गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

पृथ्वी दिवस पर -हवा ,पानी ,मिटटी की तात्विकता को बचाए रखने का संकल्प उठाइये

कहा गया है ,बूँद बूँद सो भरे सरोवर .एक और एक ग्यारह होतें हैं .पृथ्वी दिवस पर क्या यह सोचने विचारने का वक्त भी नहीं है -आज पञ्च तत्वों की तात्विकता ही विनष्ट हो चली है .हमारी हवा ,पानी ,मिटटी सभी तो गंधाने लगीं हैं .गंगा जमुना में 'ई -कोली 'का डेरा है .मिटटी में लवण का ज़म- घट है ,पानी तो भूमिगत भी छीज रहा है ।
वन की परिभाषा बदल गई है .पहले घने पेड़ों के झुरमुट को ही वन कहा जाता था ।
आज हरियाला आँचल भी उसमे शामिल है ।
'महा- काल के हाथ पर गुल होतें हैं ,पेड़
सुषमा तीनों लोक की कुल होतें हैं ,पेड़ ।
पेड़ पांडवों पर हुआ ,जब जब अत्याचार
ढांप लिए वाट वृक्ष ने ,तब तब दृग के द्वार ।
अपनी धरती अपनी सी तो लगे भैया ,यहाँ तो सब कुछ बदल रहा है .एक और पृथ्वी चाहिए जीवन की निरंतरता को बनाए रखने को ।कहाँ से लाइयेगा ?
वीरुभाई
९३ ५०९८६६८५

कोई टिप्पणी नहीं: