आतंकवाद से दरी सहमी हुई है इन दिनों हमारी केन्द्र सरकार। ऐसे में इन्द्र देव पुत्र (काग) जयंतों की पों बारह है। जातीय हिंसा को श्री लंका में सीधे सीधे हवा देने वाले लोग आजकल मनमोहन सिंह की केन्द्र सरकार पर दबाव बनाये हुए हैं, यहाँ तो कान्ग्रेसिओं के राज्य में जिन्हें मकोका के तहत अन्दर होना चाहिए था कल तक वह z श्रेणी सुरक्षा में सरकारी गनरों की हिफाज़त में थे। जातीय हिंसा की आंच तो पूरे भारत को ही सुलगाये हुए हैं।
एक तरफ़ इन्द्र पुत्र काग जयंत सिम्मी की तरफदारी में मुब्तिला हैं दूसरी तरफ़ तमिल प्राइड के झंडाबरदार केन्द्र सरकार को सांसत में डाले हुए हैं इनमें अकेले कला चश्मा लगाने वाले (करुना निधि ) ही नही हैं उनकी पुत्री कन्निमोंझी भी हैं, रामदास जैसे प्रगतिशील भी हैं। राजीव गाँधी के हत्यारों के हिमायतियों के आगे केन्द्र सरकार नत शिशन है, नत शिर है। राष्ट्र शरमसार हैं लेकिन देशी विदेशी दोनों महा मयाएं एवं एक अदद राजकुमार खमोश हैं। दादी और पिता के लिए इन्साफ का इंतज़ार राजकुमार को भी है वही मनमोहन को समझाएं, यदि वह अपनी मनमोहिनी मुद्रा में यूंही बैठे रहे तो इन्साफ तो दूर सामाजिक उन्माद की ही फसल कटेगी।
गुरुवार, 23 अक्टूबर 2008
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