सोमवार, 31 जनवरी 2011

पुरुष नसबंदी मिथ और यथार्थ .

क्या पुरुष नसबंदी यौन क्षमता ,कामेच्छा दोनों को ही ले उडती है ?पौरुष ,मर्दानगी को दाग लगा देती है / वासेक्टोमी ?
महज़ मिथ्या /भ्रान्ति /भ्रांत धारणा /दिल्युश्जन है ऐसा मानना समझना .पहली बात तो यह है ,यह एक रिवार्सिबिल प्रक्रिया है .हमारे अन्डकोशों (टेस्तीज़)में दो तरह की कोशिकाएं /कोशा /सेल्स होतें हैं .एक का काम पुरुष हारमोन तैयार करना है .कामेच्छा इन्हीं हारमोनों से पैदा होती है ।
दूसरी किस्म की कोशाओं का काम स्पर्म्स /शुक्राणु /स्पर -मेटा -ज़ोआ बनाना है .यौनपुरुष जब मैथुन के शिखर पर पहुंचता है तब यह इजेक्युलेट के बतौर मूत्र -मार्ग से बाहर आतें हैं .यही स्खलन है ,डिस -चार्ज होना है .लिन्गोथ्थान का सम्बन्ध कामेच्छा /फोरप्ले के वक्त पीनाइल आर्ट -रीज की और शिश्न को रक्त ले जाने वाली धमनियों की ओर अधिकाधिक रक्त का पहुंचना है .यह रक्त आपूर्ति वासेक्टोमी के बाद भी ऐसी ही रहती है यानी लिन्गोथ्थान पूर्व -वत होता है .इजेक्युलेट (वीर्य की मात्रा )भी पूर्व वत रहती है .शुक्राणु तो पूरे शुक्र द्रव्य में मात्र १%से भी कम ही होतें हैं ।
शेष शुक्र द्रव्य शुक्राशय एवं प्रोस्टेट से रिश्ता है .बस नसबंदी के बाद इस द्रव्य में शुक्राणु (स्पर्म )नहीं होतें हैं .केवल किसी औरत को गर्भवती बना देना मर्दानगी नहीं है .
संतान हो न हो इसका फैसला दोनों को मिलकर करना होता है .

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