अंग्रेजी भाषा में कोई कोई शब्द बहुत जानदार है ऐसा ही एक शब्द है टर्नकोट।
रात को सोये तो शिया ,
सुबह उठे तो सुन्नी ,
जात न पूछो मुन्नी।
A turncoat is a person who abandons or betrays a group or cause and joins his opponents .A person who changes sides in a conflict ,dispute etc is called a Turncoat .A turncoat is a disloyal person who betrays or deserts his cause or religion ,or political party or friends etc .
बहरसूरत इसे आप (साहित्यिक )भगोड़ा भी कह सकते हैं। स्वपक्ष त्यागी भी कह सकते हैं। कायर डरपोक भी। वैयक्तिक उदाहरण इसका मुन्नवर राणा साहब हैं और समष्टिगत बिहार का महाठगबंधन ,जो कहने को महागठबंधन है सारे टर्नकोट वहां एक ही स्थान पर आ गएँ हैं। सारे महाठगइया एक तरफ मोदी भाई एक तरफ।
कल रात जो ईराक थे ईरान हो गए ,
कल थे बाइबिल आज कुरआन हो गए।
ये शोक संतप्त चेहरा लिए हाथ में पुरुष्कार की राशि लिए जितने अशोक और टर्नकोर्ट राणा घूम रहे हैं ये सबके सब इस शब्द का अतिरिक्त दोहन कर रहें हैं
एक बार की बात है किसी मंगलामुखी (यौनकर्मी ,अपभ्रंश रूप वैश्या )से किसी जानकार ने पूछा हे सुंदरी आपकी गोद में ये बच्चा किसका है । मंगलामुखी बोली ऐसी सांप्रदायिक बातें न करो। ये बच्चा सेकुलर हैं। यूं सेकुलर शब्द के मानस बीज आनंद भवन में मौजूद थे लेकिन १९४७ के बाद के तकरीबन तकरीबन तीन दशकों तक भी सेकुलर शब्द का इस्तेमाल भारत की राजनीति में देखने को नहीं मिला।
इस सेकुलरिज़्म का अंकुरण और तेज़ी से पल्ल्वन इंदिरा काल में हुआ जब इंदिरा को इल्म हुआ ये तो मंगला ने बड़े काम का नुसखा बताया। हर धत कर्म हर पाप इस शब्द के नीचे छुपा लो उन्होंने झट सेकुअलर शब्द की चिप्पी ,सेकुलर पैवन्द संविधान की काया पर ही लगा दिया।
तब से इस शब्द का इस्तेमाल राजनीतिक कबीले निरंतर करते आये हैं। इधर इसकी वेधन शक्ति का पता चंद साहित्यकारों को भी चल गया। ये शोक संतप्त चेहरा लिए हाथ में पुरुष्कार की राशि लिए जितने अशोक और टर्नकोर्ट राणा घूम रहे हैं ये सबके सब इस शब्द का अतिरिक्त दोहन कर रहें हैं। बेचारी मंगला को इसका कोई श्रेय नहीं देना चाहता। और तो और साहित्य में उस मंगला का कहीं ज़िक्र तक नहीं है।
आज हमने इस शब्द की व्यत्पत्ति पर प्रकाश डाला है। एक शुरुआत भर की है।
(ज़ारी )
इस सेकुलरिज़्म का अंकुरण और तेज़ी से पल्ल्वन इंदिरा काल में हुआ जब इंदिरा को इल्म हुआ ये तो मंगला ने बड़े काम का नुसखा बताया। हर धत कर्म हर पाप इस शब्द के नीचे छुपा लो उन्होंने झट सेकुअलर शब्द की चिप्पी ,सेकुलर पैवन्द संविधान की काया पर ही लगा दिया।
तब से इस शब्द का इस्तेमाल राजनीतिक कबीले निरंतर करते आये हैं। इधर इसकी वेधन शक्ति का पता चंद साहित्यकारों को भी चल गया। ये शोक संतप्त चेहरा लिए हाथ में पुरुष्कार की राशि लिए जितने अशोक और टर्नकोर्ट राणा घूम रहे हैं ये सबके सब इस शब्द का अतिरिक्त दोहन कर रहें हैं। बेचारी मंगला को इसका कोई श्रेय नहीं देना चाहता। और तो और साहित्य में उस मंगला का कहीं ज़िक्र तक नहीं है।
आज हमने इस शब्द की व्यत्पत्ति पर प्रकाश डाला है। एक शुरुआत भर की है।
(ज़ारी )
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