माया महा ठगनी हम जानी।।
तिरगुन फांस लिए कर डोले बोले मधुरे बानी।।
केसव के कमला वे बैठी शिव के भवन भवानी।।
पंडा के मूरत वे बैठीं तीरथ में भई पानी।।
योगी के योगन वे बैठी राजा के घर रानी।।
काहू के हीरा वे बैठी काहू के कौड़ी कानी।।
भगतन की भगतिन वे बैठी ब्रह्मा के ब्रह्माणी।।
कहे कबीर सुनो भई साधो यह सब अकथ कहानी।।
भावार्थ करने की चेष्टा करते हैं। पहले यह जाने माया है क्या ?जो अभी है और अभी नहीं है ,नित बदलती रहती है हमारे शरीर की तरह ,जो म्यूटेबिल है वह माया है। जो सत्य भी नहीं है असत्य भी नहीं है और यह दोनों भी नहीं है ,वह माया है। जगत को मिथ्या कहा गया है जगत मिथ्या नहीं है ,उसके साथ हमारा लेन देन है ट्रांजेक्शन है वह मिथ्या कैसे हो सकता है। जगत स्वयं परमात्मा की अभिव्यक्ति है। उससे अलग नहीं है। माया परमात्मा की शक्ति है लेकिन जीव को विमोहित किये रहती है। माया को ही प्रकृति (त्रिगुणात्मक प्रकृति ,सतो-रजो-तमो गुणी सृष्टि )कहा गया है।
ईश्वर ,जीव और माया अनादि हैं। जीव माया के अधीन है। जीव और माया दोनों ईश्वर के अधीन है। माया से हमारे विमोहित होने का कारण हमारा अहंकार है। हम तो कृत हैं परमात्मा की और अपने को कर्ता मानने बूझने लगते है।
हम न करता हैं न भोक्ता ,भुक्त हैं। करता प्रकृति के तीनों गुण हैं हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ अपने विषयों में आसक्त हो जाती हैं। हम आनंद को बाहर ढूंढने लगते हैं।जबकि आनंद तो हम स्वयं है।
आनंद अंदर की यात्रा है हम इसे बाहर ढूंढ रहे हैं। यही हमारे आत्म -विमोह का कारण है। जबकि सृष्टि भी कृत है और हम भी इससे जुदा नहीं हैं अलहदगी हमारी दृष्टि में है।
कृपया इस सेतु को भी देखें :
Maya Maha Thugni Hum Jaani
Tirgun Phans Liye Kar Dole Bole Madhuri Bani Kesav Ke Kamla Ve Baithi Shiv Ki Bhavan Bhavani Punda Ke Murat Ve Baithi Tirath Mein Bhai Pani Yogi Ke Yogin Ve Baithi Raja Ke Ghar Rani Kahu Ke Hira Ve Baithi Kahu Ke Kodi Kani Bhaktan Ke Bhaktin Veh Baithi Brahma Ke Brahmani Kahe Kabir Suno Bhai Sadho Yeh Sab Akath Kahani
Translation
I Have Come to Know the Illusory Power to be a Great Thug
Her Hands Sway Holding a Web-like Trap She Speaks in a Sweet Voice For Kesava, the Sustainer, She is Seated as the Embodiment of Abundance For Shiva, the God of Dissolution, She is the Empress of the Worlds For the Priest She is Seated as the Idol of Worship And in Places of Pilgrimage She Manifests as the Holy Water For Yogis She is Seated as the Spiritual Partner In the King's Palace She is the Queen For Some She is Seated as a Priceless Diamond For Some She is a Mere Penny For Devotees She is Seated in the Object of Devotion For Brahma She is His Consort Says Kabir Listen Oh Practicing Aspirant All this is an Untold Story
Explanation
Maya has been traditionally described as illusion. Often the physical world itself is referred to as being not real or an illusion. However, in my experience, the illusion is really in our perception of the physical reality where we experience the outside world as different from ourselves. We believe that happiness is a function of this outside world, thereby making us put extraordinary effort in changing this external reality. This dynamic experience stimulated by the external world is seductive and change is its inherent property. Even though this changing transient reality is unable to give us lasting joy or happiness, we continue to fervently believe in its capability to give us exactly that. This is Maya or illusion.
Kabir succinctly describes this fact by illustrating how the life's focus, for everybody, is on an external reality. And this continuing externally-directed focus is illusory because of the transient nature of the relationship between the subject and the object. Whether it is a rich man looking for a diamond, a beggar wanting a penny, a devotee seeking the object of her worship, Maalok translating a Kabir song that will be well received by the readers or Rajender monitoring readers' comments and page views on the site - they all are rooted in Maya. Here is an exercise that I recommend (I fail in it more often than not) - Try to find a source of joy that is independent of anything (external) or any person. Doing that may require some effort but it should be possible. Now try to observe (and not act on) your tendency to teach/tell/discuss/write this with others - not that there is anything "wrong" in being motivated by the external world; however this exercise will help you clearly see whether the source of joy is indeed coming from within you. Perhaps this may embark you too on a journey that Kabir describes as the untold story. Maya, maha thagini hum jaani... - YouTube
https://www.youtube.com/watch?v=YJt2EdYufno
Feb 18, 2010 - Uploaded by nemobose71
Kahat Kabir suno ho santo, ... Maya, maha thagini hum jani. ... maha mayi ta ki hai chayaa ( maya ... |
3 टिप्पणियां:
माया और जीव सब परमात्मा के अधीन है
कर्ता भी वही है और धर्ता भी वही है.
: रू-ब-रू
साहिब(संत कबीर),संसार को या परमात्मा को समझना चाह रखने वाले जिज्ञासुओ को समझाते हुए कह रहे हैं कि
माया कई रूपो में हमें ठगती चली आ रही है,ठग रही है और ठगती रहेगी....
आसक्ति और अहंकार दोनों माया के कारण ही हमारे अन्दर बैठा हुआ है। भाई लोग इसे समझो,अनुभव करो। नहीं तो यही माया चओरासि के चक्कर लगवाती रहेगी....🌹
रजोगुन,सतोगुन और तमोगुन के भगवान ब्रह्मा,विष्णु और महेश भी इस माया में उलझ कर राह जाते है।
भूल गए उस कथा को क्या? जब माता सती के जलते हुए शरीर को कंधे पर लेकर ,आकाश मार्ग से क्रोधित अवम विक्छिपत अवस्था में भगवान महेश्वर् विचर रहे थे!
और भगवान विष्णु ने भगवान महेश्वर के मोह को bhang
करने के लिए सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को कई टुकड़ो में विभक्त कर दिया।
भाई मेरे,अब तो जागो...
पंडितो के दिखाए भगवान को साधन अवश्य समझो पर ूउस मूर्ति के माया से बाहर निकलो और सत्य परमात्मा में मन को लगाओ।
बस ैएक ही मार्ग है... ाआत्मा परमात्मा को खोजो नहीं तो ये ठगिनि माया,तुम्हें बार बार तड़पा तड़पा कर मारती रहेगी और बार बार संसार में सन्करी नाली से गुज़ारते हुए, महा पीड़ा देते हुए संसार में ढकेलती रहेगी।
इस लिए ब्रह्मज्ञानी गुरु के चरण पखारो और इस माया रुपी अहंकार से मुक्त हो जाओ...🙏🕉🌹
हरी ॐ...🙏🕉🌹
साहिब बंदगी...🙏🕉🌹
मेरे गुरुदेव परम पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू की कृपा और प्रेरणा से ...🙏🕉🌹
सन्त श्री आसरामजी भी माया के चक्कर से नहीं बच पाए
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