डीज़ल एग्जास्ट धुंआ बन सकता है लंग कैंसर की वजह
रविकर फैजाबादी
लंग कैंसर से लड़े, अदना मानव जंग |
रविकर फैजाबादी
Diesel exhaust fumes can cause lung cancer
More Carcinogenic Than Secondhand Smoke :WHO
TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA,NEW DELHI ,P23,JUNE 14,2012
विश्व -स्वास्थ्य संगठन ने बतलाया है कि डीज़ल इंजनों से निकलने वाला धुंआ और बदबूदार गैस सांस के साथ अन्दर पहुँचने पर फेफड़ा कैंसर की वजह बन सकती है .
दरअसल ऐसी ही आशंका पहली मर्तबा १९८८ में जतलाई गई थी जिसकी अब जाके पुष्टि हुई है .
International Agency for cancer research (यह संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन का ही हिस्सा है ) ने इन अन्वेषणों की मुताल्लिक जानकारी एकत्र की है .माहिरों के मुताबिक़ यह धुंआ अपने असर में सेकिंड हेंड सिगरेट स्मोक से ज्यादा कैंसर पैदा करने वाला सिद्ध हुआ है .
संस्था के कामकाजी समूह के मुखिया(Christopher Portier) कहतें हैं :इस बाबत जुटाए गए वैज्ञानिक तथ्य अकाट्य हैं .नतीजों पर समूह में आम राय है .डीज़ल इन्जीन मनुष्यों में लंग कैंसर पैदा करता है .
जले अधजले डीज़ल से निसृत कणीय प्रदूषकों के सेहत पर पड़ने वाले अन्य अवांछित प्रभावों पर भी विचार किया जाए तब इस धुंआ गैस मिश्र से आलमी स्तर पर बचे रहने इसका क्वांटम कम करने की ज़रुरत से इनकार नहीं किया जा सकता .
१९८८ में इसी संस्था ने डीज़ल इग्जास्त को संभावित कैंसर कारी (Carcinogenic) की सूची में रखा था ,सूचीबद्ध किया था इसे .
तब इसी संस्था से बा - वास्ता एक दूसरे समूह ने इसके नुकसानात या फिर सुरक्षित और निरापद होने न होने का पुनर आकलन करने की सलाह दे डाली थी .
अब जानपदिक अध्ययनों (epidemiological studies)से इसके नुकसानात के सबूत मिलें हैं खासकर उन मुलाज़िमों पर जिन्हें एक ख़ास माहौल में काम करना पड़ता है मसलन भूमि गत खनन कर्मचारी .
मार्च 2012 में ऐसे ही एक लार्ज अध्ययन के नतीजे प्रकाशित हुए थे जिसमें इन कर्मचारियों की फेफड़ा कैंसर से मौत का जोखिम खासा बढा हुआ पाया गया था .
संस्था ने जुटाए गए तथ्यों का बारीकी से पुनराकलन किया था .इसे मनुष्यों में कैंसर पैदा करने वाला माना समझा गया .
एजेंसी ने दो टूक कहा डीज़ल इग्जास्त लंग कैंसर की वजह है .
अलावा इसके इसका सम्बन्ध मूत्राशय कैंसर के बढे हुए जोखिम से भी जोड़ा गया .
कथित और बहु -प्रचारित साफ़ सुथरा डीज़ल इस समस्या का हल प्रस्तुत करने वाला नहीं है .
बेशक इसकी गुणवत्ता में सुधार और मात्रात्मक कटौती कितना असर कारी और स्वास्थ्य के प्रति प्रतिकूल सिद्ध हो सकती है इसका जायजा लिया जाना अभी बकाया है .
ज़ाहिर है इस सबके लिए मौजूदा वाहनों की शक्ल सूरत भी तबदील करनी पड़ेगी ,ईंधनों की भी .यह काम इतनी जल्दी और आसानी से आलमी स्तर पर होने वाला भी नहीं है .
तेल धुवाँ से दंग, बढ़ी गाड़ी की गिनती |
जल डीजल पेट्रोल, प्रदूषण झेल मेहनती |
रोगी बनते जात, लंग से लंगडा जाते |
मौत मिले सौ बार, नहीं छुटकारा पाते ||