मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

श्रद्धावान लभते ज्ञानम

श्रद्धावान लभते ज्ञानम

लबारी लालू और शूरसेन के वंशज अरुण शौरी में कुछ तो फर्क होना चाहिए। आप मेधा और बुद्धि के धनी  रहे हैं। इस वक्त जबकि पाकिस्तान और चीन दोनों भारत को तिरछी  नज़र से देख रहे हैं घात लगाए बैठे हैं -देश को आपके बड़प्पन की आपके समर्थन की ज़रूरत  थी। आप सरकार के पक्ष में पूरी सामर्थ्य के साथ खड़े होते,आपकी शान रहती।  थोड़ा सा धीरज रखते।

धीरज धर्म मित्र अरु नारि ,

आपदकाल परखिये चारि।

अब लोग तो ये ही कहेंगे -आप बिना सत्ता सुख के रह नहीं पाये। आप अपनी सत्तालोलुपता को शब्दों का जामा पहना कर ये मत कहिये -पीएमओ में अनुशासन नहीं है। प्रधान मंत्री पद को पूडल में तब्दील कर देने वाले एक शख्स का ज़िक्र करते हुए आपका मुंह ज़ायका नहीं बिगड़ा। आपको उस कांग्रेस से अलग दिखना चाहिए जिसने अपने राजनीतिक लाभ के लिए एक मंदमति को खुला छोड़ा हुआ है। 


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