नदियों में गंगा का शीर्ष स्थान क्यों ?
जबकि विश्वकी सभी नदियाँ जीवन और संस्कृतियों का पोषण करती आईं हैं गंगा का अपना वैशिठ्य रहा आया है। कहा जाता है -एक बार ब्रह्माजी नारायण (महा-विष्णु )के चरण धौ रहे थे ,पाद प्रक्षालन कर रहे थे ,यही विष्णु -चरणोदक स्वर्ग की नदी बन बहने लगा। उसी समय पृथ्वी पर राजा भागीरथ अपने पुरखों की भस्म के परि -शोधन ,उनकी ऐशिज को सेंकटिफ़ाइ हेतु तप कर रहे थे,फलस्वरूप गंगा जी भू -मुखी हो वेगवती धारा के साथ पृथ्वी की और बढ़ने लगीं ,इस आवेग से पृथ्वी दो फाड़ हो सकती थी ,लिहाज़ा वेव -ब्रेकर्स के तौर पर शिव ने इसे अपनी जटाओं की ओर मोड़ा ,प्रवेग को शांत करके पृथ्वी की और पुन :मोड़ दिया।
लिहाज़ा रजोगुण प्रधान ब्रह्माजी ,सतोगुणप्रधान विष्णु और तमोगुण के स्वामी शिव का स्पर्श गंगे को मिला है। इसके जल को गंगा जल कहा गया है जिसमें घुलित ऑक्सीजन की मात्रा गौ -मुख से निकासी होते ही अधिकतम रहती है इसीलिए गंगा जल यहां स्रोत से लिया गया कभी सड़ता नहीं है। भले आज हमारी करतूतों के चलते कहानी और है लेकिन श्रद्धा और आस्था चुकी नहीं है भले नदियाँ तो क्या दुनिया भर के समुन्दर भी स्वत :शोधन आज नहीं कर पा रहें हैं आइल स्पिल्स के चलते। तमाम और कारक हैं जिनकी चर्चा करना हमारा मंतव्य यहां नहीं है।
"आदि -शंकराचार्य" अपने "गंगा -स्त्रोत्रं" में कहते हैं -जो एक मर्तबा भी गंगा में डुबकी लगा लेता है उसे फिर दोबारा माँ के गर्भ में जठराग्नि में लौटकर उलटे लटकना नहीं पड़ता -पुनरपि जन्मम पुनरपि मरणम ,पुनरपि जननी जठरेशयनम -से वह मुक्त हो जाता है।
"आर्य" यहीं इंडो -गेंजेटिक प्लेन्स में रहे पनपें हैं विकसें हैं। काशी -प्रयाग -हरिद्वार -ऋषिकेश से लेकर रुद्रप्रयाग ,कर्णप्रयाग आदि उत्तराखंड के अनेक प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र यहीं पनपें हैं जहां संस्कृति का लगातार पल्लवन हुआ है।
गंगा ज्ञान का प्रतीक है जो गुरु के मस्तिष्क से निसृत होकर शिष्य परम्परा की और आया है। ज्ञान की सतत प्रवहमान धारा है गंगा महज नदी नहीं है।
अनेक ऋषियों का तप फल गंगा जल लिए हुए है। "शब्द" से गंगा -जल का अभिषेक हुआ है। यह आकस्मिक नहीं है उत्तर भारत के तमाम लोग एक मर्तबा रामेश्वरम के समुन्दर में डुबकी लगाना चाहते हैं तो दक्षिण के हर की पौड़ी - हरिद्वार का रुख करते हैं। हर कोई गंगासागर में भी स्नान करना चाहता है जो उत्तरभारत को बंगाल की खाड़ी और दक्षिण के समुन्दर से जोड़ता है। इसप्रकार गंगा हमारी सर्व -समावेशी सांस्कृतक धारा का सशक्त न्यूक्लियस बनी हुई है।यूं ही नहीं गया गया है -गंगा मेरी माँ का नाम बाप का नाम हिमालय
https://www.youtube.com/watch?v=Donn6OgYV-g
जबकि विश्वकी सभी नदियाँ जीवन और संस्कृतियों का पोषण करती आईं हैं गंगा का अपना वैशिठ्य रहा आया है। कहा जाता है -एक बार ब्रह्माजी नारायण (महा-विष्णु )के चरण धौ रहे थे ,पाद प्रक्षालन कर रहे थे ,यही विष्णु -चरणोदक स्वर्ग की नदी बन बहने लगा। उसी समय पृथ्वी पर राजा भागीरथ अपने पुरखों की भस्म के परि -शोधन ,उनकी ऐशिज को सेंकटिफ़ाइ हेतु तप कर रहे थे,फलस्वरूप गंगा जी भू -मुखी हो वेगवती धारा के साथ पृथ्वी की और बढ़ने लगीं ,इस आवेग से पृथ्वी दो फाड़ हो सकती थी ,लिहाज़ा वेव -ब्रेकर्स के तौर पर शिव ने इसे अपनी जटाओं की ओर मोड़ा ,प्रवेग को शांत करके पृथ्वी की और पुन :मोड़ दिया।
लिहाज़ा रजोगुण प्रधान ब्रह्माजी ,सतोगुणप्रधान विष्णु और तमोगुण के स्वामी शिव का स्पर्श गंगे को मिला है। इसके जल को गंगा जल कहा गया है जिसमें घुलित ऑक्सीजन की मात्रा गौ -मुख से निकासी होते ही अधिकतम रहती है इसीलिए गंगा जल यहां स्रोत से लिया गया कभी सड़ता नहीं है। भले आज हमारी करतूतों के चलते कहानी और है लेकिन श्रद्धा और आस्था चुकी नहीं है भले नदियाँ तो क्या दुनिया भर के समुन्दर भी स्वत :शोधन आज नहीं कर पा रहें हैं आइल स्पिल्स के चलते। तमाम और कारक हैं जिनकी चर्चा करना हमारा मंतव्य यहां नहीं है।
"आदि -शंकराचार्य" अपने "गंगा -स्त्रोत्रं" में कहते हैं -जो एक मर्तबा भी गंगा में डुबकी लगा लेता है उसे फिर दोबारा माँ के गर्भ में जठराग्नि में लौटकर उलटे लटकना नहीं पड़ता -पुनरपि जन्मम पुनरपि मरणम ,पुनरपि जननी जठरेशयनम -से वह मुक्त हो जाता है।
"आर्य" यहीं इंडो -गेंजेटिक प्लेन्स में रहे पनपें हैं विकसें हैं। काशी -प्रयाग -हरिद्वार -ऋषिकेश से लेकर रुद्रप्रयाग ,कर्णप्रयाग आदि उत्तराखंड के अनेक प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र यहीं पनपें हैं जहां संस्कृति का लगातार पल्लवन हुआ है।
गंगा ज्ञान का प्रतीक है जो गुरु के मस्तिष्क से निसृत होकर शिष्य परम्परा की और आया है। ज्ञान की सतत प्रवहमान धारा है गंगा महज नदी नहीं है।
अनेक ऋषियों का तप फल गंगा जल लिए हुए है। "शब्द" से गंगा -जल का अभिषेक हुआ है। यह आकस्मिक नहीं है उत्तर भारत के तमाम लोग एक मर्तबा रामेश्वरम के समुन्दर में डुबकी लगाना चाहते हैं तो दक्षिण के हर की पौड़ी - हरिद्वार का रुख करते हैं। हर कोई गंगासागर में भी स्नान करना चाहता है जो उत्तरभारत को बंगाल की खाड़ी और दक्षिण के समुन्दर से जोड़ता है। इसप्रकार गंगा हमारी सर्व -समावेशी सांस्कृतक धारा का सशक्त न्यूक्लियस बनी हुई है।यूं ही नहीं गया गया है -गंगा मेरी माँ का नाम बाप का नाम हिमालय
https://www.youtube.com/watch?v=Donn6OgYV-g
2 टिप्पणियां:
वाह बहुत बढ़िया रोचक जानकारी
रोचक जानकारी
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