बुधवार, 20 सितंबर 2017

क्या सोच के बनाई रे तूने ये दुनिया ?

क्या सोच के बनाई रे तूने ये दुनिया ?

अक्सर यह मौज़ू सार्वकालिक बने रहने वाला सवाल पूछा जाता है :ईश्वर ने ये सृष्टि बनाई ही क्यों ?

 छान्दोग्य  -उपनिषद का ऋषि प्रश्न करता से कहता है :अपने सृजन से पहले ,अपने अस्तित्व से पहले ये विश्व (गोचर जगत )केवल सनातन अस्तित्व ही था -सत् ही था। यह विश्व अपने निर्माण से पहले  केवल सत् (ब्रह्मण ,Brahman )ही था। वन विदाउट ए सेकिंड। ठीक एक सेकिंड पहले केवल ब्रह्मण ही था (ब्रह्मा जी नहीं ). कोई कच्चा माल मटीरियल काज नहीं था उसके पास कायनात के रचाव के लिए। घड़े के निर्माण के लिए जैसे मृत्तिका (मटीरियल काज )और घड़ा बनाने का चाक (Potters Wheel ),उपकरण या  इंस्ट्रयूमेन्ट  नहीं था। अलबत्ता वह ब्रह्मण स्वयं इंटेलिजेंट या एफिशिएंट काज ज़रूर था। 

ब्रह्मण के पास एक वासना (इच्छा ,डिज़ायर ज़रूर थी )-मैं एक से अनेक हो जावूं। 

"May I Become Many "-Taittiriya Upnishad ,2-6 

इसका मतलब यह हुआ जिसे हम सृष्टि का प्रसव कहते हैं वह एक ही ब्रह्मण की बहुविध प्रतीति है। 

Creation is just an appearance .

यही तो माया है भ्रान्ति है। नित -परिवर्तनशील सृष्टि यदि वास्तविक होती रीअल होती तो उसका कोई कारण ज़रूर होता। 

रस्सी में सांप दिखलाई देना एक प्रतीति है सांप है नहीं और न ही रस्सी  सर्प में तब्दील हुई है।सर्प का दिखलाई देना एक प्रोजेक्शन है मानसी सृष्टि है ,हमारे मन का वहम है। 

अब क्योंकि कायनात वास्तविक नहीं है वर्चुअल है ,इसलिए कारण इसका कोई असल कारण हो नहीं सकता जिसकी तलाश की जाए। 

आपने एक विज्ञापन देखा होगा एक व्यक्ति सालों बाद अपने शहर में आता है टेक्सी में बैठा अपने ही शहर का ज़ायज़ा लेता है -चिल्लाता है ठहरो !ठहरो भाई !यहाँ एक बैंक था। इसी तरह दूसरी जगह पहुँचने पर कहता है यहां एटीम था ,वहां एअरपोर्ट था वह कहाँ गया। जो अभी है अभी नहीं है वही प्रतीति है माया है। 

इसे (माया को )परमात्मा की एक शक्ति कहा गया है नौकरानी भी। परमात्मा का बाहरी आवरण (वस्त्र )ही माया है। हमारा वस्त्र हमारा यह शरीर है। ब्रह्मण कॉमन है दोनों में।ठीक वैसे ही जैसे सृष्टि निर्माण से पहले विज्ञानी एक ही आदिम अणु (प्राइमीवल एटम )की बात करते हैं जो एक साथ सब जगह मौजूद था। तब न अंतरिक्ष था न काल, था तो बस एक अतिउत्तप्त ,अति -घनत्वीय स्थिति बिना आकार का ,शून्य कलेवर अस्तित्व था। ऐसे ही उपनिषद का ऋषि एक सत् (ब्रह्मण )की बात करता है। 

आप पूछ सकते हैं वह वासना (डिज़ायर )आई कहाँ से क्यों आई कि मैं एक से अनेक हो जावूं ?

आप रात भर की नींद के बाद सुबह सोकर कैसे उठ जाते हैं ?

क्या अलार्म क्लॉक की वजह से यदि आप कहें हाँ तो कई और क्यों सोते रहजाते हैं अलार्म की अनदेखी होते देखी  होगी आपने भी । पशुपक्षी क्यों उठ जाते हैं ?उनके पास तो कोई घड़ी  नहीं होती। उपनिषद का ऋषि इस बात का ज़वाब देता है अभी आपकी एषणाएं ,अन फिनिश्ड अजेंडा बाकी है।सुबह उठते ही आप मंसूबे अपने उस आज का ,उस रोज़ का कैज़ुअल बनाने लगते है  

फुर्सत मिली तो जाना सब काम हैं अधूरे ,

क्या करें जहां में दो हाथ आदमी के। 

अच्छे कभी बुरे हैं हालात आदमी के ,

पीछे पड़े हुए हैं दिन रात आदमी के। 

हमारा पुनर्जन्म भी इस अधूरे अजेंडे को पूरा करने के लिए ही होता है। जिसको जो अच्छा लगे करे। भला या बुरा खुली  छूट है।बहरसूरत  काज एन्ड इफेक्ट से कोई मुक्त नहीं है। करतम सो भोक्तम। जब तक आप ये न जान लेंगें ,आप ही ब्रह्मण हैं सत् हैं ईश्वर हैं यह जन्म मरण का सिलसिला बदस्तूर जारी रहेगा। 

ये कायनात ,इस सृष्टि का बारहा  प्रसव होना विलय (Dissolution )होना हम सबकी सम्मिलित वासनाओं की ही अभिव्यक्ति है। 

बिग बैंग सिद्धांत भी यही कहता है: बिग बैंग्स कम एन्ड गो ,दिस प्रेजेंट बैंग इज़ वन  आफ ए सीरीज़ आफ मैनी मोर ,इन्फेक्ट इनफाइनाइट बिग बैंग्स। सबकुछ चांदतारा ,नीहारिकाएं ,बनते बिगड़ते रहते हैं आवधिक तौर पर। उनका होना एक प्रतीति है। 

नींद के दौरान जैसे मैं अव्यक्त हो जाता हूँ ,मुझे अपने स्थूल शरीर का कोई बोध नहीं रहता ,लेकिन मेरा अंतर -सूक्ष्म -शरीर ,अवचेतन बाकायदा काम करता है।वासनाएं अभी भी शेष हैं लेकिन वह कारण शरीर में विलीन हो जाती हैं इस दरमियान। 

इफेक्ट का अपने काज में विलीन हो जाना ही सृष्टि का विलय (Dissolution )कहलाता है। काज का इफेक्ट के रूप में प्रकट होना किरयेशन है ,सृष्टि का पैदा होना है। काज सत् है ब्रह्मण है। 

स्वर्ण और स्वर्ण आभूषण स्वर्ण ही है लेकिन स्वर्ण से आभूषणों का बनना सृष्टि है स्वर्ण का अम्लों के एक ख़ास मिश्र में विलीन हो जाना घुल जाना विलय है।आभूषण स्वर्ण ही हैं अलग अलग रूपाकार एक प्रतीति है।  

पुनरपि जन्मम ,पुनरपि मरणम ,

पुनरपि जननी ,जठरे शरणम। 

एक प्रतिक्रिया ब्लॉग इंडियन साइंस ब्लागर्स एशोशिएशन की उल्लेखित पोस्ट पर :
http://blog.scientificworld.in/2016/07/how-god-create-world-hindi.html

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