गुरुवार, 28 सितंबर 2017

नाम काम बिहीन पेखत धाम, हूँ नहि जाहि , सरब मान सरबतर मान ,सदैव मानत ताहि। एक मूरति अनेक दरशन ,कीन रूप अनेक , खेल खेल अखेल खेलन ,अंत को फिर एक

मूलमंत्र (गुरु ग्रन्थ साहब का पसारा -भाव -सार अंग्रेजी और हिंदी दोनों मे ):

Mool Mantra :

"Ekonkar ,Satnam ,Karta-purakh ,Nirbhya ,Nirvair ,

Akal -Murat ,Ajuni, Saibhang ,Gur Parsadi "


Creator and His Creation (made up  of the mode of good - ness,mode of action and mode of ignorance,Sat ,Rajo ,Tamo  ) are one -"Ek Ongkaar"

He is outside time and is present now ,was present then ,   and  will be present  in the future .His existence is the only truth . -"Satnam "

He is the creativity which is happening and not the doer .Whatever is happening is happening because of the truth existence (Satnam )-"Karta Purakh "

He is without fear since there is only God and no second.He is revenge less , He is without an enemy .-"Nirbhya Nirvair "

His reflection (Image )does not change with time .He is beyond all species.He is neither male nor female.His image is beyond time and is without a form .-"Akaal Moorat "

He is not one of the species and does not enter the womb of a mother's uterus .He is without a body and hence anatomy and is all pervading present every where now then and in the  future at the same time ."Nanak" is a light of enlighenment  which is shown on to Nanaku -The Body of Gurunanak dev ,who had parents .Nanak has none .-"Ajooni" .

He is self illuminating ,self luminous ,self irradiated ."Sabhang "

The same light "Jot"travels through Nanaku to Guru Govind Singh Ji.

Vaah -Guru !

My Guru is wonderful .

He is the macro -cosmic supra -consciousness. He is everlasting bliss .-"Gur Parsadi "

भाव -सार :

सृष्टि -करता और सृष्टि ,रचता और रचना एक ही है।करता और कृति , रचना उस रचता की ही साकार अभिव्यक्ति है। उसका अस्तित्व काल -बद्ध एक अवधि मात्र ,एक टेन्योर भर नहीं है उसका अस्तित्व ही एक मात्र सत्य है ,सनातन है -आज भी वही सत्य है कल भी वही था और आइंदा भी वही रहेगा। इसीलिए कहा गया वही सत्य है सत्य उसी का नाम है (राम नाम सत्य है -भी इसीलिए कहा  जाता है ).. यह सृष्टि एक प्रतीति है जस्ट  एन  एपीरिएंस। उसका नाम ही एक मात्र सत्य है। 

जो कुछ भी घट रहा है बढ़ रहा है यहां सारा सृजन ,सारी गति ,इलेक्ट्रॉन की धुक -धुक ,परिक्रमा  और नर्तन ,कर्म -शीलता उसी से है। करता नहीं है वह दृष्टा है इस कायनात का। 

नाम काम बिहीन पेखत धाम, हूँ नहि जाहि ,

सरब मान सरबतर मान ,सदैव मानत ताहि। 

एक मूरति अनेक दरशन ,कीन रूप अनेक ,

खेल खेल अखेल खेलन ,अंत को फिर एक। 

उसके अलावा और किसी का अस्तित्व है ही नहीं जो दीखता है उसकी ही माया है। इसी माया की वजह से वह खुद अगोचर बना रहता। 

इसीलिए वह निर्भय-निर्वैर है -

न काहू से दोस्ती ,न काहू से वैर,
कबीरा खड़ा सराय में ,सबकी चाहे खैर। 

उसका कोई रूप नहीं वह अरूप है। निराकार -निरंजन है वह इसीलिए सर्व -व्यापक सब थां पर हैं। उसकी छवि आभा कांति रिफ्लेक्शन या इमेज समय के साथ छीजती बदलती नहीं है। उसका कोई रूप नहीं है और सब रूप उसी के हैं। कोई एक धाम नहीं है और सब धाम उसी के हैं। वह विरोधी गुणों का प्रतिष्ठान है। 

वह किसी माँ के गर्भ में न आता है न जाता है। 

"पुनरपि जन्मम ,पुनरपि मरणम ,

पुनरपि जननी जठरे शरणम् ". 

यह उक्ति  हम प्राणियों के लिए है। वह न कहीं आता है न कहीं  जाता है। वह  दूर से दूर भी है और नेड़े से भी नेड़े निकटतम भी है ,हृद गुफा में वही तो है ,मेरा रीअल सेल्फ। 

वह स्वयं प्रकट  हुआ है ,स्वयं आलोकित है। सर्वत्र उसी का यह आलोक है। स्वयं -भू है वह। 

चेतन (गुर )वही है -परम चेतना भी। वह ऐसा आनंद है (परसादि )जो समय के साथ कम नहीं होता है। व्यष्टि  के स्तर पर वही "आत्मा" है ,समष्टि  के तल पर "परमात्मा"।"मैं" भी वही हूँ "तू" भी वही है। फर्क है तो बस उसके और मेरे (हमारे )परिधानों ,कपड़ों में है। मेरे कपड़े मेरा यह तन है जिसे मैं अपना निजस्वरूप माने बैठा हूँ ,यह अज्ञान मेरे अहंकार से ही आया है। उसके वस्त्र माया है। त्रिगुणात्मक (सतो -रजो -तमो गुणी सृष्टि )है।

माया में प्रतिबिंबित ब्रह्म को  ही ईश्वर कहा गया है। ब्रह्म के भी दो स्वरूप हैं 

(१ )अपर ब्रह्म और :अपर ब्रह्म ही माया में प्रतिबिंबित ब्रह्म होता है 

(२ )परब्रह्म या पारब्रह्म  परमचेतन तत्व है "गुरप्रसादि "का "गुर "
है। परमव्यापक चेतना है। 

विज्ञानी कहते हैं सृष्टि भौतिक तत्वों से बनी है -बिगबेंग प्रसूत ऊर्जा से इसकी निर्मिति हुई है। लेकिन आध्यात्मिक सनातन दृष्टि इसे परम -चेतना "गुर "ही मानती है। 

जयश्रीकृष्ण। 

महाकवि पीपा कहते हैं :

 सगुण  मीठो खांड सो ,निर्गुण कड़वो नीम ,

जाको  गुरु जो परस दे ,ताहि प्रेम सो जीम। 

मानस में तुलसी बाबा कहते हैं :

जाकी रही भावना जैसी ,

प्रभु मूरति देखि तीन तैसी। 

शिवजी पार्वती जी से मानस के ही एक प्रसंग में अपना अनुभव कहते हैं :

उमा कहूँ मैं अनुभव अपना ,

सत हरिभजन जगत सब सपना। 

यानी संसार एक प्रतीति मात्र है सत्य केवल "सतनाम 'ही है। 

सन्दर्भ :https://www.youtube.com/watch?v=fCehIP7AQBI

वाहे गुरु जी का खालसा वह गुरूजी की फतह।  

Reference :

(1)https://www.youtube.com/watch?v=W9Q69tkRRVI

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