एआटिक वाल्व स्टेनोसिस :कारण और लक्षण
Aortic Valve Stenosis :Symptoms and Causes
ज़रूरी नहीं है हर मामले में इस रोग के लक्षण जिसमें महाधमनी रोशनदान उम्र के एक ख़ास पड़ाव पर पहुँचते पहुँचते (६० -७० साला होते -होते )संकरा पड़ने लगता है प्रकट ही हों। सालों साल ये लक्षण शांत (नदारद )रह सकते हैं ,मुखर तब होते हैं जब वाल्व इतना संकरा हो जाता है कि हृदय को रक्त पम्प करने में जरूरत से ज्यादा काम करना पड़ने लगता है और तो भो वह पूरी क्षमता के साथ रक्त पम्प करके महाधमनी के रास्ते शरीर के अन्य भागों को पूरी आपूर्ति नहीं कर करा पाता है।
ज़ाहिर है लक्षणों का प्राकट्य इस बात पर निर्भर करता है रोग किस चरण में है क्या रोग आरंभ का चरण चल रहा है या रोग लगातार चुपके चुपके बढ़ता रहा है और आप इस से अनजान रहे हैं।
चलिए कुछ प्रमुख लक्षणों की गिनती कर लेते हैं :
(१ )वाल्व के बंद होने से पैदा आवाज़ का असामान्य हो जाना ,लुब डुब के स्थान पर मरमर्स (सरसराहट ,सनसनी पैदा करने वाली आवाज़ स्टेथोस्कोप से छाती की सामान्य जांच के दौरान हृद माहिर को सुनाई देना।
(२ )चलने फिरने मेहनत का काम करने पर छाती से दर्द की लहर का उठकर आगे बढ़ना और आराम करने पर थम जाना यानी एंजाइना का पैन होना जिसका मतलब है हृदय को आंशिक तौर पर रक्त की आपूर्ति बाधित हो रही है।
(३ )काम के दौरान उनींदापन नीमहोशी
(४ )सैर करने काम करने के दौरान सांस का फूलना।
(५ )काम के व्यस्त घंटों में बेहद के थकान महसूस करना
(६ )दिल की धड़कनों की रफ़्तार का यकायक बढ़ जाना ,बीच -बीच में धड़कन का मिस होना ( Fluttering Heart Beat )
(७ )खुराक में कमी आना खासकर उन बच्चों के मामलों में ऐसा होते देखा गया है जो महाधमनी वाल्व के संकरेपन की चपेट में पैदा होने के बाद ही किसी वजह से आ गए हैं,जिसकी अनेक वजहें होतीं हैं।
(८ )बढ़वार के अनुरूप (रोग से असरग्रस्त होने की वजह से ) बच्चों के वजन का न बढ़ पाना
इलाज़ मुहैया न होने पर कालान्तर में हृद पेशी के कमज़ोर पड़ते चले जाने से इस रोग में हार्ट फेलियोर भी हो सकता है।रक्त आपूर्ति बुरी तरह असरग्रस्त होजाती है इस स्थिति में।
लक्षणों पर सरसरी निगाह डालने के बाद आइये अब इसके कारणों को खंगाला जाए :
हृदय (हृद्तंत्र )में चार खिड़कियाँ ुया वाल्व होतें हैं। इनका काम यह सुनिश्चित करना है ,रक्त संचरण सही दिशा और मार्ग से निर्बाध होता रहे। ये चार हैं क्रमश :
(१ )मिट्रल वाल्व (लेटिन भाषा में जिसका अर्थ होता है बिशप के हेट के आकार का )
(२ )ट्राइकस्पिड वाल्व (तीन पल्ले या लीफलेट्स लिए रहता है ये हृदय के दाएं अलिंद (प्रकोष्ठ )के मुंह से संयुक्त हुआ दाएं निलय (Right Ventricle )में आता है। संरचना में यह भी मिट्रल वाल्व से मिलता जुलता दिखता है। बस इसके पल्लू (या पल्ले Flaps या लीफलेट्स आकार में त्रिभुजाकार और संख्या में तीन होते हैं। )इसे राइट एटरियोवेंट्रिकुलर वाल्व भी कहा जाता है।
(३ )तीसरा पल्मोनरी वाल्व हृदय के दाएं निलय से चस्पां रहता है एक ही तरफ पल्मोनरी आर्टरी में खुलता है तथा इसीसे होकर रक्त हृद पेशी को छोड़ धमनियों की ओर बढ़ता है और चौथा होता है
(४ )ए-ओ -टिक वाल्व जो (महाधमनी और बाएं निलय के बीच रहता है )इसका काम रक्त को बाएं निलय में वापस आने से रोकना रहता है। इसका आकार सेमिलुनर यानी अर्द्ध चंद्राकार रहता है। संख्या में ये दो रहते हैं तथा इनमें से एक महाधमनी के मुंह तथा दूसरा पल्मोनरी आर्टरी के मुंह के पास स्थित होता है।
इनमें से प्रत्येक वाल्व में पल्ले (लीफलेट्स रहते हैं )तथा हरेक वाल्व एक हार्टबीट के दौरान एक मर्तबा खुलता तथा बंद होता है।
कई मर्तबा वाल्व खुल नहीं पाते हैं जिससे रक्त संचरण में अवरोध पैदा होता है। ऐसा होने पर हृदय के रक्त उठाने -ऊलीचने पम्प करके बाकी शरीर तक पहुंचाने की क्षमता भी कम होती है।
ए -ओ -टिक वाल्व स्टेनोसिस में ऐसा अवरोध ऐ -ओ -टिक वाल्व (महाधमनी रोशनदान )के साथ होता है। हम बतला चुके हैं ये वाल्व हृदय के बाएं प्रकोष्ठ और मुख्यधमनी के बीच रहता है जिसका मुख्यकाम बाकी शरीर को रक्त मुहैया करवाना होता है। इसीलिए इसे महाधमनी वाल्व अवरोध या महाधमनी वाल्व का संकरा हो जाना कहा जाता है। इस स्थिति में यह आधा अधूरा ही खुल बंद होपाता है।
ए -ओ -टिक वाल्व के संकरा पड़जाने पर बाएं निलय को ज्यादा श्रम करना पड़ता है, ताकि पहले महाधमनी तक और वहां से शेष शरीर को रक्तापूर्ति पर्याप्त मात्रा में हो सके। बाएं निलय पर दवाब बढ़ने इसके काम में वृद्धि होने से इसकी मोटाई बढ़ सकती है आकार भी। ऐसे में दिल और निलय दोनों कमज़ोर पड़ जाते हैं यही कमज़ोरी हार्टफेलियोर की वजह बन सकती है।
एक से ज्यादा वजहें हो सकतीं हैं ए -ओ -टिक वाल्व स्टेनोसिस की :
(१ )जन्मजात (Congenital Heart Defect )वजहों में इस वाल्व की बनावट में तीन के स्थान पर दो पल्ले (Bicuspid Valve )या फिर कभी कभार एक पल्ला(Unicuspid) तो कभी चार (Quadri-cuspid)भी हो सकते हैं। भले बचपना ऐसा होने पर भी बे -असर बना रहे लेकिन युवावस्था आने पर संकरेपन (Stenosis )की शुरुआत भी हो सकती है।
(२ )वाल्व केल्सिफिकेशन भी इस नैरोइंग की वजह बन सकता है। इस स्थिति में रक्त प्रवाह में मौजूद केल्सियम वाल्वों के गिर्द जमा हो जाता है।
ए -आटिक वाल्व स्टेनोसिस रोग की स्थिति में ए -ओ -टिक वाल्व के पल्ले भी इस केल्सियम जमावड़े की चपेट में आने लगते हैं। (अलबत्ता केल्सियम पुष्टिकृत पेय या फिर केल्सियम की गोलियों के सेवन से इस स्थिति का कोई लेना देना नहीं होता है। ).
भले आमतौर पर ये केल्सियम जमाव कुछ न भी करे लेकिन जन्मजात बनावट संबंधी दोष बाइकस्पिड वाल्व की स्थिति में ये जमाव पल्लों को कठोर बना सकता है। ये कठोरता ही वाल्व के संकरेपन (स्टेनोसिस यानी अवरोध )की वजह बन जाती है। अलबत्ता ओल्डर एज में सत्तर के पार अस्सी के पेटे में जो बुजुर्ग चले आते हैं उनमें ये केल्सियम जमाव और स्टेनोसिस लक्षणों के रूप में मुखरित होने लगते हैं।
(३)र्यूमैटिक फीवर में ए -ओ -टिक वाल्व की स्कारिंग हो सकती है ,दगैल ऊतक (स्कार टिस्यू )पनप सकते हैं इसके गिर्द। ऐसे में वाल्व की सतह के खुरदरा पड़ने पर केल्सियम जमाव को उकसावा मिलता है नतीजा होता है स्टेनोसिस। रहूमेटिक फीवर एक से ज्यादा वाल्वों को भी बहुबिध क्षति पहुंचा सकता है। इस टूट फुट के बाद वाल्व न ठीक से खुलते हैं न बंद हो पाते हैं।
सन्दर्भ -सामिग्री :http://www.mayoclinic.org/diseases-conditions/aortic-stenosis/symptoms-causes/dxc-20344145
Aortic Valve Stenosis :Symptoms and Causes
ज़रूरी नहीं है हर मामले में इस रोग के लक्षण जिसमें महाधमनी रोशनदान उम्र के एक ख़ास पड़ाव पर पहुँचते पहुँचते (६० -७० साला होते -होते )संकरा पड़ने लगता है प्रकट ही हों। सालों साल ये लक्षण शांत (नदारद )रह सकते हैं ,मुखर तब होते हैं जब वाल्व इतना संकरा हो जाता है कि हृदय को रक्त पम्प करने में जरूरत से ज्यादा काम करना पड़ने लगता है और तो भो वह पूरी क्षमता के साथ रक्त पम्प करके महाधमनी के रास्ते शरीर के अन्य भागों को पूरी आपूर्ति नहीं कर करा पाता है।
ज़ाहिर है लक्षणों का प्राकट्य इस बात पर निर्भर करता है रोग किस चरण में है क्या रोग आरंभ का चरण चल रहा है या रोग लगातार चुपके चुपके बढ़ता रहा है और आप इस से अनजान रहे हैं।
चलिए कुछ प्रमुख लक्षणों की गिनती कर लेते हैं :
(१ )वाल्व के बंद होने से पैदा आवाज़ का असामान्य हो जाना ,लुब डुब के स्थान पर मरमर्स (सरसराहट ,सनसनी पैदा करने वाली आवाज़ स्टेथोस्कोप से छाती की सामान्य जांच के दौरान हृद माहिर को सुनाई देना।
(२ )चलने फिरने मेहनत का काम करने पर छाती से दर्द की लहर का उठकर आगे बढ़ना और आराम करने पर थम जाना यानी एंजाइना का पैन होना जिसका मतलब है हृदय को आंशिक तौर पर रक्त की आपूर्ति बाधित हो रही है।
(३ )काम के दौरान उनींदापन नीमहोशी
(४ )सैर करने काम करने के दौरान सांस का फूलना।
(५ )काम के व्यस्त घंटों में बेहद के थकान महसूस करना
(६ )दिल की धड़कनों की रफ़्तार का यकायक बढ़ जाना ,बीच -बीच में धड़कन का मिस होना ( Fluttering Heart Beat )
(७ )खुराक में कमी आना खासकर उन बच्चों के मामलों में ऐसा होते देखा गया है जो महाधमनी वाल्व के संकरेपन की चपेट में पैदा होने के बाद ही किसी वजह से आ गए हैं,जिसकी अनेक वजहें होतीं हैं।
(८ )बढ़वार के अनुरूप (रोग से असरग्रस्त होने की वजह से ) बच्चों के वजन का न बढ़ पाना
इलाज़ मुहैया न होने पर कालान्तर में हृद पेशी के कमज़ोर पड़ते चले जाने से इस रोग में हार्ट फेलियोर भी हो सकता है।रक्त आपूर्ति बुरी तरह असरग्रस्त होजाती है इस स्थिति में।
लक्षणों पर सरसरी निगाह डालने के बाद आइये अब इसके कारणों को खंगाला जाए :
हृदय (हृद्तंत्र )में चार खिड़कियाँ ुया वाल्व होतें हैं। इनका काम यह सुनिश्चित करना है ,रक्त संचरण सही दिशा और मार्ग से निर्बाध होता रहे। ये चार हैं क्रमश :
(१ )मिट्रल वाल्व (लेटिन भाषा में जिसका अर्थ होता है बिशप के हेट के आकार का )
(२ )ट्राइकस्पिड वाल्व (तीन पल्ले या लीफलेट्स लिए रहता है ये हृदय के दाएं अलिंद (प्रकोष्ठ )के मुंह से संयुक्त हुआ दाएं निलय (Right Ventricle )में आता है। संरचना में यह भी मिट्रल वाल्व से मिलता जुलता दिखता है। बस इसके पल्लू (या पल्ले Flaps या लीफलेट्स आकार में त्रिभुजाकार और संख्या में तीन होते हैं। )इसे राइट एटरियोवेंट्रिकुलर वाल्व भी कहा जाता है।
(३ )तीसरा पल्मोनरी वाल्व हृदय के दाएं निलय से चस्पां रहता है एक ही तरफ पल्मोनरी आर्टरी में खुलता है तथा इसीसे होकर रक्त हृद पेशी को छोड़ धमनियों की ओर बढ़ता है और चौथा होता है
(४ )ए-ओ -टिक वाल्व जो (महाधमनी और बाएं निलय के बीच रहता है )इसका काम रक्त को बाएं निलय में वापस आने से रोकना रहता है। इसका आकार सेमिलुनर यानी अर्द्ध चंद्राकार रहता है। संख्या में ये दो रहते हैं तथा इनमें से एक महाधमनी के मुंह तथा दूसरा पल्मोनरी आर्टरी के मुंह के पास स्थित होता है।
इनमें से प्रत्येक वाल्व में पल्ले (लीफलेट्स रहते हैं )तथा हरेक वाल्व एक हार्टबीट के दौरान एक मर्तबा खुलता तथा बंद होता है।
कई मर्तबा वाल्व खुल नहीं पाते हैं जिससे रक्त संचरण में अवरोध पैदा होता है। ऐसा होने पर हृदय के रक्त उठाने -ऊलीचने पम्प करके बाकी शरीर तक पहुंचाने की क्षमता भी कम होती है।
ए -ओ -टिक वाल्व स्टेनोसिस में ऐसा अवरोध ऐ -ओ -टिक वाल्व (महाधमनी रोशनदान )के साथ होता है। हम बतला चुके हैं ये वाल्व हृदय के बाएं प्रकोष्ठ और मुख्यधमनी के बीच रहता है जिसका मुख्यकाम बाकी शरीर को रक्त मुहैया करवाना होता है। इसीलिए इसे महाधमनी वाल्व अवरोध या महाधमनी वाल्व का संकरा हो जाना कहा जाता है। इस स्थिति में यह आधा अधूरा ही खुल बंद होपाता है।
ए -ओ -टिक वाल्व के संकरा पड़जाने पर बाएं निलय को ज्यादा श्रम करना पड़ता है, ताकि पहले महाधमनी तक और वहां से शेष शरीर को रक्तापूर्ति पर्याप्त मात्रा में हो सके। बाएं निलय पर दवाब बढ़ने इसके काम में वृद्धि होने से इसकी मोटाई बढ़ सकती है आकार भी। ऐसे में दिल और निलय दोनों कमज़ोर पड़ जाते हैं यही कमज़ोरी हार्टफेलियोर की वजह बन सकती है।
एक से ज्यादा वजहें हो सकतीं हैं ए -ओ -टिक वाल्व स्टेनोसिस की :
(१ )जन्मजात (Congenital Heart Defect )वजहों में इस वाल्व की बनावट में तीन के स्थान पर दो पल्ले (Bicuspid Valve )या फिर कभी कभार एक पल्ला(Unicuspid) तो कभी चार (Quadri-cuspid)भी हो सकते हैं। भले बचपना ऐसा होने पर भी बे -असर बना रहे लेकिन युवावस्था आने पर संकरेपन (Stenosis )की शुरुआत भी हो सकती है।
(२ )वाल्व केल्सिफिकेशन भी इस नैरोइंग की वजह बन सकता है। इस स्थिति में रक्त प्रवाह में मौजूद केल्सियम वाल्वों के गिर्द जमा हो जाता है।
ए -आटिक वाल्व स्टेनोसिस रोग की स्थिति में ए -ओ -टिक वाल्व के पल्ले भी इस केल्सियम जमावड़े की चपेट में आने लगते हैं। (अलबत्ता केल्सियम पुष्टिकृत पेय या फिर केल्सियम की गोलियों के सेवन से इस स्थिति का कोई लेना देना नहीं होता है। ).
भले आमतौर पर ये केल्सियम जमाव कुछ न भी करे लेकिन जन्मजात बनावट संबंधी दोष बाइकस्पिड वाल्व की स्थिति में ये जमाव पल्लों को कठोर बना सकता है। ये कठोरता ही वाल्व के संकरेपन (स्टेनोसिस यानी अवरोध )की वजह बन जाती है। अलबत्ता ओल्डर एज में सत्तर के पार अस्सी के पेटे में जो बुजुर्ग चले आते हैं उनमें ये केल्सियम जमाव और स्टेनोसिस लक्षणों के रूप में मुखरित होने लगते हैं।
(३)र्यूमैटिक फीवर में ए -ओ -टिक वाल्व की स्कारिंग हो सकती है ,दगैल ऊतक (स्कार टिस्यू )पनप सकते हैं इसके गिर्द। ऐसे में वाल्व की सतह के खुरदरा पड़ने पर केल्सियम जमाव को उकसावा मिलता है नतीजा होता है स्टेनोसिस। रहूमेटिक फीवर एक से ज्यादा वाल्वों को भी बहुबिध क्षति पहुंचा सकता है। इस टूट फुट के बाद वाल्व न ठीक से खुलते हैं न बंद हो पाते हैं।
सन्दर्भ -सामिग्री :http://www.mayoclinic.org/diseases-conditions/aortic-stenosis/symptoms-causes/dxc-20344145
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