सोमवार, 24 अक्टूबर 2016

विचार प्रवाह :जब नाटक नाटककार से बड़ा हो जाए

विचार प्रवाह :जब नाटक नाटककार से बड़ा हो जाए

नाटक तभी तक नाटक रहता है जब उसकी पटकथा नाटककार द्वारा सृजित कथा के अनुरूप बढ़ती रहे। लेकिन जब श्रोता भी उसमें शामिल हो जाए तब नाटक उलझ जाता है। मुलायम के कुनबे द्वारा खेले गए नाटक के साथ यही हुआ है।नाटक नाटक-कार से बड़ा हो गया है।


एक तरफ मुलायम अमर  सिंह को छोड़ने के लिए राजी नहीं हैं जिन्होनें मुलायम को जेल जाने से बचाया था। दूसरी तरफ शिवपाल यादव उस मार को नहीं भुला पा रहे हैं जो उन्होंने अखिलेश के लड़कों के हाथों खाई है। इसीलिए उन्होंने रामगोपाल यादव को छः साल के लिए पार्टी से निकाल दिया है।मामला पूरी तरह उलझ गया है। मुलायम सिंह यदुवंश की  कलह के अब दर्शक तो बन सकते हैं सूत्रधार नहीं।   

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