रविवार, 16 जनवरी 2011

कुकर खांसी ,सूखी खांसी ,हूपिंग कफ़ जानलेवा मत बनने दीजिये ...

पेर्टुस्सिस /कुकर /सूखी खांसी /हूपिंग कफ़ बच्चों को आमतौर पर शिशुओं को(०-२ वर्ष ) होने वाला गंभीर रोग है जिसमे जोर से खांसने के अलावा सांस लेने में भी कष्ट होता है .यह एक जीवाणु से पैदा होने वाला संक्रामक रोग है जो महामारी का रुख इख्तियार कर लेता है .जीवाणु 'बोर्देटेल्ला पेर्टुस्सिस इसकी वजह बनता है .यह रेस्पाय्रेत्री ट्रेक्ट का रोग संक्रमण है .इसका इन्क्यूबेशन पीरियड १-२ सप्ताह है .जिसके साथ अपर रेस्पाय्रेत्री ट्रेक्ट के इन्फेक्शन के लक्षण मुखर हो जातें हैं .इन दी केटार्रल स्टेज इन्फ्लेमेशन ऑफ़ दी म्यूकस मेम्ब्रेन टेक्स प्लेस काज़िंग एन इनक्रीज इन दी प्रोडक्सन ऑफ़ म्यूकस .बस कफिंग के दौरान ही इसका वायरस प्रसार पा जाता है एक दम से छुतहा है यह रोग .ड्यूरिंग कफिंग दी इन्फेक्तिद पेशेंट स्प्रेड दी वायरस थ्रू ड्रोप्लेट्स ।
६-८ सप्ताह तक रहता इस का प्रकोप .आरम्भ में इसके लक्षण फ्ल्यू, कोल्ड तथा फीवर जैसे हो होतें हैं.इसके बाद एक दम से उग्र और दीर्घावधि हमला होता है कफ़ का . हूप और वोमिटिंग (उलटी ,मिचली ) हो सकती है हालाकि एक साल से नीचे के शिशु में यह नदारद रहती है .२-६ सप्ताह तक रोग के तेज हमले के बाद १-२ सप्ताह में धीरे धीरे रोग की उग्रता घटने लगती है ।
सब -कंजक -टीवल हेमरेज (ब्लीडिंग ऑन दी वाईट पार्ट ऑफ़ दी आई) हूपिंग कफ़ का परिणाम बन सकती है .दूसरा लक्षण हर्निया का उभर सकता है .(पोपिंग आउट ऑफ़ दी इन्तेस्ताइन थ्रू दी स्किन नीयर दी ग्रोइन ).बर्स्तिंग ऑफ़ लंग्स कैन टेक प्लेस .इसे चिकित्सा शब्दावली में न्युमो -थोरेक्स कहा जाता है .ऐसे में नामूनिया के साथ साथ पुराना तपेदिक का रोग संक्रमण भी उभर सकता है .क्योंकि शरीर की रोग रोधी क्षमता कमतर रह जाती है .दिमाग भी असर ग्रस्त हो सकता है .दौरा पड़ सकता है .जोर दार एंठन, दौरा, कन्व्ल्संस घेर सकतें हैं ।
भूख मर जाने से वजन भी कम हो जाता है ।
बचाव :पहले ४-५ दिनों के दौरान मरीज़ को अलग थलग रखना चाहिए ,एंटी बायोटिक थिरेपी के साथ -साथ .तीमारदार को भी यही दवाएं(एंटी -बाय्तिक्स ) एहतियात के तौर पर दी जानी चाहिए ।
विशेष :ट्रिपिल वेक्सीन समय से देना न भूलें .बाकायदा इसका रिकार्ड शेड्यूल के मुताबिक़ रखें .दिफ्थीरिया -टेटनस -पर्तुस्सिस का टीका सुनिश्चित अवधि और अंतराल पर लगना चाहिए .पहली साल में एक माह के अंतर से तीन डोज़ ,१-१.५ बरस की उम्र में और फिर पांच बरस की उम्र में भी कुल मिलाकर दो बूस्टर दोज़िज़ कमोबेश इसके हमले से बचाए रह सकतीं हैं ।
नै वेक्सीन अपेक्षतया सुरक्षित और निरापद हैं .कम दर्द कम बुखार ।
इलाज़ :पर्याप्त पोषण के साथ ,शरीर का जलीकरण हाइद्रेसन(शरीर में पानी की तरल संतुलन की कमी न होने पाए ),बच्चा को ज्यादा रोने चिल्लाने न दें,बहलायें रखे ,आराम से रखें .डॉक्टर के परामर्श के मुताबिक़ एरिथ -रोमाइसिंन आदि दें .किसी किस्म का पेचीलापन न होने पाए इसका पूरा ध्यान रखें .

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