कविता :पूडल ही पूडल
डॉ .वागीश मेहता ,१२ १८ ,शब्दालोक ,गुडगाँव -१२२ ००१
जिधर देखिएगा ,है पूडल ही पूडल ,
इधर भी है पूडल ,उधर भी है पूडल .
(१)नहीं खेल आसाँ ,बनाया कंप्यूटर ,
यह सी .डी .में देखो ,नहीं कोई कमतर
फिर चाहे हो देसी ,या परदेसी पूडल
यह सोनी का पूडल ,वह गूगल का डूडल .
(२)ये मालिक ,ये नौकर ,बनें सब हैं सेकुलर ,
ये वोटों का चक्कर ,क्यों बनते हो फच्चर .
हो चाहे मंडल या फिर कमंडल ,
है कुर्सी सलामत ,तो बंडल ही बंडल .
(३)यह कैसी है पिक्चर ,सभी लगते जोकर ,
हो क़ानून कैसा ,ये मजहबी चक्कर ,
अभी शेर -सर्कस ,यूं बोलेगा घुर -घुर,
है झूठों पे लानत ,बनो तुम भी सच्चर .
(४)सभी खिडकियों पे ,ये बैठे हैं बंदर ,
ये धरती भी इनकी ,ये इनका है अम्बर ,
अपना है डमरू ,है अपना कलंदर ,
ये सब नाचतें हैं ,इशारों से डरकर .
(५) क्या राजा -रानी ,क्या कोई चाकर
सभी बांटते हैं ,अपनों में शक्कर ,
है बाकी तो धूलि ,और धूप धक्कड़ ,
यही राजनीति है ,इंडिया की फ्यूडल.
(६) नहीं कोई ज़ज्बा ,है गैरत है बाकी ,
खतरनाक चुप्पी ,ये कैसी उदासी ,
सरकती है जाती ,ये सरकार उनकी ,
जो फैलाए फ़न से ,लगतें हैं विषधर ,
(७)ये डी .एन. ए .कैसा ,ये किसका कबूतर ,
अगर हाथ गोली तो ,हाथी से न डर
जो खाकी का रूतबा ,उसे हाथ में रख
फिर बाबा भी खातें हैं ,बच्चों का नूडल .
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ,४३३०९ ,सिल्वरवुड ड्राइव ,कैंटन (मिशगन )
४८ १८८ -१७८१
12 टिप्पणियां:
bahut sundar kataksh bahut vistar se bahut khoob varnan मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ .
आलोकित पथ आप करेंगी ,हम तो बस अनुगामी हैं ..शुक्रिया शिखा जी ......कृपया यहाँ भी पधारें -
कविता :पूडल ही पूडल
कविता :पूडल ही पूडल
डॉ .वागीश मेहता ,१२ १८ ,शब्दालोक ,गुडगाँव -१२२ ००१
जिधर देखिएगा ,है पूडल ही पूडल ,
इधर भी है पूडल ,उधर भी है पूडल .
(१)नहीं खेल आसाँ ,बनाया कंप्यूटर ,
यह सी .डी .में देखो ,नहीं कोई कमतर
फिर चाहे हो देसी ,या परदेसी पूडल
यह सोनी का पूडल ,वह गूगल का डूडल .
जोरदार कविता
दादा (अरविन्द दा )आपके सौजन्य से ही मेहता जी तक इनपुट भेजा था वहां से आई "पूडल ही पूडल "..शुक्रिया .
Bahut Hi Badhiya Kavita
नहीं कोई ज़ज्बा ,है गैरत है बाकी ,
खतरनाक चुप्पी ,ये कैसी उदासी ,
सरकती है जाती ,ये सरकार उनकी ,
जो फैलाए फ़न से ,लगतें हैं विषधर ,
बहुत खूब ...
क्या कहने ...
वाह! भाई जी वाह!
मुबारक हो !
है कुर्सी सलामत ,तो बंडल ही बंडल
beautiful poem
बंडल can be seen as a bundle of notes and it can be seen as bundle of faking promises to citizens by a politician
पूडल ही पूडल और गूगल का डूडल. वाह प्रभावशाली प्रस्तुति सही कटाक्ष.
हास्य-व्यंग्य से सजी अच्छी रचना।
बहुत ही बेहतरीन और प्रभावपूर्ण रचना.....
इंडिया दर्पण की ओर से आपको रक्षाबंधन की अग्रिम शुभकामनाएँ!
खरी खरी बात कह दी ...
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