Virendra Sharma ने Gunjan Sharma-Saini की चित्र साझा की.
कई मायनों में बेजोड़ रही समापन संध्या स्वामी नलिनानन्द गिरी जी के साथ। सुबह हिन्दू टेम्पिल कैन्टन में भजनों की रस धार बही।और संध्या को विचार संध्या। स्वामीजी ने हीरे परोसे और हमने दोनों हाथों से बटोरे।
अक्सर कोई एक व्यक्ति हमारी मानसिकता पर हावी रहता है। हम उसके किए को भूल नहीं पाते। और फिर हमारा सारा स्वाध्याय ,सारा श्रवण इस एक आदमी की वजह से ही व्यर्थ हो जाता है। हम उसके प्रति आठ प्रहर द्वेष से भरे रहते हैं। जानते हैं क्यों -हम उसके दोष देखते रहते हैं। हमारी साधना के व्यर्थ होने का कारण वह व्यक्ति नहीं स्वयं हम ही बन जाते हैं। आपका क्या टेक है इस पर।
नटवर नागर नंदा भजो रे मन गोविंदा … नलिनानन्द जी की वाणी भक्ति का उद्घोष कर रही थी अथर हुसैन साहब तबले पे संगत कर रहे थे। हारमोनियम पर अफगानिस्तान से आये एक भाईजान थे। तबले का रोम रोम गा रहा था -भजो रे मन गोविंदा। भजन का रूख कब सूफी शैली की गायकी की ऒर मुड़ गया श्रोताओं को पता ही न चला -
तुझे मिल गई पुजारन ,मुझे मिल गया ठिकाना ,
मुझे रास आ गया है तेरे दर पे आना जाना।
तुझे मिल गई पुजारन ,मुझे मिल गया ठिकाना ,
मुझे रास आ गया है तेरे दर पे आना जाना।
आबाद दिल को मेरे नाशाद न बनाना ,
अभी सांस चल रही है ,कहीं तुम चले न जाना।
तेरी बंदगी से पहले मुझे कौन जानता था ,
तेरी इश्क ने बना दी मेरी ज़िंदगी फ़साना।
बीच बीच में सूफियाना शायरी ने अपना समाँ बांधा -
किसी ने निकालके रख दीं हैं चौखट पे आँखें ,
इससे ज्यादा तो रोशन दीया हो नहीं सकता।
मिट्टी में मिलादे जुदा हो नहीं सकता ,
इससे ज्यादा तो तेरा मैं हो नहीं सकता।
तुझको खोकर मेरे हाथों की लकीरें मिटी जाती हैं ,
अब तो मेरे पास बचा कुछ भी नहीं।
फिर धमाल मचाया राधा (रानी) भाव ने कव्वाली शैली में -
किशोरी कुछ ऐसा कमाल हो जाए ,
जुबां में राधा राधा ,राधा नाम हो जाए।
तबला कहे के मैं भी हूँ ,स्वामी कहे मैंने कब इंकार किया। संगत हारमोनियम तबले की परवाज़ भरे -
गिरते हुए जब मैंने तेरा नाम लिया ,
तूने गिरने न दिया मुझे थाम लिया।
कभी कुछ ऐसा भी हो जाए ,
तेरे वृन्दावन में आएं हम ,
तेरे चरणों में सर झुकाएं ,
सारी उम्र वृन्दावन में ही तमाम हो जाए।
राधा भाव की भक्ति ने ऊंची ऊंची कुलांचे भरी ताली की ताल पे ,भक्ति रस की अविरल धार पे।
खुदा मुझे ऐसी खुदाई न दे ,
अपने सिवाय मुझे कुछ दिखाई न दे।
खुदा तो नाम है उस एहसास का ,
जो सामने रहे और दिखाई न दे।
संगीत की सरस माधुरी में कब दो घंटे भूत काल हुए पता ही न चला। हनुमान चालीसा ने सम्मोहन से बाहर निकाला। भाव और रस दोनों का आस्वाद बदला और फिर ओम जय जगदीश हरे और हमेशा की तरह -वन्दे मातरम ,सुजलाम सुफलाम मलय जय.…।
भजनसंध्या और विचार संध्या एक झलक
Gunjan Sharma-Saini Amit Saini और Virendra Sharma के साथ भाग्यशाली महसूस कर रहा/रही है
Meditation is listening to the divine within. A spiritually charged evening with Swami Nalinanand Giri Ji. Great food for mind & soul.
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