राजनीति की फसल पकने लगी ,
आज़मों को बदजुबानी आ गई.
देखिये श्यामा औ सुरभि ,नंदिनी
लालुओं से मुंह छिपाने आ गईं।
टकटकी ललुवा की जब से है लगी ,
कामधेनु की भी शामत आ गई।
कृष्ण आकर कंस का फिर वध करो ,
महाठगनी रजनीति फिर आ गई।
बेहतरीन ग़ज़ल शास्त्री जी की
एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :
सभ्यता बातें बनाने आ गयी
दाग़ दामन में लगाने आ गयी
पड़ गयीं जब पेट में दो रोटियाँ
मस्जिदों में भी अजाने आ गयीं
मन्दिरों में आरती होने लगीं
बेजुबानों में जुबानें आ गयीं
बस गयीं अब बीहड़ों में बस्तियाँ
चल के शहरों से दुकानें आ गयीं
कंकरीटों की फसल उगने लगीं
नस्ल नूतन कहर ढाने आ गयीं
“रूप” को पर्वत बदलने लग गये
नग्नता सूरत दिखाने आ गयी
बेजुबानों में जुबानें आ गयीं
बस गयीं अब बीहड़ों में बस्तियाँ
चल के शहरों से दुकानें आ गयीं
कंकरीटों की फसल उगने लगीं
नस्ल नूतन कहर ढाने आ गयीं
“रूप” को पर्वत बदलने लग गये
नग्नता सूरत दिखाने आ गयी
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