रविवार, 2 अक्टूबर 2016

माँ कालिके हुंकार दो कुल शत्रु जायें सिटपिटा। सिर काट कर खप्पर भरो दो रक्तबीजों को मिटा।


मित्रवर एवं नामचीन कुंडलाकार रविकर (दिनेश चन्द उर्फ़ रविकर फ़ैज़ाबादी )ने मेसेंजर पर ये पंक्तियाँ भेजी थीं ,मुख-चिठ्ठा इसके वाचन से वंचित क्योंकर रहे )
Virendra Sharma
3 hrsCanton
सुप्रभात आदरणीय
आतंक का साम्राज्य छाया अति निरंकुश क्रूरता।
शुम्भों निशुम्भों की बढ़ी तादाद रविकर धूर्तता।
माँ कालिके हुंकार दो कुल शत्रु जायें सिटपिटा।
सिर काट कर खप्पर भरो दो रक्तबीजों को मिटा।
शुम्भों-निशुम्भों-रक्तबीजों से जगत जलने लगा।
दुर्मुख असुर वरदान पाकर साधु-सुर छलने लगा।
ब्रहमा वरुण यम विष्णु व्याकुल इंद्र को खलने लगा।
सुर साधु बल-पौरुष घटा विश्वास जब ढलने लगा।
तब हो इकट्ठा देवता कैलास पर्वत पर गये।
गौरा विराजे रूप छाजे सर्व आनंदित भये।
बोले सकल सुर एक सुर मे कर कृपा जगदम्बिके।
सारे असुर संहार कर दीजै अभय माँ कालिके।
सुन कर विनय निर्णय करे माँ रूप मारक धर रही।
एकांश शिव मुख मे गया विषपान मैया कर रही।
आकार सम्यक रंग काला कंठ में शिव के बने।
तब तीसरा शिव नेत्र खोलें युद्ध अति-भीषण ठने।
माँ कालिके के माथ पर भी नेत्र शिव सम तीसरा।
शुभ चंद्र रेखा भाल पर विष शिव कराली था भरा।
धारे विविध आभूषणों को अस्त्र-शस्त्रों को लिए।
क्रोधित भयंकर रूप धारे रक्त खप्पर में पिए।।
यह देख कुल सुर-सिद्ध भागे कालिके हुंकार दे।
हुंकार से दुर्मुख सहित कुल दैत्य माँ संहार दे।
पर क्रोध बढ़ता देखकर सुर साधुजन घबरा गये।
तब रूप शिशु का धार कर पैरों तले शिव आ गये।
ममतामयी माँ ले उठा शिशु को पिलाती दुग्ध है।
यह दृश्य पावन देख कर नश्वर-जगत भी मुग्ध है।
शिव दुग्ध के ही साथ मॉ का क्रोध सारा पी गये।
माँ कालिका मूर्छित हुई शिव नृत्य फिर करते भये।
तांडव-भयंकर हो शुरू चैतन्य हो माँ कालिके ।
खुद मुंडमाला डालकर तांडव करे चंडालिके।
माँ योगिनी माँ कालिके कुल कष्ट भक्तों का हरो।
इस देश रविकर ग्राम पर कुल पर कृपा माता करो।।
सुप्रभात आदरणीय
आतंक का साम्राज्य छाया अति निरंकुश क्रूरता।
शुम्भों निशुम्भों की बढ़ी तादाद रविकर धूर्तता।
माँ कालिके हुंकार दो कुल शत्रु जायें सिटपिटा।
सिर काट कर खप्पर भरो दो रक्तबीजों को मिटा।
शुम्भों-निशुम्भों-रक्तबीजों से जगत जलने लगा।
दुर्मुख असुर वरदान पाकर साधु-सुर छलने लगा।
ब्रहमा वरुण यम विष्णु व्याकुल इंद्र को खलने लगा।
सुर साधु बल-पौरुष घटा विश्वास जब ढलने लगा।
तब हो इकट्ठा देवता कैलास पर्वत पर गये।
गौरा विराजे रूप छाजे सर्व आनंदित भये।
बोले सकल सुर एक सुर मे कर कृपा जगदम्बिके।
सारे असुर संहार कर दीजै अभय माँ कालिके।
सुन कर विनय निर्णय करे माँ रूप मारक धर रही।
एकांश शिव मुख मे गया विषपान मैया कर रही।
आकार सम्यक रंग काला कंठ में शिव के बने।
तब तीसरा शिव नेत्र खोलें युद्ध अति-भीषण ठने।
माँ कालिके के माथ पर भी नेत्र शिव सम तीसरा।
शुभ चंद्र रेखा भाल पर विष शिव कराली था भरा।
धारे विविध आभूषणों को अस्त्र-शस्त्रों को लिए।
क्रोधित भयंकर रूप धारे रक्त खप्पर में पिए।।
यह देख कुल सुर-सिद्ध भागे कालिके हुंकार दे।
हुंकार से दुर्मुख सहित कुल दैत्य माँ संहार दे।
पर क्रोध बढ़ता देखकर सुर साधुजन घबरा गये।
तब रूप शिशु का धार कर पैरों तले शिव आ गये।
ममतामयी माँ ले उठा शिशु को पिलाती दुग्ध है।
यह दृश्य पावन देख कर नश्वर-जगत भी मुग्ध है।
शिव दुग्ध के ही साथ मॉ का क्रोध सारा पी गये।
माँ कालिका मूर्छित हुई शिव नृत्य फिर करते भये।
तांडव-भयंकर हो शुरू चैतन्य हो माँ कालिके ।
खुद मुंडमाला डालकर तांडव करे चंडालिके।
माँ योगिनी माँ कालिके कुल कष्ट भक्तों का हरो।
इस देश रविकर ग्राम पर कुल पर कृपा माता करो।।
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मुरारि पचलंगिया जय अम्बे जय जगदम्बे
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