बुढ़ापे का रोग अल्ज़ाइमर्स कुछ मिथ और यथार्थ
(१)महज मिथ है यह कहना मानना समझना ,बुढ़ापे का स्मृति ह्रास एक आनुवंशिक (खानदानी )बीमारी है जिसका सम्बन्ध हमारी आनुवंशिक रचना (जींस )से है। हमारे पर्यावरण के कुछ कारक (घटक )भी इसके लिए उत्तरदाई हो सकते हैं जिनकी शिनाख्त होने पर इलाज़ जल्दी शुरू हो सकता है।
(२) महज मिथ है यह मान लेना कि रोग का पता नहीं चलता है (रोग निदान मुमकिन नहीं है ).
यथार्थ यह है ९० फीसद तक इसका सही निदान (डायग्नोसिस )अब सम्भव है। रोगनिदान के नए नए उपाय आज उपलब्ध हैं इसलिए अब आरम्भिक चरण में ही रोग निदान कर लिया जाता है।
(३)तीसरा मिथ खामख्याली यह चली आई है कि दवाएं इसके इलाज़ में बे -असर रहतीं हैं।
यथार्थ यह है :दवाएं काम करतीं है नै नै दवाओं के कॉम्बो (कॉम्बिनेशन थिरेपी )रोग के बढ़ने की रफ़्तार को काम कर सकते हैं ,भले रोग पूर्व की अवस्था में न पहुंचा जा सके।
कुछ दवाएं जो आप लेते आएं हैं आपके रोग रोधी सुरक्षा कवच (इम्यून सिस्टम )के हाथ मजबूत करती रहती हैं।
(४ )मिथ यह भी चला आया है इसके होने इस रोग की चपेट में आने को मुल्तवी नहीं रखा जा सकता।
यथार्थ यह है आपकी खुराक ,कसरत ,तंदरुस्त जीवन शैली और बचावी चिकित्सा दवाएं इस रोग को मुल्तवी रखे रख सकतीं हैं।
मूलतया इसे पश्चिमी दुनिया खासकर अमरीका का रोग माना गया है भारत में इसे हम सठियाना कहकर टाल देते है।निरंतर कुछ न कुछ सीखते रहना लिखते पढ़ते रहना दिमाग को कुंद होने से बचाये रहता है। रोग से भी बचाव का एक उपाय है स्वाध्याय।
अभी अभी आपने क्या किया था यह आप बुढ़ापे में भूलते रहते हैं यही शार्ट टर्म मेमोरी लास इस रोग का एक लक्षण हैं। सूंघने की शक्ति (घ्राण शक्ति )भी काम हो सकती है जो रोग का आरंभिक और प्राथमिक लक्षण माना जा सकता है।
आज काग्निटिव रिहेबिलिटेशन तकनीकें ,रणनीतियां उपलब्ध हैं जो कारगर बचावी उपाय सिद्ध हो सकतीं हैं। यूं उम्र के साथ सब कुछ छीजता है दिमाग का आकार भी। इस रोग में भी दिमाग सिकुड़ने लगता है कौन अजूबा है ये।
संदर्भ -सामिग्री :
https://mail.google.com/mail/u/0/#inbox/15e91aa6f71ce2d8
(१)महज मिथ है यह कहना मानना समझना ,बुढ़ापे का स्मृति ह्रास एक आनुवंशिक (खानदानी )बीमारी है जिसका सम्बन्ध हमारी आनुवंशिक रचना (जींस )से है। हमारे पर्यावरण के कुछ कारक (घटक )भी इसके लिए उत्तरदाई हो सकते हैं जिनकी शिनाख्त होने पर इलाज़ जल्दी शुरू हो सकता है।
(२) महज मिथ है यह मान लेना कि रोग का पता नहीं चलता है (रोग निदान मुमकिन नहीं है ).
यथार्थ यह है ९० फीसद तक इसका सही निदान (डायग्नोसिस )अब सम्भव है। रोगनिदान के नए नए उपाय आज उपलब्ध हैं इसलिए अब आरम्भिक चरण में ही रोग निदान कर लिया जाता है।
(३)तीसरा मिथ खामख्याली यह चली आई है कि दवाएं इसके इलाज़ में बे -असर रहतीं हैं।
यथार्थ यह है :दवाएं काम करतीं है नै नै दवाओं के कॉम्बो (कॉम्बिनेशन थिरेपी )रोग के बढ़ने की रफ़्तार को काम कर सकते हैं ,भले रोग पूर्व की अवस्था में न पहुंचा जा सके।
कुछ दवाएं जो आप लेते आएं हैं आपके रोग रोधी सुरक्षा कवच (इम्यून सिस्टम )के हाथ मजबूत करती रहती हैं।
(४ )मिथ यह भी चला आया है इसके होने इस रोग की चपेट में आने को मुल्तवी नहीं रखा जा सकता।
यथार्थ यह है आपकी खुराक ,कसरत ,तंदरुस्त जीवन शैली और बचावी चिकित्सा दवाएं इस रोग को मुल्तवी रखे रख सकतीं हैं।
मूलतया इसे पश्चिमी दुनिया खासकर अमरीका का रोग माना गया है भारत में इसे हम सठियाना कहकर टाल देते है।निरंतर कुछ न कुछ सीखते रहना लिखते पढ़ते रहना दिमाग को कुंद होने से बचाये रहता है। रोग से भी बचाव का एक उपाय है स्वाध्याय।
अभी अभी आपने क्या किया था यह आप बुढ़ापे में भूलते रहते हैं यही शार्ट टर्म मेमोरी लास इस रोग का एक लक्षण हैं। सूंघने की शक्ति (घ्राण शक्ति )भी काम हो सकती है जो रोग का आरंभिक और प्राथमिक लक्षण माना जा सकता है।
आज काग्निटिव रिहेबिलिटेशन तकनीकें ,रणनीतियां उपलब्ध हैं जो कारगर बचावी उपाय सिद्ध हो सकतीं हैं। यूं उम्र के साथ सब कुछ छीजता है दिमाग का आकार भी। इस रोग में भी दिमाग सिकुड़ने लगता है कौन अजूबा है ये।
संदर्भ -सामिग्री :
https://mail.google.com/mail/u/0/#inbox/15e91aa6f71ce2d8
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