सोमवार, 2 अक्तूबर 2017

'सृष्टि का निर्माण दो अंको वाला नाटक है'खुलासा करता है स्टेंडर्ड मॉडल आफ पार्टिकिल फ़िज़िक्स

'सृष्टि का निर्माण दो अंको वाला नाटक है'खुलासा करता है स्टेंडर्ड मॉडल आफ पार्टिकिल फ़िज़िक्स ।

 पहले अंक में सृष्टि - रूपा रंग-मंच पे इसके प्रसव की  चर्चा होती है कॉस्मोलॉजी में ,दूसरे अंक में उन किरदारों की  जो पहले अंक में स्टेज के पीछे रंगभूमि में थे। समय -काल के संकुल में स्पेस -टाइम में ये अलग -अलग कलाकार (एक्टर्स )क्या करते हैं। खाली स्पेस एम्प्टी स्पेस या अंतरिक्ष में इनकी  क्या लीला चल रही है कुल कितने एक्टर्स हैं इस नाटक में ,इसी की चर्चा कण -भौतिकी में" स्टेंडर्ड मॉडल" करता है। सबके रोल्स (किरदारों )का यह "मानक -निदर्श "खुलासा करते हुए बतलाता है।कितना नार्मल मैटर है सृष्टि में ,खाली अंतरिक्ष क्या सचमुच खाली है या यहां किसी फ़ोर्स आफ फील्ड का आधिपत्य बना हुआ है ?किन  बुनियादी बिचोलियों का डेरा है इस एम्प्टी स्पेस में। दुनिया भर के शक्तिशाली एक्सलरेटरों (कण त्वरकों या पार्टिकिल एक्सलरेटरों ने जो इन किरदारों को साफ़ -साफ़ दिखलाते हैं रौशनी में लाते हैं ,उन्ही की चर्चा करते हुए स्टेंडर्ड -मॉडल (मानक -निदर्श )बतलाता है :

 इस सृष्टि  में  दो ही तरह के कण हैं कुनबे  हैं -कण -कुनबे हैं ,फंडामेंटल पार्टिकिल्स या बुनियादी    कणों के :

पहला कुनबा

(१ ) फर्मिऑन्स का है दूसरा

(२)  बोसोन्स का

सामन्य पदार्थ (नार्मल मैटर )जिन बुनियादी कणों से मिलकर बना है उन्हें फर्मीयांस कहा गया है। प्रकृति में कार्यरत बलों के  बिचोलियों को (mediators of forces between fermions )बोसॉन कहा गया है यही बोसॉन  इन बुनियादी फर्मीयोंस के बीच कूद -फांद करते हैं ,इन बलों  की एक डोर बनते , बुनते हैं इस मानक -निदर्श में।

चार किस्म के बुनियादी प्राकृत बल काम करते हैं सृष्टि में :

(१ )इलेक्ट्रो -मेग्नेटिस्म (इल्क्ट्रोमैग्नेटिक फ़ोर्स )

(२ )ग्रेविटी (गुरुत्व बल )

(३ )शक्तिमान नाभिकीय बल (The strong nuclear force )

(4 )कमज़ोर नाभिकीय बल (The weak nuclear force )

बोसोन्स ही द्रव्य की इन बुनियादी कणिकाओं फर्मीयोंस को इन बलों का एहसास (अनुभूति ,तज़ुर्बा )कराते हैं।

एक पेचीला गणित इनके बीच होने वाली क्रिया -प्रतिक्रिया (interaction )का रचा गया है। इस गणितीय प्रारूप का नाम ही स्टेंडर्ड मॉडल है फ़िज़िक्स की जुबान में।

फर्मीयोंस में  बुनियादी तौर पर दो ही  किस्म के कण हैं :

(१ )क्वार्क्स

(२)लेप्टोंस

लैप्टॉन इलेक्ट्रॉन की तरह आवेशित कण होते हैं ,बहुत हलके भी अलावा इलेक्ट्रॉन के अनावेशित न्यूट्रिनोज भी हैं (un-chrged leptons )इस परिवार में किस्म -किस्म के.

 इलेक्ट्रॉन को आप  चार्ज्ड -लेपटोन भी कह सकते हैं न्यूट्रिनोज (लिटिल न्यूट्रल पार्टिकिल )को न्यूट्रल -लेप्टोंस भी आप कह सकते हैं। 

क्वार्क्स पर भी आवेश होता है लेकिन ये अपेक्षाकृत भारी होते हैं हालांकि किसी ने इन्हें आज तक देखा नहीं है प्रेक्षण में नहीं आये हैं क्वार्क्स लेकिन एक संयुक्त -दल के रूप  में ये प्रोटोन और न्यूट्रॉन में मौजूद रहते हैं। बाउंड पार्टिकिल्स के रूप में ही हैं ये प्रोटोन और न्यूट्रॉन में। स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है इनका।  वैयक्तिक अस्तित्व भी नहीं है। बाउंड स्टेट में ही मिलेंगे क्वार्क्स सदैव ही।

एक पूरा का पूरा कण -चिड़ियाघर रचा जा सकता है क्वार्कों से लेप्टानों (इलेक्ट्रानों )से.

इनमें से प्रत्येक कण प्रकृति में कार्यरत चार बलों में से किसी न किसी एक बल का अनुभव ज़रूर करता है ज़रूरी नहीं है वह इन चारों बलों को एक साथ भोगे -भुगते।

अलबत्ता  गुरुत्व बल का एहसास और अनुभव प्रत्येक कण को होता है लेकिन विद्युतचुंबकीय बल की अनुभूति केवल आवेशित कणों  को ही होगी जो इसे भुगतते -भोगते हैं और महसूस करते हैं।

'मानक -निदर्श' इन विभिन्न बलों की इनके विभिन्न संयोजनों की  ही गवेषणा करता है ,विभिन्न  प्रारूपण डायग्रामों द्वारा इन्हें समझाता है।

गुरुत्व बल के लिए क्वांटम क्रोमोडायनेमिक्स है।  

ऐसे गोस्ट (भूतहा ) कण भी हैं जो इनमें से किसी भी बल का अनुभव नहीं करते इन्हें शेडो -स्ट्रक्चर कहा गया है शैडो -पार्टिकिल कहा गया है। है न मनोरम इनका क्रियाकलाप और लीलाएं। ये शैडो कण और इनसे बने शख्स आपके पास कुर्सी डालके बैठेंगें और आपको इनकी भनक भी नहीं लगेगी। इनके लिए अलग किस्म का स्ट्रांग न्यूक्लिअर फ़ोर्स हैं अन्य जुदा किस्में हैं बलों की।

अलावा इसके सृष्टि में एंटी -मैटर भी है जिस का चार्ज नार्मल -मैटर के अपोज़िट रहता है। जैसे पॉजिटव चार्ज  का इलेक्ट्रॉन यानी 'पॉज़िट्रॉन' एंटी मैटर का एक कण हैं,जो इलेक्ट्रॉन का ही जुड़वां है लेकिन आडेंटिकल ट्विन न होकर पैटर्नल ट्विन है यानी एक लड़का है (नार्मल मैटर )तो एंटीमैटर लड़की। लेकिन यहां ये सहोदर एक दूसरे को फूटी आँख नहीं देख सकते। जैसे ही इनका संयोग होता है ये एक दूसरे को नष्ट कर देते हैं मानव -बम की तरह। यह उपमा यहां सिर्फ अपनी बात को स्पस्ट करने के लिए ही दी गई है। इनके स्वभाव संस्कार जन्मभूमियाँ अलग -अलग रहतीं हैं।
अलबत्ता दोनों मिलके जब एक पेक्ट के तहत  नष्ट होते हैं तो ऊर्जा रूप एक गामा -रे मिल जाती है ऐसे ही जब गामा -रे विनष्ट होती है तो एक इलेक्ट्रॉन -पॉज़िट्रॉन जोड़ा कहीं और पैदा हो जाता है।

अलबत्ता न तो यह मानक -निदर्श और न ही कोई भौतिकी या सृष्टि विज्ञान का माहिर ये बता सकता है कि सृष्टि में व्याप्त एंटीमैटर कहाँ है ये कायनात नार्मल मैटर की ही बनी है तो क्यों बनी है। पहेली है यह समझना।

हो सकता है एक और यूनिवर्स हो इन प्रति -कणों  का  जिसे आप चाहें तो एंटी -यूनिवर्स कह लें  लेकिन अपने  तईं तो वह भी यूनिवर्स ही है वह नार्मल यूनिवर्स को एंटी  -यूनिवर्स कह देगा।

हिग्स बोसॉन का संबंध 'हिग्स फील्ड आफ फ़ोर्स' से क्यों जोड़ा गया है क्या है यह क्वांटम फील्ड (हिग्स फ़ोर्स )?

हिग्स फील्ड (क्वांटम फील्ड )का सम्बन्ध एक प्रकार के बल से जोड़ा गया है जो शेष कणों   के  साथ कुछ विशेष प्रकार से इंटरेक्ट करता है इनमें से कुछ को अपने इनर्शिया का (रेज़िस्टेंस टू  चेंज टू  देअर स्टेट आफ मोशन आर रेस्ट  )का एहसास होने लगता है। पदार्थ हम कहते ही उसे हैं जिसमें द्रव्य -मान  हो।पदार्थ का मूलभूत गुण नेसेसरी एट्रीब्यूट है उसमें द्रव्यमान का होना।

कमाल यह है अंतरिक्ष के तमाम खाली भाग में इसी क्वांटम फील्ड (हिग्स फील्ड )की परिव्याप्ति है।

ईसवी सन १९६४ (Year 1964 )में छः भौतिक शास्त्रियों ने इस अवधारणा का खुलासा किया है उसी अवधारणात्मक कण की कथित मौजूदगी की  घोषणा २०१२ में हुई है।

यह दुर्भाग्य भी है प्रारब्ध और इत्तेफाक भी  है इनमें से  ज़िक्र सिर्फ पीटर  हिग्स का ही किया जाता है।

योरोपीय न्यूक्लिअर रिसर्च सेंटर   CERN के तत्वावधान में लार्ज -हेड्रॉन कोलाइडर से चस्पा अब तक के सबसे मेंहगे खर्चीले चालीस साला महत्वाकांक्षी  प्रयोग का  यही फील्ड पार्टिकिल "बोसॉन "लक्ष्य  बना है।और शायद अब लीला भूमि बना है। इससे पहले यह रंगभूमि में ही रहा आया है।

ज़ाहिर है इलेक्ट्रॉन और क्वार्कों को द्रव्यमान मुहैया करवाने वाली अदृश्य सत्ता यह क्वांटम फील्ड (बोसॉन -फील्ड )ही रहा है।

फाइन ट्युनिंग (फाइन स्ट्रक्चर) कोंस्टेंट्स ?

कण भौतिकी के मानक -निदर्श (स्टेंडर्ड मॉडल आफ पार्टिकिल फ़िज़िक्स )में २४ नियतांक हैं (Constants ),ये नंबर बहुत बारीकी से सृष्टि के होने से बेहतरीन तालमेल बिठाये हुए हैं इनमें से कुछ का मान अभी निकालना बाकी है लेकिन इनके मान में ज़रा भी घटबढ़ हमारे जीवन में बड़े बदलाव ला सकती है। बदलाव की इज़ाज़त नहीं है। मसलन विद्युतचुंबकीय बलों के मामले में हम एक फाइन स्ट्रक्चर कांस्टेंट की बात करते हैं दस लाख के पीछे मात्र एक की घट बढ़ वहां बड़े बदलाव ला सकती है। इसी प्रकार ये जो नंबर हैं चाहे  जो भी इनका मान है उन में ज़रा भी बदलाव की गुंजाइश नहीं है। 
 गुरुत्व बल के मामले में हम नियतांक "G"(गुरुत्वीय नियतांक ,ग्रेविटेशनल कांस्टेंट )की बात करते हैं ,जिसमें बदलाव की गुंजाइश नहीं है ज़रा सा बदलाव जीवन की परिभाषा बदल सकता है फिर चाहे इस बदलाव की वजह से चाँद छिटक कर हमसे परे चला जाए या सूरज। तभी तो कहा जाता है -पृथ्वी पर इतिफाक से जीवन है तो इसलिए की कुछ नंबर हैं जो उतने ही रहते हैं जितने रहने चाहिए।फाइन ट्यूनिंग है जीवन की इन नंबरों के साथ।  

जीवन के अस्तित्व और जीवन बने रहने के लिए -

(१)सही दूरी है पृथ्वी और सूरज के बीच में यहां जीवन की संभावना के लिए 
(२ )एक दम से सटीक गुरुत्व मान है जो पृथ्वी के वायुमंडल  को बनाये रहता है वायुमंडल को थामे रहता है। वरना हाइड्रोजन कब की हमारे परिमंडल से जैसे कूच  कर चुकी है वायुमंडल की शेष गैसें  भी ऐसा ही करतीं। हाइड्रोजन की  हमें सांस की आवजाही के लिए न तो ज़रूरत ही है और न ही पृथ्वी का गुरुत्व -मान उसे अपने परिमंडल में बनाये रहने के लिए पर्याप्त ही  है। वह ठीक -ठीक उतना ही है जितना हमारे वर्तमान वायुमंडल को थामे रहने के लिए ज़रूरी है। 
पृथ्वी का ताप -बजट ,गुरुत्व -बजट एक अहम मसला है थोड़ी घट बढ़ जीवन के लिए बड़े खतरे बन सकती है। इसीलिए आज जलवायु परिवर्तन की सुगबुगाहट है जो हमारी पृथ्वी के औसत तापमानों में घट बढ़ की बड़ी वजह बन सकती है।  

विशेष :खाली स्थान या एम्प्टी स्पेस एक 'मिसनोमर' है गलत कथन है क्योंकि जिसे हम खाली स्थान समझते हैं वहां बोसॉन -फील्ड मौजूद हैं। 

सन्दर्भ -सामिग्री :

(१)https://en.wikipedia.org/wiki/Higgs_boson

(२ )https://www.youtube.com/watch?v=Extf5YWGjWw

(३ )https://en.wikipedia.org/wiki/Lepton

(४ )https://medium.com/starts-with-a-bang/lhcs-latest-results-victory-for-the-standard-model-62fa13947d

(५ )http://www.quantumdiaries.org/2014/03/14/the-standard-model-a-beautiful-but-flawed-theory/

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