सत्संग से कुछ फूल
मनुष्य जिस मार्ग से आता है वह मलद्वार के काफी नज़दीक है। ज़ाहिर है अपवित्र मार्ग से जीव इस जगत में आया है लेकिन कुछ काम तो ऐसा कर चले कि जाने का मार्ग अपवित्र न मिले। पवित्रता और प्रेम धारण करने के लिए यह मनुष्य शरीर मिला है। जहां पवित्रता है वहां प्रेम है और जहां प्रेम है वहां पवित्रता है। हरि हर को प्रेम करते हैं और हर हरि को ,दोनों एक दूसरे के साथ सहजीवन बनाये रहतें हैं।
गोकुल गाय से है ,गोविन्द गाय से है ,गोवर्धन गाय से है ,गोलोक गाय से है। ब्रज और वृन्दावन गाय से हैं यहां तक की पृथ्वी गाय से है। जब जब पृथ्वी पर शैतानों का आतंक बढ़ा है पृथ्वी गाय का भेष धरके ही सत्यलोक में ब्रह्माजी के पास गई है (श्रीमद्भागवद पुराण ),गाय की सेवा सबसे बड़ा धर्म है।
कृष्ण रस हैं ,प्रिया जी (श्री जी )भाव हैं। राधा जी कान्त भाव हैं। कृष्ण में नमक का ऐश्वर्य मिला हुआ है। राधा मेघद्वारा किया गया परिवर्षण हैं सागर के जल का ,सागर का जल कृष्ण हैं। मेघों से प्राप्त मीठा जल राधा हैं।
कर्म बंधन पैदा करता है लीला मुक्त करती है। अग्रगण्य लीला है रासलीला। यहां मिलन नहीं विरह है यहां नांचकर नहीं मिलाया गया है। गोपी बिछुड़कर भी मिली है। रास है भागवद में इसीलिए भागवद महापुराण है।भागवद तब जीवित है जब इसमें रास है इसे नृत्य न समझ लेना। ये गोपियाँ साधारण ब्रज बालाएं नहीं हैं ये वेद की ऋचाएं हैं। त्रिदेव भी इनके चरणों की रज लेने को तरसते हैं। जिसने रास करके अपनी भागवदता को पुष्ट किया वह भगवान है। रास में योगमाया ने अनंत कृष्णों को पैदा किया है जो अनंत गोपियों के साथ नांच रहे हैं। कृष्ण के कितने रूप हैं ये कृष्ण भी नहीं जानते। रास का कुछ भी साधारण नहीं है योगमाया शक्ति के द्वारा भगवान ने स्वयं गोलोक को पृथ्वी पर बुलाया है। इसमें अनंग भी गोलोक से बुलाया गया है। इसमें भगवान हैं , ऐश्वर्य है ,वैराग्य है ,काम है ,रात्रि है लेकिन सब गोलोक से बुलाए हैं। गोलोक से नित्य -सिद्ध लिया है यहां सब कुछ।
मात कहे मेरा पूत सपूत है ,
बैनी (बहनी )कहे मेरो सुन्दर भैया ,
तात कहें मेरा है कुलदीपक ,
लोक में लाज को अधिक बढ़ैया ,
पत्नी कहे मेरो प्राण पति है ,
इसकी नित मैं लेऊँ बलैया ,
कहें कवि गंग ,सुनो शाह अकबर ,
ये रिश्तो उन्हीं को ,जिन गांठ रुपैया।
भावार्थ :कवि गंग ने संसार की व्यावहारिक सच्चाई का खाका खींचा है। शाह अकबर तो कहने का एक पर्याय है। मूल बात तो यह है कि संसार के ये सारे रिश्ते स्वार्थ पर आधारित हैं। अगर गांठ में पैसा न हो तो सारे रिश्ते अर्थहीं हो जाते हैं।
बाप बड़ा न भैया ,भैया सबसे बड़ा रुपैया
Na Biwi Na Bachha Na Baap Bada Na Maiyan The Whole Is That ke bhaiya sabse bada rupaiya
मनुष्य जिस मार्ग से आता है वह मलद्वार के काफी नज़दीक है। ज़ाहिर है अपवित्र मार्ग से जीव इस जगत में आया है लेकिन कुछ काम तो ऐसा कर चले कि जाने का मार्ग अपवित्र न मिले। पवित्रता और प्रेम धारण करने के लिए यह मनुष्य शरीर मिला है। जहां पवित्रता है वहां प्रेम है और जहां प्रेम है वहां पवित्रता है। हरि हर को प्रेम करते हैं और हर हरि को ,दोनों एक दूसरे के साथ सहजीवन बनाये रहतें हैं।
सब जीवों में एक जीव ऐसा है जिसका मल मूत्र भी पवित्र समझा गया है। वह जीव है गाय। इसीलिए गाय को विश्व की माता कहा गया है। कृष्ण की कल्पना गाय के बिना की ही नहीं जा सकती। गो के बिना कृष्ण अधूरे लगते हैं। गाय में संतत्व है।
फिर भी इस जगत में कुछ ऐसे प्राणि हैं जो गाय को चार पैर वाला पशु ही बतलाते हैं। मार्कण्डेय ऋषि की परम्परा को लजाते हैं ये कट्टुघर परम्परा के वारिस। गो मांस का भक्षण भी करते हैं और उसका उल्लेख भी ऐसे करते हैं जैसे इन्होने कोई बहुत महान कार्य कर लिया हो। इनके पास अवसर है ये अपना वापसी का रास्ता सुधार लें वरना जिस अपवित्र मार्ग से आये थे वैसे ही अपवित्र मार्ग से जाना पड़ेगा।
पढ़ा नहीं इन्होनें कहीं :
बड़े भाग मानुष तन पावा ,
सुर दुर्लभ अब ग्रंथन गावा।
गोकुल गाय से है ,गोविन्द गाय से है ,गोवर्धन गाय से है ,गोलोक गाय से है। ब्रज और वृन्दावन गाय से हैं यहां तक की पृथ्वी गाय से है। जब जब पृथ्वी पर शैतानों का आतंक बढ़ा है पृथ्वी गाय का भेष धरके ही सत्यलोक में ब्रह्माजी के पास गई है (श्रीमद्भागवद पुराण ),गाय की सेवा सबसे बड़ा धर्म है।
कृष्ण रस हैं ,प्रिया जी (श्री जी )भाव हैं। राधा जी कान्त भाव हैं। कृष्ण में नमक का ऐश्वर्य मिला हुआ है। राधा मेघद्वारा किया गया परिवर्षण हैं सागर के जल का ,सागर का जल कृष्ण हैं। मेघों से प्राप्त मीठा जल राधा हैं।
कर्म बंधन पैदा करता है लीला मुक्त करती है। अग्रगण्य लीला है रासलीला। यहां मिलन नहीं विरह है यहां नांचकर नहीं मिलाया गया है। गोपी बिछुड़कर भी मिली है। रास है भागवद में इसीलिए भागवद महापुराण है।भागवद तब जीवित है जब इसमें रास है इसे नृत्य न समझ लेना। ये गोपियाँ साधारण ब्रज बालाएं नहीं हैं ये वेद की ऋचाएं हैं। त्रिदेव भी इनके चरणों की रज लेने को तरसते हैं। जिसने रास करके अपनी भागवदता को पुष्ट किया वह भगवान है। रास में योगमाया ने अनंत कृष्णों को पैदा किया है जो अनंत गोपियों के साथ नांच रहे हैं। कृष्ण के कितने रूप हैं ये कृष्ण भी नहीं जानते। रास का कुछ भी साधारण नहीं है योगमाया शक्ति के द्वारा भगवान ने स्वयं गोलोक को पृथ्वी पर बुलाया है। इसमें अनंग भी गोलोक से बुलाया गया है। इसमें भगवान हैं , ऐश्वर्य है ,वैराग्य है ,काम है ,रात्रि है लेकिन सब गोलोक से बुलाए हैं। गोलोक से नित्य -सिद्ध लिया है यहां सब कुछ।
मात कहे मेरा पूत सपूत है ,
बैनी (बहनी )कहे मेरो सुन्दर भैया ,
तात कहें मेरा है कुलदीपक ,
लोक में लाज को अधिक बढ़ैया ,
पत्नी कहे मेरो प्राण पति है ,
इसकी नित मैं लेऊँ बलैया ,
कहें कवि गंग ,सुनो शाह अकबर ,
ये रिश्तो उन्हीं को ,जिन गांठ रुपैया।
भावार्थ :कवि गंग ने संसार की व्यावहारिक सच्चाई का खाका खींचा है। शाह अकबर तो कहने का एक पर्याय है। मूल बात तो यह है कि संसार के ये सारे रिश्ते स्वार्थ पर आधारित हैं। अगर गांठ में पैसा न हो तो सारे रिश्ते अर्थहीं हो जाते हैं।
बाप बड़ा न भैया ,भैया सबसे बड़ा रुपैया
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