रक्त कैंसर मायलोमा रोग का पेचीला पन मरीज़ की काया पर इसके अब तक पड़ चुके असर और मौजूदा लक्षणों पर निर्भर करता है जो किन्हीं दो मरीज़ों के यकसां (एक जैसे )नहीं रहते हैं। प्लाज़्मा सेल कैंसर (मायो -लोमा )से किसी व्यक्ति के असर-ग्रस्त होने पर यह रोग उस व्यक्ति में कोशिका निर्माण की सामान्य -स्वस्थ -परम्परा को ध्वस्त करके कैंसरप्लाज़्मा सेल्स की संख्या को बढ़ाने लगता है। इसी से मायो -लोमा में इसके इलाज़ के बावजूद कई किस्म का पेचीला -पन देखा जाता है।
मूलतया यह पेचीलापन अस्थियों ,खून और हमारी किडनियों (गुर्दों )पर बुरा असर डालता है।
(१) अस्थि -ह्रास (bone loss )बड़ी एहम समस्या के रूप में ८५ फीसद मामलों में देखने में आया है। रीढ़ की गुर्री (Spine ),पसली -पिंजर (Rib Cage )और पेल्विस (Pelvis या श्रोणि प्रदेश )इसकी लपेट में आके असरग्रस्त होता है।
यूं बिस्फोस्फोनेट (bisphosphonates) या विकिरण चिकित्सा(Radiation Therapy ) इसकी रोकथान या उग्रता को कम करने के लिए काम में ली जाती है।
(२)खून की कमी (Anemia ) :मायो -लोमा सेल्स या कैंसर की चपेट में आई प्लाज़्मा सेल्स की संख्या के बे -तहाशा बढ़ते चले जाने से इस रोग में स्वस्थ प्लाज़्मा सेल्स (जो वाइट ब्लड सेल्स की ही एक किस्म होतीं हैं )के साथ -साथ ,रेडब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स की संख्या भी कम होती जाती है। यही वजह है के रोग के पुख्ता हो चुके मामलों में ६० फीसद तक मामलों में खून की कमी हो जाती है।
(३)गुर्दे अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं करते (Kidney Failure ):क्योंकि मायलोमा ग्रस्त व्यक्ति के मामलों में स्वस्थ प्लाज़्मा सामान्य प्रोटीनों के स्थान पर एब्नॉर्मल प्रोटीन (पैरा -प्रोटीन )और M-प्रोटीन बनाने लगतीं हैं साथ ही खून में कैल्शियम का स्तर बढ़ता जाता है इसलिए गुर्दों का खून को निथारते रहने फ़िल्टर करते रहने का काम बढ़ जाता है।यह काम अब न तो पूरा हो पाता न ठीक से ही होता है इसलिए पेशाब भी कम बनने लगता है ।सामन्य से कम आने लगता है। हेजिटेशन टाइम भी बढ़ता है।
(४) क्योंकि मायो -लोमा मरीज़ के मामलों में रोगरोधी तंत्र के मुस्तैद सिपाहियों - वाइट ब्लड सेल्स- की संख्या भी कम हो जाती है इसीलिए बारहा होते रहने वाले इंफेक्शन (संक्रमण )मरीज़ का पिंड नहीं छोड़ते ,घेरे ही रहते हैं जब तब। क्योंकि इस रोग में एब्नॉर्मल प्रोटीनें (या एंटीबॉडीज़ )सामान्य रोगरोधी एंटीबॉडीज़ से ज्यादा हो जाती है इसलिए हमारा इम्यून सिस्टम ही कमज़ोर हो जाता है कम्प्रोमाइज़्ड इम्यून सिस्टम कहलाने लगता है।
अभिनव दवाएं ,इन दवाओं की किस्में ,जीनोम -चिकित्सा ,कस्टमाइज़्ड ट्रीटमेंट की और ले जाने में आगे बढ़ रहीं हैं उम्मीद की जा सकती है मायो -लोमा का पेचीला -पन कमतर होता जाएगा।
शीर्षक :मायलोमा इलाज़ में पेचीला -पन (Complications in Mayoloma Treatments )
सन्दर्भ -सामिग्री :
(१)https://www.themmrf.org/multiple-myeloma/multiple-myeloma-complications/
मूलतया यह पेचीलापन अस्थियों ,खून और हमारी किडनियों (गुर्दों )पर बुरा असर डालता है।
(१) अस्थि -ह्रास (bone loss )बड़ी एहम समस्या के रूप में ८५ फीसद मामलों में देखने में आया है। रीढ़ की गुर्री (Spine ),पसली -पिंजर (Rib Cage )और पेल्विस (Pelvis या श्रोणि प्रदेश )इसकी लपेट में आके असरग्रस्त होता है।
यूं बिस्फोस्फोनेट (bisphosphonates) या विकिरण चिकित्सा(Radiation Therapy ) इसकी रोकथान या उग्रता को कम करने के लिए काम में ली जाती है।
(२)खून की कमी (Anemia ) :मायो -लोमा सेल्स या कैंसर की चपेट में आई प्लाज़्मा सेल्स की संख्या के बे -तहाशा बढ़ते चले जाने से इस रोग में स्वस्थ प्लाज़्मा सेल्स (जो वाइट ब्लड सेल्स की ही एक किस्म होतीं हैं )के साथ -साथ ,रेडब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स की संख्या भी कम होती जाती है। यही वजह है के रोग के पुख्ता हो चुके मामलों में ६० फीसद तक मामलों में खून की कमी हो जाती है।
(३)गुर्दे अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं करते (Kidney Failure ):क्योंकि मायलोमा ग्रस्त व्यक्ति के मामलों में स्वस्थ प्लाज़्मा सामान्य प्रोटीनों के स्थान पर एब्नॉर्मल प्रोटीन (पैरा -प्रोटीन )और M-प्रोटीन बनाने लगतीं हैं साथ ही खून में कैल्शियम का स्तर बढ़ता जाता है इसलिए गुर्दों का खून को निथारते रहने फ़िल्टर करते रहने का काम बढ़ जाता है।यह काम अब न तो पूरा हो पाता न ठीक से ही होता है इसलिए पेशाब भी कम बनने लगता है ।सामन्य से कम आने लगता है। हेजिटेशन टाइम भी बढ़ता है।
(४) क्योंकि मायो -लोमा मरीज़ के मामलों में रोगरोधी तंत्र के मुस्तैद सिपाहियों - वाइट ब्लड सेल्स- की संख्या भी कम हो जाती है इसीलिए बारहा होते रहने वाले इंफेक्शन (संक्रमण )मरीज़ का पिंड नहीं छोड़ते ,घेरे ही रहते हैं जब तब। क्योंकि इस रोग में एब्नॉर्मल प्रोटीनें (या एंटीबॉडीज़ )सामान्य रोगरोधी एंटीबॉडीज़ से ज्यादा हो जाती है इसलिए हमारा इम्यून सिस्टम ही कमज़ोर हो जाता है कम्प्रोमाइज़्ड इम्यून सिस्टम कहलाने लगता है।
अभिनव दवाएं ,इन दवाओं की किस्में ,जीनोम -चिकित्सा ,कस्टमाइज़्ड ट्रीटमेंट की और ले जाने में आगे बढ़ रहीं हैं उम्मीद की जा सकती है मायो -लोमा का पेचीला -पन कमतर होता जाएगा।
शीर्षक :मायलोमा इलाज़ में पेचीला -पन (Complications in Mayoloma Treatments )
सन्दर्भ -सामिग्री :
(१)https://www.themmrf.org/multiple-myeloma/multiple-myeloma-complications/
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