उड़ जायेगा हंस अकेला!
जग दर्शन का मेला।
जैसे पात गिरे तरुवर के
मिलना बहुत दुहेला।
न जानूँ किधर गिरेगा
लगया पवन का रेला।
जब होवे उमर पूरी
जब छुटेगा हुकम हुजूरी।
यम के दूत बडे मजबूत
यम से पडा झमेला।
दास कबीर हर के गुण गावे
वा हर को पार न पावे।
गुरु की करनी गुरु जायेगा
चेले की करनी चेला।।
जैसे पात गिरे तरुवर के
मिलना बहुत दुहेला।
न जानूँ किधर गिरेगा
लगया पवन का रेला।
जब होवे उमर पूरी
जब छुटेगा हुकम हुजूरी।
यम के दूत बडे मजबूत
यम से पडा झमेला।
दास कबीर हर के गुण गावे
वा हर को पार न पावे।
गुरु की करनी गुरु जायेगा
चेले की करनी चेला।।
आया है तो जाएगा ,तू सोचो अभिमानी मन ,
चेतो !अब चेतो ,दिवस तेरो नियराना है ,
कर से करि(करू ) दान- मान ,मुख से जप राम- नाम ,
वाही दिन आवे काम,जाहि दिन जाना है।
नदिया है अगम तेरी ,सूझत नहीं आर -पार ,
बूड़त हो बीच धार ,अब क्या पछताना है।
हे रे अभिमानी !झूठी माया ,संसारी गति ,
मुठी बाँध आया है ,तो खाली हाथ जाना है।
दुनिया दर्शन का है मेला ,अपनी करनी पर उतरनी ,
गुरु होय चाहे चेला ,दुनिया दर्शन का है मेला।
कंकड़ चुनि -चुनि महल बनाया ,लोग कहें घर मेरा ,
न घर मेरा न घर तेरा ,
चिड़िया रेन बसेरा।
दुनिया दर्शन का है मेला।
महल बनाया ,किला चुनाया ,
खेलन को सब खेला ,
चलने की जब बेला आई ,
सब तजि चला अकेला ,
दुनिया दर्शन का है मेला।
न कुछ लेकर आया बन्दे ,
न कुछ है यहां तेरा ,
कहत कबीर सुनो भाई साधौ ,
संग न जाए धेला।
दुनिया दर्शन का है मेला।
https://www.youtube.com/watch?v=SaWz7nluB_A
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