अब तक हमने पढ़ा कि मायलोमा प्लाज़्मा कोशिकाओं का कैंसर होता है जो बोनमैरो (अस्थि मज़्ज़ा) में पायी जाती हैं। और यह भी कि बोनमैरो एक स्पंजी पदार्थ होता है हमारी हड्डियों के अंदरूनी केंद्रीय भाग में। हिप ,ब्रेस्ट ,हाथ -पैरों की हड्डियां ,पसलियां और रीढ़ -हमारी वे मुख्य अस्थियां हैं जहां अस्थि -मज़्ज़ा प्लाज़्मा कोशिकाएं खासी संख्या में मौजूद रहती हैं ।
आइये अब देखते हैं ,बोनमैरो और मास्टर सेल्स (स्टेम सेल्स या कलम कोशिकाओं )का परस्पर क्या सम्बन्ध रहता है?
गर्भस्थ -भ्रूण जब बा -मुश्किल पंद्रह दिन का होता है तब वह इन मास्टर सेल्स का ही जमघट होता है जो इस समय अवधि में सब अन-डिफ्रेंशियेटिड होने के कारण इस चरण में यकसां ही प्रतीत होतीं हैं लेकिन ये एक ख़ास सॉफ्टवेयर लिए रहतीं हैं जो ये तय करता है इनमें से किसको क्या अंग शरीर का रचना है।
बोनमैरो ही इनअपरिपक्व सेल्स का रचनाकार होता है जनक या सृष्टा होता है जो आगे चलकर तीन किस्म की कोशिकाएं तैयार करतीं हैं :
(१)लाल रुधिर कणिकाएं (या कोशाएं )जो तमाम कोशाओं को आक्सीजन पहुंचाने वाले वाहन का काम करतीं हैं।
(२ )प्लेटलेट जो चमड़ी के कट -फट जाने पर रक्त बहते रहने से रोकतीं हैं थक्का बनाने का महत्वपूर्ण काम करती हैं।
(३)श्वेत रुधितर कणिकाएं (या कोशिकाओं )का काम किसी भी प्रकार के आक्रान्ता रोगलकारकों से पैदा संक्रमण (Infection caused by invader pathogens )से मोर्चा लेना होता है।
प्लाज़्मा कोशिकाएं इन्हीं की एक ख़ास किस्म होतीं हैं जो हमारे रोगरोधी तंत्र (Immune system )के प्रहरी सिपाही हैं।
जैसा हम पिछले आलेख में जान समझ सके हैं मायेलोमा इन्हीं प्लाज़्मा कोशिकाओं को असरग्रस्त करके नाकारा बना देता है। प्लाज़्मा कोशिकाएं इम्म्यूनो -ग्लोब्युलिन तैयार करतीं हैं जो प्रतिपिंड होते हैं। रक्त संचरण में शामिल होकर यही एंटीबाडीज़ आतताई विषाणुओं और जीवाणुओं पर धावा बोल देती हैं।किसी भी प्रकार के संक्रमण (Infection )की स्थिति में बोनमैरो ज्यादा प्लाज़्मा कोशिकाएं बनाने लगती है।अब सामान्य से ज्यादा इम्युनोग्लोबुलिन तैयार होने लगता है, ताकि इंफेक्शन के कारकों से ठीक निपटा जा सके।
प्लाज़्मा कोशिकाओं द्वारा तैयार किया गया इम्म्यूनोग्लोबुलिं प्रोटीनों का बना होता है। ये प्रोटीनें परस्पर गुथी रहती हैं और एक श्रृंखला या जंजीर (chain )बनाती हैं। बड़ी या छोटी। इनमें बड़ी जंजीरों को हेवी तथा छोटी को लाइट कह दिया जाता है।
बड़ी जंजीरे पांच किस्म की होती है जैसा आप गत आलेख में पढ़ चुके हैं जिन्हें क्रमश :इम्यूनो -ग्लोब्युलिन G,A,D,E तथा IgM कहा जाता है यहां Ig इम्यूनो -ग्लोब्युलिन के लिए प्रयुक्त हुआ है। G,A,D,E तथा M जिसकी किस्में हैं।
लाइट चेन दो किस्म की होती हैं जिन्हें कप्पा और लेम्ब्डा (लैम्डा )कहा जाता है।
हरेक इम्यूनो -ग्लोब्युलिन दो हेवी तथा दो लाइट चेनों का संयुक्तरूप होतीं हैं।
क्या होता है प्लाज़्मा कोशिकाओं और इम्यूनो -ग्लोब्युलिनों को माये -लोमा में ?
सामन्य (रोग मुक्त अवस्था )में नै प्लाज़्मा कोशिकाएं नियंत्रित एवं संयत तरीके से टूट -फुट चुकी मृतप्राय प्लाज़्मा कोशिकाओं का स्थान ले लेती हैं। लेकिन माये -लोमा की चपेट में आने पर प्लाज़्मा कोशिकाओं पर से नियंत्रण का तंत्र ढह जाने से कैंसर ग्रस्त (माये -लोमा सेल्स )प्लाज़्मा कोशिकाएं बे -हिसाब बढ़ने लगतीं हैं।जहां जहां भी प्लाज़्मा कोशिकाएं होती हैं हो सकतीं हैं अब वहां- वहां माये -लोमा सेल्स (कैंसर ग्रस्त प्लाज़्मा सेल्स )पनपने लगती हैं बे -हिसाब।इस प्रकार जहां जहां भी अस्थि मज़्ज़ा है अब वहां वहां माये -लोमा है इसीलिए इसे मल्तिपिल माये -लोमा भी कहा गया है। यानी शरीर के उन उन अंगों को ये असरग्रस्त करता है जहां जहां अस्थि मज़्ज़ज़ा है प्रकारंतर से प्लाज़्मा है।
इस प्रकार माये -लोमा सेल्स अस्थि मज़्ज़ा को पाट देती हैं भर देतीं हैं रोगग्रस्त कोशिकाओं से। तथा रेड ब्लड ,वाइट -सेलों तथा प्लेटलेट के उत्पादन की सामन्य प्रक्रिया को ठप्प करवा देती हैं। इसका नतीजा यह होता है अस्थि ही छीजने लगती है नष्ट भी हो सकती है ,दर्द हो सकता है अस्थियों में ,हड्डियां टूटने भी लगतीं हैं माये -लोमा में।
लाइटिक लीश्जन (Lytic Lesion) कहा जाता है उस क्षेत्र को जहां की अस्थि विनष्ट हो चुकी है या फिर नष्ट प्राय: अवस्था में आ गई है।
आमतौर पर माये -लोमा कोशिकाएं एक ही प्रकार की इम्यूनो-ग्लोब्युलिन बना पातीं हैं वह भी असामान्य किस्म की नाकारा प्रोटीन ही होती है। इंफेक्शन से नहीं जूझ पातीं हैं ये एब्नॉर्मल इम्युनोग्लोबुलिन अलावा इसके ये सामान्य किस्म के इम्यूनोग्लोबुलिन (normal imyunoglobulins )की मात्रा को भी घटवा देतीं हैं।
एब्नॉर्मल इम्युनोग्लोबुलिन को पैरा -प्रोटीन या फिर M प्रोटीन कहा जाता है।
कुल मिलाकर माये -लोमा की वजह बनतीं हैं :
(१ )बोनमैरो में माये -लोमा सेलों की दस्तक
(२)नार्मल (सामन्य किस्म की )रक्त कोशिकाओं की संख्या में गिरावट का दर्ज़ होना।
(३ )पैराप्रोटीनों का असरग्रस्त व्यक्ति के रक्त और पेशाब में जांच करने पर मिलना।
सन्दर्भ -सामिग्री :
http://www.macmillan.org.uk/information-and-support/myeloma/understanding-cancer/what-is-myeloma.html
आइये अब देखते हैं ,बोनमैरो और मास्टर सेल्स (स्टेम सेल्स या कलम कोशिकाओं )का परस्पर क्या सम्बन्ध रहता है?
गर्भस्थ -भ्रूण जब बा -मुश्किल पंद्रह दिन का होता है तब वह इन मास्टर सेल्स का ही जमघट होता है जो इस समय अवधि में सब अन-डिफ्रेंशियेटिड होने के कारण इस चरण में यकसां ही प्रतीत होतीं हैं लेकिन ये एक ख़ास सॉफ्टवेयर लिए रहतीं हैं जो ये तय करता है इनमें से किसको क्या अंग शरीर का रचना है।
बोनमैरो ही इनअपरिपक्व सेल्स का रचनाकार होता है जनक या सृष्टा होता है जो आगे चलकर तीन किस्म की कोशिकाएं तैयार करतीं हैं :
(१)लाल रुधिर कणिकाएं (या कोशाएं )जो तमाम कोशाओं को आक्सीजन पहुंचाने वाले वाहन का काम करतीं हैं।
(२ )प्लेटलेट जो चमड़ी के कट -फट जाने पर रक्त बहते रहने से रोकतीं हैं थक्का बनाने का महत्वपूर्ण काम करती हैं।
(३)श्वेत रुधितर कणिकाएं (या कोशिकाओं )का काम किसी भी प्रकार के आक्रान्ता रोगलकारकों से पैदा संक्रमण (Infection caused by invader pathogens )से मोर्चा लेना होता है।
प्लाज़्मा कोशिकाएं इन्हीं की एक ख़ास किस्म होतीं हैं जो हमारे रोगरोधी तंत्र (Immune system )के प्रहरी सिपाही हैं।
जैसा हम पिछले आलेख में जान समझ सके हैं मायेलोमा इन्हीं प्लाज़्मा कोशिकाओं को असरग्रस्त करके नाकारा बना देता है। प्लाज़्मा कोशिकाएं इम्म्यूनो -ग्लोब्युलिन तैयार करतीं हैं जो प्रतिपिंड होते हैं। रक्त संचरण में शामिल होकर यही एंटीबाडीज़ आतताई विषाणुओं और जीवाणुओं पर धावा बोल देती हैं।किसी भी प्रकार के संक्रमण (Infection )की स्थिति में बोनमैरो ज्यादा प्लाज़्मा कोशिकाएं बनाने लगती है।अब सामान्य से ज्यादा इम्युनोग्लोबुलिन तैयार होने लगता है, ताकि इंफेक्शन के कारकों से ठीक निपटा जा सके।
प्लाज़्मा कोशिकाओं द्वारा तैयार किया गया इम्म्यूनोग्लोबुलिं प्रोटीनों का बना होता है। ये प्रोटीनें परस्पर गुथी रहती हैं और एक श्रृंखला या जंजीर (chain )बनाती हैं। बड़ी या छोटी। इनमें बड़ी जंजीरों को हेवी तथा छोटी को लाइट कह दिया जाता है।
बड़ी जंजीरे पांच किस्म की होती है जैसा आप गत आलेख में पढ़ चुके हैं जिन्हें क्रमश :इम्यूनो -ग्लोब्युलिन G,A,D,E तथा IgM कहा जाता है यहां Ig इम्यूनो -ग्लोब्युलिन के लिए प्रयुक्त हुआ है। G,A,D,E तथा M जिसकी किस्में हैं।
लाइट चेन दो किस्म की होती हैं जिन्हें कप्पा और लेम्ब्डा (लैम्डा )कहा जाता है।
हरेक इम्यूनो -ग्लोब्युलिन दो हेवी तथा दो लाइट चेनों का संयुक्तरूप होतीं हैं।
क्या होता है प्लाज़्मा कोशिकाओं और इम्यूनो -ग्लोब्युलिनों को माये -लोमा में ?
सामन्य (रोग मुक्त अवस्था )में नै प्लाज़्मा कोशिकाएं नियंत्रित एवं संयत तरीके से टूट -फुट चुकी मृतप्राय प्लाज़्मा कोशिकाओं का स्थान ले लेती हैं। लेकिन माये -लोमा की चपेट में आने पर प्लाज़्मा कोशिकाओं पर से नियंत्रण का तंत्र ढह जाने से कैंसर ग्रस्त (माये -लोमा सेल्स )प्लाज़्मा कोशिकाएं बे -हिसाब बढ़ने लगतीं हैं।जहां जहां भी प्लाज़्मा कोशिकाएं होती हैं हो सकतीं हैं अब वहां- वहां माये -लोमा सेल्स (कैंसर ग्रस्त प्लाज़्मा सेल्स )पनपने लगती हैं बे -हिसाब।इस प्रकार जहां जहां भी अस्थि मज़्ज़ा है अब वहां वहां माये -लोमा है इसीलिए इसे मल्तिपिल माये -लोमा भी कहा गया है। यानी शरीर के उन उन अंगों को ये असरग्रस्त करता है जहां जहां अस्थि मज़्ज़ज़ा है प्रकारंतर से प्लाज़्मा है।
इस प्रकार माये -लोमा सेल्स अस्थि मज़्ज़ा को पाट देती हैं भर देतीं हैं रोगग्रस्त कोशिकाओं से। तथा रेड ब्लड ,वाइट -सेलों तथा प्लेटलेट के उत्पादन की सामन्य प्रक्रिया को ठप्प करवा देती हैं। इसका नतीजा यह होता है अस्थि ही छीजने लगती है नष्ट भी हो सकती है ,दर्द हो सकता है अस्थियों में ,हड्डियां टूटने भी लगतीं हैं माये -लोमा में।
लाइटिक लीश्जन (Lytic Lesion) कहा जाता है उस क्षेत्र को जहां की अस्थि विनष्ट हो चुकी है या फिर नष्ट प्राय: अवस्था में आ गई है।
आमतौर पर माये -लोमा कोशिकाएं एक ही प्रकार की इम्यूनो-ग्लोब्युलिन बना पातीं हैं वह भी असामान्य किस्म की नाकारा प्रोटीन ही होती है। इंफेक्शन से नहीं जूझ पातीं हैं ये एब्नॉर्मल इम्युनोग्लोबुलिन अलावा इसके ये सामान्य किस्म के इम्यूनोग्लोबुलिन (normal imyunoglobulins )की मात्रा को भी घटवा देतीं हैं।
एब्नॉर्मल इम्युनोग्लोबुलिन को पैरा -प्रोटीन या फिर M प्रोटीन कहा जाता है।
कुल मिलाकर माये -लोमा की वजह बनतीं हैं :
(१ )बोनमैरो में माये -लोमा सेलों की दस्तक
(२)नार्मल (सामन्य किस्म की )रक्त कोशिकाओं की संख्या में गिरावट का दर्ज़ होना।
(३ )पैराप्रोटीनों का असरग्रस्त व्यक्ति के रक्त और पेशाब में जांच करने पर मिलना।
सन्दर्भ -सामिग्री :
http://www.macmillan.org.uk/information-and-support/myeloma/understanding-cancer/what-is-myeloma.html
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