मंगलवार, 12 सितंबर 2017

पुजारी ईश की आरती उतारने के बाद आरती का थाल भक्तों तक लाता है,इसका क्या मतलब होता है ?

पुजारी ईश की आरती उतारने के बाद आरती का थाल भक्तों तक लाता है,इसका क्या मतलब होता है ?

अक्सर पूजा के प्रकार के अनुसार दीपशिखा एक से लेकर पांच लौ वाली भी होती है। जो पांच कोशों का प्रतीक है (Five sheaths of life force).दरसल जो शिखा (फ्लेम ,दीप  की लौ -ज्योति )ईश को आलोकित कर चुकी है उसका संपर्क ईश से हो चुका है। अब वह साधारण ज्योति नहीं रही है जैसे ईश्वर पर अर्पण करने के बाद प्रसाद में अर्पित खाद्य सामिग्री अब प्रसाद ही कहलाती है केला अब मात्र केला नहीं रहा ,प्रसाद (परसादा )बन गया। वैसे ही यह ज्योत अब आशीष प्राप्त ज्योत है ,भक्त इसके ऊपर अपने हाथों की हथेली पलांश को रखता है फिर इसका स्पर्श अपनी आँखों से कराता है।ऐसा करके वह अनुग्रह प्राप्त करता है ईश की।  पुजारी यहां गुरु समान ज्ञान उजास कर मय -ईश- अर्पित- ज्योत के रागद्वेष ,ईरखा (ईर्षा )आदि नकारात्मक वृतियों का नास कर रहा है। यही निहितार्थ हैं भक्तों तक आरती लाने का। 

हाँ एक बात और अर्थ ,पुष्पम पत्रं के रूप में हम जो भी कुछ ईश को अर्पित करते हैं। वह उसे स्वीकारता है। ये नहीं है कि ईश्वर को कुछ पदार्थ चाहिए वह तो आपकी मुक्ति तनमन धन समर्पण ,का प्रतीक है रुपया पैसा डॉलर जो भी आप समर्पित करते हैं इस सम -अर्पण  भाव से आप अपने अहम (अहंता भाव से )मुक्त होते हैं। ईश्वर तो स्वयं दाता है अलबत्ता संस्था को चलाये रखने उसके रख रखाव के लिए अर्थ (पदार्थ )भी चाहिए। फिर आपके पास अपना है क्या सब कुछ तो उसी का दिया हुआ है। इसीलिए कहा गया -तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा। 

2 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

बढ़िया जानकारी

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (13-09-2017) को
"कहीं कुछ रह तो नहीं गया" (चर्चा अंक 2726)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक