बुधवार, 13 सितंबर 2017

घर -दुआरे,मांगलिक अवसरों पर मंदिरों के बाहर रंगोली क्यों सजाई (बनाई )जाती है ?

घर -दुआरे,मांगलिक अवसरों पर मंदिरों  के बाहर  रंगोली क्यों सजाई (बनाई )जाती है ?

रंगोली घर-दुआरे बनाना श्री लक्ष्मी जी का आवाहन करना है। धनसंपदा वैभव की खजांची हैं विष्णुपत्नी श्रीलक्ष्मीजी। रंगोली पूजा का प्रतीक है। गृहलक्ष्मी का मतलब है आपका घर लक्ष्मी का प्रकट रूप है प्राकट्य है मनिफेस्टेशन है गॉडेस आफ प्रॉस्पेरिटी का।

रंगोली सजाने के लिए अमूमन चावल का आटा (राइस फ्लोर )ही काम में लिया जाता है जो चींटियों का अन्य सूक्ष्म जीवों का अंततय : आहार बनता है ,कीट जगत से आपको जोड़ती है रंगोली। इस पूरी कायनात में परस्पर सब एक दूसरे से सम्पर्कित हैं कनेक्टिड हैं।

ख़ास मांगलिक मौकों पर विशेष देवताओं के पूजन के निमित्त रंगोली सजाई जाती है। दीक्षांत समारोह महा -विद्यालयों का विश्व -विद्यालयों का रंगोली का साक्षी बनता है -बिस्मिल्ला -खां  की शहनाई के स्वर और रंगोली की सजावट मौहोल को चार चाँद लगा देती है। शोभायात्रा इसी मांगलिक ध्वनि के साथ शुरू होती है।

दीगर है की रंगोली आपकी कलात्मकता की भी एक स -शक्त अभिव्यक्ति है। रंगोली जोश -औ - खरोश और पूजा दोनों का प्रतीक है। दीपावली ,पोंगल आदि पर्वों पर रंगोली की शान औ सजावट देखते ही बनती है।

स्वास्तिक डिज़ाइन के अपने निहितार्थ हैं रंगोली में -एक तरफ यह ओंकार का प्रतीक है दूसरी और कालचक्र का। स्वास्तिक चक्र की एक भुजा ऊपर जाती है तो एक नीचे ,एक दक्षिणांगी रहती है तो एक वामांगी। ऊर्ध्वगामी भुजा सतयुग और अधोगामी द्वापर(भौतिक  द्वन्द्व डायलेक्टिकल मटीरियलिज़्म ) को दर्शाती है वामांगी -कलयुग का प्रतीक है और दक्षिणांगी त्रेता का।

रंगोली में ज्यामितीय आकार यंत्रों को दर्शाते हैं जो इतर - देवों के पूजन हेतु हैं।


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