शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2016

हरिजन शब्द के निहितार्थ

हरिजन शब्द के निहितार्थ

महात्मा गांधी ने शूद्रों के लिए जब पहली मर्तबा हरिजन शब्द का इस्तेमाल किया तब उन्होंने सोचा न होगा आगे जाकर लोग इस शब्द से किस कदर छिटकेंगे। आज हरिजन का अर्थ फिर से शूद्र हो गया है। नाक भौं सिकोड़ने लगें हैं लोग आप बस ज़रा उन्हें कह दीजिये हम भाई साहब धानक (हरिजन )हैं। हरिजन बस्ती में से गुज़रते हुए लोग नाक  पे रुमाल रख लेते हैं। ऐसा तबका हिंदुस्तान में आज भी मौजूद है।

कबीर और रैदास उम्र भर इसी उपेक्षा का शिकार बने। कबीर इसलिए की उनका लालन पालन एक मुस्लिम जुलाहे के परिवार में हुआ और रविदास जी इसलिए ,वह जूता गांठने बनाने का काम करते थे। ( जाति से चमार थे ,वैसे इस शब्द का चलन आजकल प्रतिबंधित है ).

भले ऐसे मुहावरे आज प्रतिबंधित हैं :चमारी को चाची कह दिया तो चौके (रसोई घर )में घुस आई।

भंगी चमार चूड़ा शब्द प्रचलन से बाहर हो चुके हैं। लेकिन एक ब्रॉडस्पेकट्रम शब्द इनके लिए अब हरिजन मान लिया गया है ,हो गया है ,मान क्या लिया गया है । बिना सोचे समझे कि इसके निहितार्थ क्या हैं ,मायने क्या हैं।

हरिजन का ध्वनित अर्थ है हरि का बच्चा, हरि का भक्त ,संत ,महात्मा है हरिजन का अर्थ । हरि विष्णु को कहा जाता है। जब आप किसी को हरिओम कहकर संबोधित करते हैं तब आप एक साथ परमात्मा के सगुन और निर्गुण दोनों ही रूपों का स्मरण कर लेते हैं। ॐ परमात्मा के सर्वव्यापी निर्गुण निराकार स्वरूप का द्योतक है हरि  सगुण स्वरूप का।

वैसे सगुन ब्रह्म निराकार ब्रह्म का दृश्य रूप है तो निराकार ब्रह्म सगुन का अदृश्य रूप है। परमात्मा कहते ही उसे हैं जो विरोधी गुणों का प्रतिष्ठान है। सगुन साकार भी वही है निर्गुण निराकार भी वही है। सभी आकार भी उसी के हैं निराकार भी वही है। वह दूर भी है पास भी है। सूक्ष्मतर  भी है स्थूलतर भी वही है। निर्गुण वह इन अर्थों में है ,त्रिगुणात्मक सृष्टि (माया )से वह सदैव लेपित है निर्लेप है। तीनों गुणों से वह परे  है। वह सृष्टि के अंदर भी है बाहर भी और दोनों जगह नहीं भी है। माया में प्रति-बिम्बित  ब्रह्म को ईश्वर कहा  जाता है। सृष्टि का नियामक नियन्ता ईश्वर है ब्रह्म नहीं। भले ब्रह्म सर्वव्यापी है ,निर्गुण -निराकार है ,आकारी हो गया तो उसका सर्व -व्यापकत्व समाप्त हो जाएगा।

महाकवि पीपा के शब्दों में :

सगुण मीठो खांड सो ,निर्गुण कड़वो नीम

जाको गुरु जो परस दे ,ताहि प्रेम सो जीम।  

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