रविवार, 26 दिसंबर 2010

बेहद कि ठण्ड की पीछे विश्वव्यापी तापन का ही हाथ है .....

वार्मिंग बिहाइंड बाइटिंग विंटर्स .बाइटिंग कोल्ड वेदर हेज़ रीक्द हेवोक इन योरोप इन रीसेंट ईयर्स एंड २०१० टू हेज़ सीन दी कोंतिनेंट ग्रा -इंद टू ए हाल्टड्यू तू हेवी स्नो फाल . (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया /टाइम्स ट्रेंड्स /दिसंबर २३ ,२०१० ,पृष्ठ २१ ,मुंबई एडिशन )।
सहज बुद्धि से किसी को भी यह बातगले से नीचे नहीं उतरेगी ,लेकिन सच यही है गत एक दशक में जिस प्रकार योरोप के अनेक हिस्सों को बेहद की ठण्ड का सिलसिला ज़कड़े रहा है उसके पीछे विश्वव्यापी तापन (ग्लोबल वार्मिंग का ही हाथ है )।
आर्कटिक की सतह से विलुप्त होती हिम चादर (आर्क -टिक्स रिसीडिंग सर्फेस आइस) जो यही सिलसिला रहा तो शती के अंत तक ग्रीष्म के दरमियान पूरी तरह भी विलुप्त हो सकती है इसका प्रमाण है ।
एक अध्ययन के अनुसार योरोप और उत्तरी एशिया में ठण्ड का यही आलम ज़ारी रह सकता है .२००५ -०६ की तबाही (इन्क्लेमेंट वेदर ,बाईट -इंगलि कोल्ड वेदर से पैदा विनाश लीला ) योरोप देख चुका है .साउथ स्पेन ,पूरबी योरोप और रूस तो एक तरह से ज़मही गया था ।
यही सिलसिला आगे भी ज़ारी रहा २००९ -१० ब्रिटेन में इससे पहले के १४ सालों में सबसे ठंडा रहा .पूरे महाद्वीप की परिवहन व्यवस्था चरमरा गई .यह साल भी गुल खिला गया है ।
ऊपर से देखने में यह जो कुछ हो रहा है प्रकट रूप दिख रहा है ,मानक जलवायु परिवर्तन परिदृश्य के विपरीत ही प्रतीत होता है .भावी घटनाओं का परिद्र्शय यही है शती के अंत तक विश्वव्यापी तापमान (पृथ्वी के औसत तापमान )में ६ सेल्सियस की वृद्धि हो जायेगी ।
ऊपर से देखने में हड्डियों में कंप पैदा करने वाली ठण्ड,वास्तव में ठण्ड का सिलसिला इस परिदृश्य के विपरीत दिखलाई देता है ।
'सच एसर्संस ,काउंटर साइंटिस्ट्स ,मिस्तेकिन्ली कंफ्लेट दी लॉन्ग टर्म पैट्रंस ऑफ़ क्लाइमेट विद दी शोर्ट टर्म वेग्रीज़ ऑफ़ वेदर ,एंड इग्नोर रीजनल वेरियेसंस इन क्लाइमेट चेंज इम्पेक्ट्स ।
नवीन शोध दर्शाती है योरोप की विंटर ब्लूज़ के लिए ग्लोबल वार्मिंग ही उत्तरदाई है ।
आर्कटिक क्षेत्र का बढ़ता तापमान ,इन तापमानों में भूमंडलीय औसत से २-३ गुना ज्यादा वृद्ध दर्ज़ हुई है .गत तीन दशकों में हिम चादर २० फीसद झीनी हो गई है ।
ऐसे में सन की रेदियेतिव फ़ोर्स को डार्क ब्ल्यू सी ज़ज्ब करता रहा है .अन्तरिक्ष में लौट जाना था यह विकिरण हिम चादर से टकरा कर लेकिन ऐसा हुआ नहीं .विश्वव्यापी तापन को इसी वजह से पंख लगे .रिफ्लेक्टिव आइस और स्नो के अभाव में ही तो ऐसा हुआ है .

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