प्रतियोगिता में आ रहा है ,ज़बान लड़ा रहा है ,आपसे आगे निकलने की कोशिश कर रहा है आपके कान काट रहा है .(अकसर हटी माँ बाप को लगता ऐसा ही है ,बच्चा कोई फौज का ज़वान नहीं है जो सिर्फ आदेश लेता है तर्क नहीं करता ,अपनी राय भी नहीं रखता ,उसे तो बे -चारे को इजाज़त नहीं है ,बच्चे से यह अवसर न छीनें ).
अपने अध्ययन में साइंस दानों ने तेरह साला ऐसे डेढ़ सौ बच्चों की ऑडियो और वीडियो -रेकोर्डिंग की जो अपनी माँ से बहस मुबाहिसे में उलझ जाते थे रोज़ -ब-रोज़ .
तीन साल बाद इनसे सवाल ज़वाब किए गए ,इस दरमियान प्राप्त अनुभवों से जुड़े लाफ सिच्युएशन के बाबत .
ड्रग्स और एल्कोहल के बाबत .इनके अवांछित पदार्थों के एब्यूज के बाबत .
जिन लोगों में आत्म विशवास था तर्क करने की कूवत थी वे गलत दवाब में नहीं आये , साफ़ न कहने में अकसर कामयाब रहे .
इनके पास अकाट्य तर्क थे न कहने के .
तर्क करने की क्षमता और हमजोलियों के दवाब में एक बला का अंतर सम्बन्ध रिसर्चरों को साफ़ दिखलाई दिया .
मनो -विज्ञान के आचार्य जोसेफ एलेन ने इस अध्ययन की अगुवाई की है .
घर एक प्रशिक्षण स्थल है यहाँ जो कुछ भी होता है उसका बच्चे के चित्त पर साफ़ प्रभाव पड़ता है .ये लोगों से बेहतर तरीके से तालमेल बिठाना उन्हें सही बात के लिए राजी कर लेना सहज ही सीख जाते हैं .
आपको यह सीख उलटी लग सकती है .सहज बोध से प्राप्त ज्ञान का विरोध करती प्रतीत हो सकती है .लेकिन इसे आजमाने में हर्ज़ क्या है ?
13 टिप्पणियां:
सच है कि बच्चों को जिरह का मौका देना उनके मानसिक और आत्म विकास के लिये बहुत ज़रूरी है...बहुत रोचक और उपयोगी पोस्ट..आभार
अच्छी जानकारी...आभार
जानकारी देता सुंदर सम्प्रेषण,,,,,
तब तो अच्छा है..
अच्छी जानकारी
Informative post for every parent...
bilkul sahi bat hai mai isi situation se gujar rahi hoon beta ke jirah karne par bura lagta hai to vo apne doston ke bare me btata hai .....to mujhe mahsus hota hai ki bacche me originalti ka hona jaruri hai....
acchi jankari...
:-)
पढ़वाने के लिए धन्यवाद
bahut umda jaankari ,shukriya ......
नया पढ़ने को मिला सादर !
वीरू भाई के स्वास्थ्य नुस्खे अपनाओ
अपना जीवन सुख-मय,आनंद-पूर्वक बिताओ!
वीरू भाई राम-राम .....
बच्चों के समुचित विकास के लिए संवाद ज़रूरी है
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