हवा में झूमते लहलहाते वे परस्पर संवाद करते हैं
पौधे भी संवाद में, रत रहते दिन रात ,गेहूं जौ मिलते गले, खटखटात जड़ जात --|-भाई रविकर जी फैजाबादी
पौधे भी संवाद में, रत रहते दिन रात ,गेहूं जौ मिलते गले, खटखटात जड़ जात --|-भाई रविकर जी फैजाबादी
हवा के संग संग इठलाते पौधे न सिर्फ परस्पर अपनी भाषा में संवाद करतें हैं पर्यावरणी ध्वनियों के प्रति अनुक्रिया भी प्रदर्शित करते हैं .संवाद की इस भाषा को पौधों की अपनी नोइज़ लेग्विज कहा जा सकता है क्योंकि जिस फ्रीकुवेंसी (आवृत्ति) पर ये परस्पर बतियातें हैं उन आवृत्तियों की ध्वनी हमारे लिए अ श्रव्य बनी रहती है इसलिए हम इनकी बातचीत को सुन समझ नहीं सकते .
गेंहू, जौ ,मक्का आदि के नन्ने पौधों की परस्पर गुफ्त- गु को सुनने के लिए ब्रिस्टल विश्व विद्यालय के साइंसदानों ने शक्ति शाली लाउड स्पीकर्स का इस्तेमाल किया है .पता चला इनकी जड़ों में से खटखटात की आवाज़ आती है खट खट की आवाज़ आती है 'clicking sounds' आतीं हैं .
तो ज़नाब बस यूं ही पौधे हवा के संग भावना हीन होकर नहीं निष्क्रिय रूप नहीं लहलहा रहें हैं एक दूसरे के साथ लगातार बातचीत में मशगूल हैं .
अपनी आजमाइशों में जब रिसर्चरों ने इन नन्ने पादपों के जड़ों को पानी में डुबोने के बाद उतनी ही आवृत्ति की ध्वनियाँ पैदा कीं तब ये सभी उसी ध्वनी की जानिब (दिशा में )झुक गए .
पादप प्रकाश की दिशा में झुक जातें हैं यह तथ्य हर स्कूल के छात्र को नौवीं की लाइफ साइंसिज़ और विज्ञान की संयुक्त पुस्तक में पढ़ाया जा ता है .लेकिन इस बरस Exeter University के रिसर्चरों ने पता लगाया है कि बंद गोभी के पादप एक वाष्पशील गैस छोड़तें हैं ऐसा करके वह अपने सहोदरों को यह जतलातें हैं कि भैया जी सूंडी ,इल्ली और GARDEN SHEARS से बचके रहियो खतरा है इनके हल्ला बोल का .
रिसर्चरों का यह अध्ययन jOURNAL TRENDS IN PLANT SCIENCE में प्रकाशित हुआ है .
इसी के साथ एक संचार सेतु (चैनल आफ कम्युनिकेशन )पादपों की जड़ों के बीच स्थापित करने की संभावना पैदा हो गई है .
तो ज़नाब पौधों में न सिर्फ जीवन है .संवाद भी है उनके लबों पर शहरातियों की तरह सिटकिनी नहीं चढ़ी हैं .इनके दिल भी धडकतें हैं .दिल की धड़कन मापने के लिए क्रेसको ग्राफ है .
सन्दर्भ -सामिग्री :-Plants swaying in the breeze may actually be conversing /TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA,JUNE 12,2012 ,P17
18 टिप्पणियां:
पौधे भी संवाद में, रत रहते दिन रात |
गेहूं जौ मिलते गले, खटखटात जड़ जात |
तो ज़नाब बस यूं ही पौधे हवा के संग भावना हीन होकर नहीं निष्क्रिय रूप नहीं लहलहा रहें हैं एक दूसरे के साथ लगातार बातचीत में मशगूल हैं .बहुत ही सुन्दर पोस्ट भाई साहब ! हमें पर्यावरण को बचने चाहिए अन्यथा यही एक दिन हमें खा जाएगी !
हम भारतीय तो पहले से ही मानते आए हैं कि वनस्पति जड़ नहीं चेतन है...
RAAM RAAM JI...
Kunwar ji,
ek sateek chitan aur sarahniy bhi----
bahut hi badhiya post
poonam-
बहुत दिलचस्प खबर छापी है वीरुभाई जी.
काश , इन्सान इस मूक भाषा को सुनना सीख ले .
सही कहा वीरु भाई जी..पेड़ पौधों में भी संवेदनाए होती हैं..काश हम इनकी भाषा समझ पाते...
Nai Jankari hai ....
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 14-06-2012 को यहाँ भी है
.... आज की नयी पुरानी हलचल में .... ये धुआँ सा कहाँ से उठता है .
जगदीश चन्द्र बोस की याद आयी
दिलचस्प
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
बहुत ही रुचिकर जानकारी..
:-)
बहुत रोचक प्रस्तुति...
संवेदनाएं और संवाद ... दोनों ही होते हैं पेड़ पौधों में ... संगीत का भी शौंक रखते हैं ...
राम राम भई जी ...
प्रभावशाली प्रस्तुति....
याद नहीं आरहा कहाँ... इसी परिप्रेक्ष्य में एक शोध लेख पढ़ा था निरंतर संगीत के संपर्क में रहने वाले पौधे तेजी से बढ़ते हैं...
सादर.
जी हाँ ,हबीब साहब गाय भी ज्यादा दूध देती है संगीत का जादू सर चढ़के बोलता है .पंडित रविशंकर का सितार वादन सुनके फसलें खिल खिला उठती हैं .'बैजू बावरा' फिल्म में संगीत का यह जादू दिखलाया गया है .'शबाब' में भी .
हमने तो रात में उनकी फुसफुसाहट भी सुनी है..
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