बुधवार, 11 जुलाई 2012

ज़रूर रहें आशावादी लेकिन खामख्याली में न जिएँ


ज़रूर रहें आशावादी लेकिन खामख्याली में न जिएँ 



सरकारें तो आती जाती, यह किस्सा बड़ा आलमी है |
सकारात्मक रहें हमेशा, खाम -ख्याल जालिमी है ||
संसाधन जोखिम की कुव्वत , हो निवेश मुस्तैद दिमाग-
 
झटके सहने की ताकत भी, होना बहुत लाजिमी है ।

-दिनेश फैजाबादी उर्फ़ कुंडली माहिर .



हवाई  किले  न बनाएं . 
जी हाँ बचें विशफुल थिंकिंग से ,खाम ख्याली से , फिर शौक से रहें पोजिटिव ,सकारात्मक ,निहारें ज़िन्दगी के ,हर घटना के उजले पक्ष को .


पूर्व राष्ट्र पति मिसायल -पति ए पी जे अब्दुल कलाम साहब कहतें हैं और ठीक ही कहतें हैं बड़ा खाब देखो ,सकारात्मक रहो लेकिन उसी के अनुरूप तुम्हारा प्रयास भी हो सतत मेहनत  भी ,आपके पास स्वप्न के अनुरूप संसाधान भी हों ,कुछ तो इनपुट हो ,निवेश हो आपके पास ,जोखिम उठाने की कूवत भी हो ,और सबसे बड़ी बात आप हाज़िर दिमाग, मुस्तैद दिमाग हों .कोमन सेन्स हो आपके पास .


सिर्फ संभावनाओं में जीना खतरनाक हो सकता है .विभ्रम तो है ही .


बुरा नहीं है आशावादी होना ,अच्छा है बहुत अच्छा है .साइंसदान भी इसकी पुष्टि करतें हैं .


 Optimism is all the rage. The enthusiastic cheer of motivational speakers has now received a seal of approval from scientists. So, apparently it's confirmed: Optimism is good for you.


But before we rush full speed down the rah-rah route, let us pause for a moment and see exactly which road we take. We shouldn't confuse the power of positive thinking with the dangerous delusion of wishful thinking. They end at very different destinations.


It's a lesson for countries, politicians, business people and all of us. Optimism by itself can be dangerous. It must always travel in the company of action, common sense, resourcefulness and considered risk-taking.




हमसे कोई पूछता है और क्या चल रहा है ?कैसे हो ?




"सब ठीक है "-ज़वाब मिलता है .लेकिन क्या सब ठीक होता है या यह कुछ भी ठीक नहीं है को छिपाने की ना -कामयाब कोशिश होती है .




दूसरे एक और ध्रुव  है हमारी  सोच का -ओ भैया आल इज वेळ ,ओ काके आल इज वेळ ..




जबकि  डोंट वरी बी हेपी ,यार टेंशन मत ले ...




एक दूसरा तरीका है दिल को ,हर पल मिलती शै (शह )और मात को ,नकारने का ,तसल्ली देने का ,हारे को हरिनाम ...




"It's all good," that irritating, relatively new expression, seems to always come after a description of just how not good it all is; a desperate effort to make the truth go away. It's the new version of "don't worry, be happy."




वास्तव  में थोड़ी सी चिंता का होना रचनात्मक सिद्ध होता है ,हमारी जड़ता को दूर करके हमें कर्म की और एक्शन की ओर प्रेरित करता है .यह वैसे ही है 


जैसे हम कहतें हैं -




A  small dose of becteria wards off a bigger infection .




अमरीका की (अमरीकियों की )तो यह लोकलुभाऊ प्रवृत्ति है खुश रहना खुश दिखना ,हर हाल आशावादी रहना .यहाँ लोग हर  हाल में ऊर्जित रहतें हैं,उत्साहित रहते दिखतें हैं  .यकीन न हो तो यहाँ आके देखलें .




बेशक  गुज़िस्ता मंदी के दौर ने इसे थोड़ा सा शमित ज़रूर किया है ,आशावाद का स्थान कमोबेश कहीं कहीं सनक और मानव द्वेष  भी लेता दिखाई देता है .




लेकिन यहाँ का दर्शन और बुनियादी  सोच तमाशबीन बने रहने की कभी नहीं रही है .




कैसे दुनिया को और खूबसूरत बनाया जाए यह ज़द्दो ज़हद चलती है यहाँ हर दम हर हाल में .उठो खड़े हो जाओ .बढे चलो बढे चलो ...




हमें उन राहों पर चलना है ,जहां गिरना और सम्भलना है ...इसी फलसफे का आशा वाद का दूसरा नाम है अमरीका .




One of the most inspiring and even charming traits of the U.S. is its founding and enduring spirit of optimism. No doubt, it's a little less visible now, replaced by cynicism. But America was built on a philosophical foundation of not sitting back and accepting unacceptable outcomes, instead standing up to build a better world. That's the right kind of optimism. It's the one that leads to sensible risk-taking. It acknowledges that you don't always win, that when things don't turn out well, you try a different approach and then another until you find a solution, until you reach a new continent, until you write the right constitution, until you invent the right machine.




अपने पूर्व प्रधान मंत्री हर दिल अज़ीज़ बाज पै साहब कहा करते थे -हार नहीं मानूंगा ,राड़ नहीं ठानूंगा ....




यह ठीक नकार का उलटा ,स्वीकरण हैं ,मान लेना है नकारना नहीं है चीज़ों को जैसी वह हैं ठीक वैसा ही .यह पराजय वाद नहीं हैं ,नैराश्य से मुक्ति है उसे झाड पौंछ आगे बढना है .




दृढ निश्चय ,कड़ी मेहनत और इरादे के अभाव में आशावाद भी एक के बाद दूसरी तबाही की ओर ही ले जाएगा .यह जितना खरा व्यक्तियों के लिए है उतना ही व्यवसाय के लिए भी सटीक बैठता है .




व्यवसाय की सफलता के लिए भी उतना ही ज़रूरी है .




भारत जैसे देश के लिए भी सटीक है जहां आर्थिक वृद्धि का ढोल कुछ ज्यादा ही बजाया गया है और अब धीरे धीरे ढोल की पोल खुलने लगी है रुपया लुढ़कता ही जा रहा है .सरकार ?




सरकार नाम की तो कोई चीज़ ही नहीं है .हर कोई अलग दिशा में जा रहा है .




इतिहास ऐसे उद्धहरण से भरा पड़ा है कैसे देखते ही देखते आर्थिक वृद्धि से दिवालियापन की ओर राष्ट्रों ने कूच किया है .




The poster boy for off-the-rails, disastrous optimism is Neville Chamberlain, the British prime minister who met with Hitler in 1938 and handed him a big chunk of Czechoslovakia in exchange for the Fuhrer's word. He didn't ask the Czech people what they thought, but he was giddy with excitement when he got off the plane from Munich waving a piece of paper he and "Herr Hitler" had signed. "I believe it is peace for our time," he immortally declared.


When appeasement was inevitably followed by a most horrific, brutal war, we saw a different kind of optimism, the kind that rolls up its sleeves, defies the odds and makes its own luck. Franklin Roosevelt, who presided over a country with a third-rate army, ordered an industrial transformation of the American economy on a scale that seemed simply out of reach, with the focused, urgent aim of defeating the Nazis.


He declared, "Let no man say it cannot be done. It must be done." Many muttered that it couldn't. But the country got to work. Everyone made sacrifices. Everyone pitched in. The U.S. met production goals that were almost inconceivably ambitious. And it turned the tide of war.


The first case (Chamberlain) was optimism supported by wishful thinking, as useful as buying a lottery ticket to fend off bankruptcy. The second (FDR) was optimism propelled by determined action and smart planning. This is the one that works.




Optimism can take the distasteful tone of arrogance, or it can sound like the sunny chirps of the brainwashed. Either one of these can lead to disaster. It's only the optimism that reasons, that considers courses of action and different potential outcomes, that pushes ahead, which truly leads to greatness.




नि -हथ्था  आशावाद ,निरा -आशावाद बिना प्रयत्न लाघव के लासवेगास के जुआ घरों की मुद्रा ज़रूर हो सकता है .नतीजे लाने वाला फलसफा नहीं .




गलती हर किसी से होती है लेकिन ज़रुरत से ज्यादा आत्म सम्मान में पग़े रहना भी ठीक नहीं है .आखिर कुछ लोग है जो आपसे बेहतर कर सकतें हैं .उनका नजरिया आपसे ज्यादा परिपक्व हो सकता है .होता भी है .बहुत सी बातें हैं जो आपको पता नहीं है घटनाएं है एकाधिक जिन पर आपका कोई बस नहीं चलता .आप पल्ला झाड के खड़े नहीं हो सकते ,उनसे .




 It's this kind of arrogance passing for self-confident optimism that gave us the economic mess we have had for the past five years. It's the optimism that falsely promised home prices could only go up, so we should borrow as much as possible, regardless of income; a confidence that boasted that complicated financial ideas and convoluted market hedging made for bulletproof Wall Street portfolios.
















भारत आज फिर एक मोड़ पर आ खड़ा हुआ है .सवाल सिर्फ सरकार के आने जाने लुटिया डुबोने का नहीं हैं .सरकारें तो आती जाती रहतीं हैं .ये किस्सा आलमी है .




कहाँ ले जा रहा है ऐसा आशावाद .हमें ओर दुनिया के कथित दरोगा को .




  The ones who predicted disaster, the ones who saw a major collapse coming, were the ones who got it right. They were the ones who became superstars. Yes, sometimes the pessimists are right. But the optimists can learn from them. The action-oriented optimists, the ones who don't see life as a casino but as a place where one has to make the right decisions to obtain the desired outcomes -- to make the world a better place or our lives more worth living -- see disasters as occasions to learn, to find out what we should have done differently, to come up with new strategies.


Scientists tell us that scans show our brains are wired for optimism. We register positive lessons more than negative ones. And that's partly, they say, because optimism is good for our health.




बेशक  सकारात्मक  रहना कमोबेश नी -रोगी काया के लिए ज़रूरी है .हमारे दिमाग परमात्मा ने सकारात्मक पाठ सीखने के लिए बनाए हैं .न्यूरोन सर्किट्री(न्यूरोन परिपथ )तमाम पोजिटिव सोच के अनुरूप बने हैं .




लेकिन विज्ञान अपना काम करता है .अर्थ शास्त्र अपना .




आज जिन्हें हम अर्थ शास्त्री बतला रहें हैं ,वह अ -नर्थ शास्त्री सिद्ध हुए हैं .अपने मनमोहना को ही ले लो .




सच यह भी चीज़ें अपना रुख खुद तय करती हैं .सब कुछ ठीक वैसे ही नहीं होता चलता है जैसा हम मान बैठतें हैं .बूझने लगतें हैं .




लोग सदैव ही  वह नहीं करते जैसा हम चाहतें हैं कि वह करें . 




और जीवन भी इतिहास ,राजनीति और अर्थ शास्त्र तथा स्टोक मार्किट की तरह एक के बाद एक झटके देता चलता है .




इसलिए सब कुछ आशावाद के ऊपर नहीं छोड़ा जा सकता जैसा प्रणव दा जाते जाते प्रलाप रहें हैं .




कुछ तो अच्छा नतीजा निकले .फैसला हमें ही करना होगा .

17 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

आज की तो बस एक विज्ञान कुण्डली बन गयी है पोस्ट -खुलती रही बेपर्द !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आशावादिता उतनी कि बाद में निराशा न हो..

रविकर ने कहा…

बहुत सुन्दर |
सादर नमन ||

Anita ने कहा…

आशावादी होना ज्यादा अच्छा है निराशा वादी होने के, निराशावादी तो पहले से मान लेता है कि कुछ बदलने वाला नहीं है प्रयास करना ही व्यर्थ है, आशावादी हर बाधा को पार करने का प्रयास करता है..अब उनकी कौन कहे जो असलियत जाने बिना ही सब ठीक है का राग अलापते हैं...

Satish Saxena ने कहा…

आशाएं टूटते देखना तकलीफदेह होता है ...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सच है आशावादिता के अनुसार प्रयास भी हों.... हवाई किले ही न बनाये जाएँ

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सही चिंतन ... आशावादी कुछ कुछ पर सकारात्मक रहना जरूरी है ...
राम राम जी ...

अशोक सलूजा ने कहा…

हवाई किले न बनाएं...पर आशावादी रहें ...
वाह: ज्ञान-वर्धक |
सब पूछते हैं मुझसे "कहो कैसे कट रही है "
ये कोई नही पूछता "कि कैसे काटते हो..:-))
वीरू भाई राम-राम |

babanpandey ने कहा…

आशा के ... समुद्र मंथन से मोती निकलता है

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी पोस्ट कल 12/7/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें

चर्चा - 938 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क

SM ने कहा…

thoughtful every line is important
have to read it once more
article says it all

रविकर ने कहा…

सरकारें तो आती जाती, यह किस्सा बड़ा आलमी है |
सकारात्मक रहें हमेशा, खाम -ख्याल जालिमी है ||
संसाधन जोखिम की कुव्वत , हो निवेश मुस्तैद दिमाग-
झटके सहने की ताकत भी, होना बहुत लाजिमी है ||

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

जियें आशावाद बन,निराशा करता हास
आशा हर बाधा का, पार करता प्रयास,,,,

बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,

RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आशावादी रहें तो कर्म के प्रति सजग रहना हो पाएगा ... आज की पोस्ट में अर्थव्यवस्था को बेपर्दा कर दिया ....

बहुत बढ़िया लेख

Suresh kumar ने कहा…

bahut hi badhiya sir ji.....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

खाम-खयाली में नहीं, रहना यहाँ ज़नाब।
काम बिना करोई यहाँ, बनता नहीं नवाब।।

Ashish Tawapana ने कहा…

Very nice quotes. Every sentence says it all.