शनिवार, 14 नवंबर 2015

नेहरू जयंती और मोदी निंदा कहीं पर्यायवाची तो नहीं

नेहरू जयंती और मोदी निंदा कहीं पर्यायवाची तो नहीं ?लगता है सोनिया मायनो के कांग्रेस व्याकरण में अब ये समानार्थक शब्द हैं। नेहरू जयंती मनाने का सलीका भी नहीं है इन कांग्रेसियों में जहां खुद को महापंडित मानने समझने वाले महामहिम आनंद शर्मा भी मौजूद हैं चिदंबरम भी एक भी ऐसा ठीक से सोच पाने वाला व्यक्ति नहीं निकला जो याद दिला सके -नेहरू जयंती पर नेहरू का अवदान बतलाया जाए। मोदी निंदा नहीं। इससे मोदी का पलड़ा भारी होगा।

कैसे नेहरू ने  पंचवर्षीय योजनाओं की अवधारणा प्रस्तुत की ,कैसे  एक तटस्थ गुट खड़ा किया जिसे विदेश नीति का एक अंग बनाया (यह और बात है कि १९६२ के चीनी हमले के बाद नेहरू का यह आलमी चेहरा भी आभाहीन हो गया। ).

किसी ने नहीं बतलाया इस १२५ साला पार्टी में श्यामाप्रसाद मुखर्जी भी थे ,रामनोहर लोहिया भी थे ,सुभाष बॉस भी और राजगोपालाचार्य भी (जिन्होनें ने नेहरू की सिकन्दरी  से आज़िज़ आकर अपनी अलग स्वतन्त्र पार्टी बना ली थी। ). बाद की पार्टियां इसी दादी माँ कांग्रेस की कोख से निकलीं।मोरारजी भाई देसाई ,जगजीवनराम सभी यहीं थे।

इंडीकेट सिंडिकेट का ड्रामा यहीं खेला गया था।

क्या कहना चाहती है कांग्रेस अब नेहरू घिसा हुआ सिक्का हो गए। उनका नाम नहीं चलेगा। भारत के आधुनिक मंदिरों ,न्यूक्लियर कार्यक्रम ,बड़े जलाशयों बांधों के निर्माता अब नाकारा हो गये।

मंदमति को तो नज़रअंदाज़ किया जा सकता है लेकिन मनमोहन भी वही बोले अपना पूडलत्व कायम रखते हुए -मोदी विदेश में अपनी अर्थशाश्त्र की दूकान चला रहे हैं। (तुम अपना पूडलत्व बनाये हुए हो। जय हो !).

क्या हो गया इस शतकोत्तरी(पच्चीस ऊपर सौ साला ) कांग्रेस को ? नै पीढ़ी को तो यही सन्देश जाएगा -बच्चे तो यही समझेंगें -नेहरू जयंती का श्रीगणेश मोदी निंदा से होता है। नेहरू और मोदी निंदा कांग्रेस व्याकरण में पर्यायवाची ,समानार्थक एक ही अर्थ और भाव बोध वाले शब्द हैं।

एक लोमड़िया की बुद्धिवाली

सबकी मति हर लेइहिंहि।

अब किसको प्रभु क्या कहइहिंहि।
  

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