सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

स्वामीजी उवाच

स्वामीजी उवाच

कितना बढ़िया हो यदि अमरीका भर में फैले  हिन्दू टेम्पिल पहल करें गुरुद्वारों सी -साधनहीन, विपन्न जो प्रतिभाएं अपने ज्ञान के बल पर विद्याध्यन के लिए अमरीका तक पहुँच जाती हैं उन्हें कमसे कम एक माह के भोजन और आवास की सुविधा निशुल्क मुहैया करवाएं। इससे उन्हें एक आधार मिलेगा और वह जीवन भर के लिए मंदिर के ऋणी हो जाएंगे।

मंदिर की मूर्तियों से हम ऐसे खेलते हैं जैसे बचपन में बालक गुड़िया गुड्डों से खेलते हैं उनके बनाव श्रृंगार पर हर बरस लाखों डॉलर खर्च कर देते हैं। ऋतुओं के अनुकूल उन्हें वस्त्र पहनाते हैं और जो साधन हीन दरिद्र नारायण बाहर घूम रहें हैं जिनके पास मौसम की मार से बचने के लिए पर्याप्त वस्त्र नहीं है। उनका  क्या ?उनके लिए सोचिये कुछ करिये।

सच कहता हूँ -मैं जब भोजन करता हूँ कई मर्तबा मन बहुत खिन्न हो उठता है। ये भोजन ,कितने ही हैं ऐसे हैं जिन्हें उपलब्ध ही नहीं हैं जबकि हम तमाम सुविधाओं से लैस सुरक्षित मौसम अनुकूलित आवासों में सुख से खा पी  रहे हैं। स्वामीजी ने कहा कितना अच्छा हो कुछ ऐसी वेबसाइटें हों जहां जाकर आप प्रतिदिन बस एक डॉलर का योगदान दे सकें उन साधन हीन विपन्न लोगों के लिए।

आज भारत में एक हज़ार करोड़ खर्च करके और कई जगह तो उससे भी ज्यादा राशि खर्च करके विशाल प्रांगण बनाये गए हैं देवताओं के लिए और कुछ पर अभी भी निरंतर काम चल रहा है और उन देवताओं का क्या जो आवासहीन फुटपाथों पर पड़े हैं कितना कुछ है जो किया जा सकता है ,एक सकारात्मक सोच की ज़रूरत है।

बहुत ही अंतरंग बातचीत में इस युवा उच्चशिक्षा संस्कारों से सिंचित  साधू ने हमारे साथ ये सब साझा किया है इस उम्मीद से कि हम भी आगे आएं।  इस कालम के माध्यम से मैं उन्हें नमन करता हूँ।आप सबका अपना आवाहन करता हूँ हम पहल करें। 

"ओम नमोशिवाय "का -इस पंचाक्षरी बीज मन्त्र का अर्थ क्या है ?

ओम तो पूरक मन्त्र है जो सभी मन्त्रों को चैतन्य प्रदान करता है। 

"ना " (Na)का अर्थ स्वामीजी ने भूमि बतलाया। 

मा (Mah)का अर्थ जल। 

शि(Shi) का अर्थ अग्नि और 

वा (Vaa)का अर्थ वायु। 

तथा या(Ya) का अर्थ आकाश। 

हमारा मन और बुद्धि इन्हीं पांच तत्वों की बनी हैं।इसीलिए विश्व को प्रपंच कहा 

गया है। मन और बुद्धि को जड़। 

हमने अपने विचारों संस्कारों से आज इन पाँचों तत्वों को प्रदूषित कर दिया है। गुरु द्वारा निर्देशित मार्ग पर चलकर हम इन्हें शुद्ध करें। 

हमारे अंदर भूमि की स्थूलता पिघले इसका लय जल में हो ,जल का लय अग्नि में और फिर अग्नि का वायु में तथा वायु का विलय आकाश में हो। 

निरंतर स्थूल से सूक्ष्म की ओर है यह यात्रा। तभी सिद्धि मिलेगी। अपने मूल स्वभाव का बोध होगा। हमारी चेतना का उन्नयन होगा। हमारी  गति ऊर्ध्वाधर  होगी।  

इसका एक अर्थ है यह भी है मैं शिव को नमन करता हूँ अपने अंदर के शिवत्व को प्रणाम करता हूँ। अपने सच्चिदानंद स्वरूप का ध्यान करता हूँ।आपके अंदर जो दिव्यअंश है उस दिव्यता को प्रणाम करता हूँ।  

http://www.thespiritualsun.com/practices/texts/hindu/om-namah-shivaya

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