बस रिवाज़ है एक भूमिका बनाने का ,
उसी के तहत फ़र्ज़ हम भी ये फ़र्ज़ निभाते हैं ,ज़माने को ये बताते हैं -
एक निगाह उन पर भी डालो -
जो गली कूचों का मौसम बे मौसम ,
बारहमासी कचरा बारहमास उठाते हैं।
ये 'हाथ' न हो तो शहरों का नज़ारा क्या हो?
दिल्ली वासी देख चुके हैं केज्रबवाल दिखला चुके हैं उन्हें ये तमाशा -
क्या हाल हो दिल्ली का गर सफाई कर्मी हाथ पे हाथ धरके बैठ जाएं?
हर बरस अमरीका आना होता है बरसों से यही क्रम ज़ारी है इसीलिए जब अपने देश भारत लौटता हूँ प्रवास की अवधि भुगता कर तब सोचता हूँ। कितनी साफ़ सफाई रहती है यहां कूचा कूचा गली गली। सफाई कर्मियों को यहां अमरीका में उतना ही आदर सम्मान प्राप्त है जितना किसी अन्य पेशा कर्मी को।
कितना फर्क है यहां नागर बोध में और हमारे हिन्दुस्तान के नागर बोध में -
वह हिन्दुस्तान जो पैट तो रखता है कुत्ता -शौक़ीन तो है लेकिन
-उसका एक्स्क्रीटा सड़क गली -कूचों की तो कौन कहे पार्कों में भी छोड़ आता
है।
जबकि यहां स्वान भी पर्यावरण का हिस्सा है। माई होम इज़ वेअर माँ डॉग इज़।
यहां सब पैट- मालिकों के हाथ में आप एक पूपर स्कूपर (बिष्टा ऊठाउ संडासी )देखियेगा जिससे वह पू उठाते हैं और एक पॉलिथीन बैग में रख लेते हैं अपने घर लाके वेस्ट बॉक्स में डालते हैं। वहां -वहां उन राज्यों में जहां सड़क के किनारे ही ऐसे बक्से लगें हैं जिनमें आप ये स्वान -मल (Dog excreta )डाल सकते हैं लोग इनका इस्तेमाल करते हैं। सैनिटाइज़र्स भी यहां आपको मिल जाएगा।
सिरीफोर्ट स्टेडियम ,नईदिल्ली और गुलमोहर पार्क कॉलोनी (जिसे जर्नलिस्ट कालोनी ) के निकट एक' गुलमोहर पार्क' है। यहां आपको कई सभ्रांत ,स्वान (कुत्ता )टहलाते मिल जाएंगे। एक्स्क्रीटा करवाने लाते हैं इन्हें भी सुबह -शाम की सैर के वक्त। एक मर्तबा इनमें से कई लोगों से मैंने बे -लाग कहा -भाई साहब मैं आपको गिफ्ट में पूपर स्कूपर लाकर दे सकता हूँ कृपया आप अपनी कॉलोनी में पहल कीजिये स्वच्छ भारत अभियान का हिस्सा बनिए।
प्रियोक्तियाँ बोलीं इन लोगों ने कहा हाँ हमें ये बात अच्छी लगी है। देखते हैं। बस आज तक वह देख ही रहें हैं। आप भी वहां जाके देख सकते हैं। नज़दीक में ही 'नीतिबाग -पार्क' है -यहां कुत्ता लाना मना है।
साफ़ रहता है यह पार्क। चारों तरफ यहां सुप्रीम कोर्ट के वकील -ही वकील हैं ,कई कांग्रेसी प्रवक्ता -नुमा- उकील भी यहां सैर करने आते हैं ,इस मामले में इनकी तारीफ़ करनी पड़ेगी अपना कुत्ता यहां नहीं लाते अलबत्ता सड़कों को ये भी गंधाते हैं अपने पैट्स के मार्फ़त उनके टट्टी पेशाब से।
कब बनेगी 'दिल्ली' 'चंडीगढ़' जहां कई इलाके ये पहल कर चुके हैं। कब होगा मेरा वृहत्तर भारत इस स्वच्छता अभियान में शामिल अपने मन से तन से,धन से।
और कुछ नहीं तो हम अपने पुराने कपड़े जो आजकल हमारे पास बे -हिसाब होते हैं इन कचरा बीनते ,हाथ -गाड़ियों में ले जाते ,सड़कों को बुहारते कुछ दरिद्र - नारायणों को दे सकते हैं। श्राद्ध पर्व पर इन्हें कुछ दे सकते हैं भोजन -पानी ,वो लें लेंवे ये उनका बड़प्पन होगा जो कुछ भी हमारे पास है वह उस 'एक' का ही दिया हुआ है,हमारा तो ये तन भी नहीं है। मात्र किराए का मकान है ये शरीर भी जिसे हम मेरा -मेरा कहते हैं।
हवा -पानी -जल -पृथ्वी -आकाश पाँचों मालिक हैं इस तन के हमारे पर्यावरण के ,हमारे 'होने' की सलामती के इन्हें ही हम गंधा रहें हैं बे -हिसाब।
पांच तत्वों से ये कैसी दुश्मनी है भाई ?
पढ़िए सुनिए एक जोशीले होनहार छात्र अपूर्व विक्रम शास्त्रा के उद्गार :शतश :प्रणाम ,आशीष इस मेधा को देश के प्रति इस समर्पण भाव को नमन :
((सन्दर्भ -सामिग्री :स्वच्छ जमीन हवा और पानी।
Sherwood School ,Nainital (NDTV DETTOL BANEGA SWACHH BHARAT ))
जो सरहद पर तो जा न सके ,पर अपना फ़र्ज़ निभाते हैं
------------------(अपूर्व विक्रम शाश्त्र ,कैप्टेन शेरवुड स्कूल नैनीताल )
जो सरहद पर तो जा न सके ,पर अपना फ़र्ज़ निभाते हैं ,
अस्वछता नामक शत्रु से ,भारत देश बचाते हैं ,
दो पल वतन के आज ,उनके नाम करता हूँ ,
जो सड़क नाले साफ़ करते, उन्हें सलाम करता हूँ।
घिन आती है लोगों को जिनसे ,
ज़माना जिन्हें धिक्कारता है ,
वो ही सच्चा सैनिक है ,जो गंदगी को मारता है।
तो दुनिया की नज़रों में जो कूड़े कबाड़ी -वाला है ,
सही मायने में वही हिन्दुस्तां का रखवाला है।
यूं तो हम सब सरहद पर, पौरुष दिखलाना चाहते हैं ,
इस्लामाबाद की धरती पर भी ,ध्वज लहराना चाहते हैं।
और ये खवाब बेशक पूरा होगा ,यौवन में वो ताकत है ,
शेरों के जो दांत गिने ,रक्त में वही हिमाकत है।
पर भरतवंशियों की हालत आज ,शर्म आती है बताने में
हम नाक सिकुड़ने लगते हैं ,एक कागज़ का टुकड़ा उठाने में।
तब सोचता हूँ ,ये दौर ऐसा कर लेगा ,
क्या सचमुच अपने हाथों में, वसुंधरा अंबर लेगा ,
अस्वछता से मैत्री है तो रजतिलक क्या लगायेंगें ,
जो हाथ झाड़ू उठा न पाएं , संगीन कैसे चलाएंगे।
सरहद सैनिक बचा लेंगे ,बैठे वतन की साधना में। .
हम भी तो कुछ अर्पण कर दें ,भारत माँ की अराधना में।
एक भीष्म प्रतिज्ञा अब ,हर जन भारत का ले -ले ,
अटूट प्रेम स्वच्छता से ,हर मन भारत का ले -ले ,
तो युद्ध का एलान अब ,गंदगी के खिलाफ हो ,
मांग शोणित की जनता से है , देश का कचरा साफ़ हो
जो हाथ झाड़ू उठा न पाए वो , संगीन क्या उठा पाएंगे ?
हुक्मरानों से उम्मीद यही, आशा है जवानी से ,
इल्तज़ा गांधीवाद की ,हर एक हिन्दुस्तानी से ,
सन्देश हमारा जमाने भर में ,हर पहर जाएगा
जम्बू दीप का जयघोष गगन में ,बेशक घहर जाएगा ,
भले खून न बहाये सरहद पर
एक छिलका अदब से उठाइये
बिना पवन ही अम्र तिरंगा यूं ही लहर जाएगा। ........ (अपूर्व विक्रम शास्त्र )
(१ )https://www.youtube.com/watch?v=waRTWkyF6_o
(२ )https://www.youtube.com/watch?v=-CFwUE-jEv8
(३ )https://www.youtube.com/watch?v=FmgXrH_tybo
(४ )https://www.youtube.com/watch?v=4T3kvppa2T4
(५ )https://www.youtube.com/watch?v=-CFwUE-jEv8
उसी के तहत फ़र्ज़ हम भी ये फ़र्ज़ निभाते हैं ,ज़माने को ये बताते हैं -
एक निगाह उन पर भी डालो -
जो गली कूचों का मौसम बे मौसम ,
बारहमासी कचरा बारहमास उठाते हैं।
ये 'हाथ' न हो तो शहरों का नज़ारा क्या हो?
दिल्ली वासी देख चुके हैं केज्रबवाल दिखला चुके हैं उन्हें ये तमाशा -
क्या हाल हो दिल्ली का गर सफाई कर्मी हाथ पे हाथ धरके बैठ जाएं?
हर बरस अमरीका आना होता है बरसों से यही क्रम ज़ारी है इसीलिए जब अपने देश भारत लौटता हूँ प्रवास की अवधि भुगता कर तब सोचता हूँ। कितनी साफ़ सफाई रहती है यहां कूचा कूचा गली गली। सफाई कर्मियों को यहां अमरीका में उतना ही आदर सम्मान प्राप्त है जितना किसी अन्य पेशा कर्मी को।
कितना फर्क है यहां नागर बोध में और हमारे हिन्दुस्तान के नागर बोध में -
वह हिन्दुस्तान जो पैट तो रखता है कुत्ता -शौक़ीन तो है लेकिन
-उसका एक्स्क्रीटा सड़क गली -कूचों की तो कौन कहे पार्कों में भी छोड़ आता
है।
जबकि यहां स्वान भी पर्यावरण का हिस्सा है। माई होम इज़ वेअर माँ डॉग इज़।
यहां सब पैट- मालिकों के हाथ में आप एक पूपर स्कूपर (बिष्टा ऊठाउ संडासी )देखियेगा जिससे वह पू उठाते हैं और एक पॉलिथीन बैग में रख लेते हैं अपने घर लाके वेस्ट बॉक्स में डालते हैं। वहां -वहां उन राज्यों में जहां सड़क के किनारे ही ऐसे बक्से लगें हैं जिनमें आप ये स्वान -मल (Dog excreta )डाल सकते हैं लोग इनका इस्तेमाल करते हैं। सैनिटाइज़र्स भी यहां आपको मिल जाएगा।
सिरीफोर्ट स्टेडियम ,नईदिल्ली और गुलमोहर पार्क कॉलोनी (जिसे जर्नलिस्ट कालोनी ) के निकट एक' गुलमोहर पार्क' है। यहां आपको कई सभ्रांत ,स्वान (कुत्ता )टहलाते मिल जाएंगे। एक्स्क्रीटा करवाने लाते हैं इन्हें भी सुबह -शाम की सैर के वक्त। एक मर्तबा इनमें से कई लोगों से मैंने बे -लाग कहा -भाई साहब मैं आपको गिफ्ट में पूपर स्कूपर लाकर दे सकता हूँ कृपया आप अपनी कॉलोनी में पहल कीजिये स्वच्छ भारत अभियान का हिस्सा बनिए।
प्रियोक्तियाँ बोलीं इन लोगों ने कहा हाँ हमें ये बात अच्छी लगी है। देखते हैं। बस आज तक वह देख ही रहें हैं। आप भी वहां जाके देख सकते हैं। नज़दीक में ही 'नीतिबाग -पार्क' है -यहां कुत्ता लाना मना है।
साफ़ रहता है यह पार्क। चारों तरफ यहां सुप्रीम कोर्ट के वकील -ही वकील हैं ,कई कांग्रेसी प्रवक्ता -नुमा- उकील भी यहां सैर करने आते हैं ,इस मामले में इनकी तारीफ़ करनी पड़ेगी अपना कुत्ता यहां नहीं लाते अलबत्ता सड़कों को ये भी गंधाते हैं अपने पैट्स के मार्फ़त उनके टट्टी पेशाब से।
कब बनेगी 'दिल्ली' 'चंडीगढ़' जहां कई इलाके ये पहल कर चुके हैं। कब होगा मेरा वृहत्तर भारत इस स्वच्छता अभियान में शामिल अपने मन से तन से,धन से।
और कुछ नहीं तो हम अपने पुराने कपड़े जो आजकल हमारे पास बे -हिसाब होते हैं इन कचरा बीनते ,हाथ -गाड़ियों में ले जाते ,सड़कों को बुहारते कुछ दरिद्र - नारायणों को दे सकते हैं। श्राद्ध पर्व पर इन्हें कुछ दे सकते हैं भोजन -पानी ,वो लें लेंवे ये उनका बड़प्पन होगा जो कुछ भी हमारे पास है वह उस 'एक' का ही दिया हुआ है,हमारा तो ये तन भी नहीं है। मात्र किराए का मकान है ये शरीर भी जिसे हम मेरा -मेरा कहते हैं।
हवा -पानी -जल -पृथ्वी -आकाश पाँचों मालिक हैं इस तन के हमारे पर्यावरण के ,हमारे 'होने' की सलामती के इन्हें ही हम गंधा रहें हैं बे -हिसाब।
पांच तत्वों से ये कैसी दुश्मनी है भाई ?
पढ़िए सुनिए एक जोशीले होनहार छात्र अपूर्व विक्रम शास्त्रा के उद्गार :शतश :प्रणाम ,आशीष इस मेधा को देश के प्रति इस समर्पण भाव को नमन :
((सन्दर्भ -सामिग्री :स्वच्छ जमीन हवा और पानी।
Sherwood School ,Nainital (NDTV DETTOL BANEGA SWACHH BHARAT ))
जो सरहद पर तो जा न सके ,पर अपना फ़र्ज़ निभाते हैं
------------------(अपूर्व विक्रम शाश्त्र ,कैप्टेन शेरवुड स्कूल नैनीताल )
जो सरहद पर तो जा न सके ,पर अपना फ़र्ज़ निभाते हैं ,
अस्वछता नामक शत्रु से ,भारत देश बचाते हैं ,
दो पल वतन के आज ,उनके नाम करता हूँ ,
जो सड़क नाले साफ़ करते, उन्हें सलाम करता हूँ।
घिन आती है लोगों को जिनसे ,
ज़माना जिन्हें धिक्कारता है ,
वो ही सच्चा सैनिक है ,जो गंदगी को मारता है।
तो दुनिया की नज़रों में जो कूड़े कबाड़ी -वाला है ,
सही मायने में वही हिन्दुस्तां का रखवाला है।
यूं तो हम सब सरहद पर, पौरुष दिखलाना चाहते हैं ,
इस्लामाबाद की धरती पर भी ,ध्वज लहराना चाहते हैं।
और ये खवाब बेशक पूरा होगा ,यौवन में वो ताकत है ,
शेरों के जो दांत गिने ,रक्त में वही हिमाकत है।
पर भरतवंशियों की हालत आज ,शर्म आती है बताने में
हम नाक सिकुड़ने लगते हैं ,एक कागज़ का टुकड़ा उठाने में।
तब सोचता हूँ ,ये दौर ऐसा कर लेगा ,
क्या सचमुच अपने हाथों में, वसुंधरा अंबर लेगा ,
अस्वछता से मैत्री है तो रजतिलक क्या लगायेंगें ,
जो हाथ झाड़ू उठा न पाएं , संगीन कैसे चलाएंगे।
सरहद सैनिक बचा लेंगे ,बैठे वतन की साधना में। .
हम भी तो कुछ अर्पण कर दें ,भारत माँ की अराधना में।
एक भीष्म प्रतिज्ञा अब ,हर जन भारत का ले -ले ,
अटूट प्रेम स्वच्छता से ,हर मन भारत का ले -ले ,
तो युद्ध का एलान अब ,गंदगी के खिलाफ हो ,
मांग शोणित की जनता से है , देश का कचरा साफ़ हो
जो हाथ झाड़ू उठा न पाए वो , संगीन क्या उठा पाएंगे ?
हुक्मरानों से उम्मीद यही, आशा है जवानी से ,
इल्तज़ा गांधीवाद की ,हर एक हिन्दुस्तानी से ,
सन्देश हमारा जमाने भर में ,हर पहर जाएगा
जम्बू दीप का जयघोष गगन में ,बेशक घहर जाएगा ,
भले खून न बहाये सरहद पर
एक छिलका अदब से उठाइये
बिना पवन ही अम्र तिरंगा यूं ही लहर जाएगा। ........ (अपूर्व विक्रम शास्त्र )
(१ )https://www.youtube.com/watch?v=waRTWkyF6_o
(२ )https://www.youtube.com/watch?v=-CFwUE-jEv8
(३ )https://www.youtube.com/watch?v=FmgXrH_tybo
(४ )https://www.youtube.com/watch?v=4T3kvppa2T4
(५ )https://www.youtube.com/watch?v=-CFwUE-jEv8
1 टिप्पणी:
अविश्मरणीय रोचक प्रस्तुति शब्दों का खूबसूरत खेल
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