कैसे होता है मायोलोमा का रोग निदान (Diagonosis )?
(१ ) रक्त के कई परीक्षण किये जाते है जिनसे कमप्लीट ब्लड काउंट के अलावा खून में केल्सियम ,एल्ब्युमिन तथा कुल प्रोटीन की मात्रा का पता लगाया जाता है। (http://www.mayoclinic.org/tests-procedures/complete-blood-count/home/ovc-20257165)
(२ ) कुछ ख़ास प्रोटीनों (एंटीबॉडीज़ या प्रतिपिंडों )का पता लगाने के लिए रक्त के साथ -साथ पेशाब की भी जांच की जाती है।
(३)रक्त में कैल्शियम की अतिरिक्त मात्रा (hypercalcemia ),खून की कमी (anemia ),गुर्दों के ठीक से काम कर रहें हैं या नहीं ,तथा अस्थि की नुकसानी (bone lesions) का पता लगाने के लिए विशेष जांच की जाती है।
(४ )अस्थिमज़्ज़ा से एक लम्बी सुईं द्वारा ऊतक लेकर(Bone Marrow Biopsy )के अलावा अस्थि की एक्स -रे जांच भी की जाती है।
(५ )अस्थि को कितनी नुकसानी उठानी पड़ रही है इसका ज़ायज़ा लेने के लिए अस्थि -घनत्व का पता लगाने के लिए bone density जांच की जाती है।
गौर तलब है ,अस्थिमज़्ज़ा में मौजूद प्लाज़्मा सेल्स हमारे रोगरोधी तंत्र के हाथ मजबूत करने के लिए प्रतिपिंड तैयार करती हैं। मायो -लोमा लिम्फोमा और ल्युकेमिआ की तरह एक प्रकार का रक्त कैंसर ही होता है जो इन प्लाज़्मा कोशिकाओं को असरग्रस्त करता है। असरग्रस्त करके मुर्दार बनाने की जी तोड़ कोशिश करता है। फलत : ये प्लाज़्मा कोशिकायें असामान्य व्यवहार करते हुए अस्थि के बाहर एक कैंसर गांठ(malignant tumor ) बनाने लगतीं हैं .ऐसे में अस्थियां न सिर्फ कमज़ोर पड़ जाती हैं ,अस्थिमज़्ज़ा सामान्य रक्तकोशिकाएँ (स्वस्थ सामान्य प्लाज़्मा सेल्स ,रेडब्लड सेल्स तथा प्लेटलेट्स )भी तैयार नहीं कर पाती हैं । नतीजतन खून की कमी होने लगती है। गुर्दे असरग्रस्त हो सकते हैं क्योंकि असरग्रस्त प्लाज़्मा कोशिकाएं रोगरोधी प्रोटीनों के स्थान पर अ -वांछित पैरा -प्रोटीन (एब्नॉर्मल एंटीबॉडी )बनाने लगतीं हैं.
साफ़ -साफ़ इस कैंसर के कारणों का कोई सुनिश्चित कारण ज्ञात नहीं हो सका है जिसे "प्लाज़्मा सेल मायो -लोमा "या 'kahler's disease' भी कह दिया जाता है मात्र कयास लगाए गए हैं ,ये कुछ ख़ास किस्म की चिकित्साओं का परिणाम भी हो सकता है।
संदर्भ -सामिग्री :http://www.prokerala.com/health/diseases/cancer/myeloma.htm
(१ ) रक्त के कई परीक्षण किये जाते है जिनसे कमप्लीट ब्लड काउंट के अलावा खून में केल्सियम ,एल्ब्युमिन तथा कुल प्रोटीन की मात्रा का पता लगाया जाता है। (http://www.mayoclinic.org/tests-procedures/complete-blood-count/home/ovc-20257165)
(२ ) कुछ ख़ास प्रोटीनों (एंटीबॉडीज़ या प्रतिपिंडों )का पता लगाने के लिए रक्त के साथ -साथ पेशाब की भी जांच की जाती है।
(३)रक्त में कैल्शियम की अतिरिक्त मात्रा (hypercalcemia ),खून की कमी (anemia ),गुर्दों के ठीक से काम कर रहें हैं या नहीं ,तथा अस्थि की नुकसानी (bone lesions) का पता लगाने के लिए विशेष जांच की जाती है।
(४ )अस्थिमज़्ज़ा से एक लम्बी सुईं द्वारा ऊतक लेकर(Bone Marrow Biopsy )के अलावा अस्थि की एक्स -रे जांच भी की जाती है।
(५ )अस्थि को कितनी नुकसानी उठानी पड़ रही है इसका ज़ायज़ा लेने के लिए अस्थि -घनत्व का पता लगाने के लिए bone density जांच की जाती है।
गौर तलब है ,अस्थिमज़्ज़ा में मौजूद प्लाज़्मा सेल्स हमारे रोगरोधी तंत्र के हाथ मजबूत करने के लिए प्रतिपिंड तैयार करती हैं। मायो -लोमा लिम्फोमा और ल्युकेमिआ की तरह एक प्रकार का रक्त कैंसर ही होता है जो इन प्लाज़्मा कोशिकाओं को असरग्रस्त करता है। असरग्रस्त करके मुर्दार बनाने की जी तोड़ कोशिश करता है। फलत : ये प्लाज़्मा कोशिकायें असामान्य व्यवहार करते हुए अस्थि के बाहर एक कैंसर गांठ(malignant tumor ) बनाने लगतीं हैं .ऐसे में अस्थियां न सिर्फ कमज़ोर पड़ जाती हैं ,अस्थिमज़्ज़ा सामान्य रक्तकोशिकाएँ (स्वस्थ सामान्य प्लाज़्मा सेल्स ,रेडब्लड सेल्स तथा प्लेटलेट्स )भी तैयार नहीं कर पाती हैं । नतीजतन खून की कमी होने लगती है। गुर्दे असरग्रस्त हो सकते हैं क्योंकि असरग्रस्त प्लाज़्मा कोशिकाएं रोगरोधी प्रोटीनों के स्थान पर अ -वांछित पैरा -प्रोटीन (एब्नॉर्मल एंटीबॉडी )बनाने लगतीं हैं.
साफ़ -साफ़ इस कैंसर के कारणों का कोई सुनिश्चित कारण ज्ञात नहीं हो सका है जिसे "प्लाज़्मा सेल मायो -लोमा "या 'kahler's disease' भी कह दिया जाता है मात्र कयास लगाए गए हैं ,ये कुछ ख़ास किस्म की चिकित्साओं का परिणाम भी हो सकता है।
संदर्भ -सामिग्री :http://www.prokerala.com/health/diseases/cancer/myeloma.htm
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