वह आँख की भी आँख है ,देखती आँख नहीं है देखने वाला कोई और है। वह
जो श्रवण का भी श्रवण है सुनता है वो कान तो उपकरण भर हैं ,वह जो वाक्
को सम्भाषण देता है वाणी की भी वाणी है ,मन को सोचने की सामर्थ्य देता है
वह साक्षी ही तो मैं हूँ। लेकिन प्रकाश प्रकाश को कैसे देखे। वह तो प्रकाशक
है। अयं आत्मा ब्रह्म। अहम ब्रह्मास्मि। सत्यम ज्ञानम् अनन्तं। कबीर दास जी
कहते हैं सातों समन्दरों की यदि स्याही बना ली जाए और सगरे वनप्रांतरों की
कलम तो भी उसकी महिमा कही नहीं जा सकती।
गिरा नैन बिन ,
जो श्रवण का भी श्रवण है सुनता है वो कान तो उपकरण भर हैं ,वह जो वाक्
को सम्भाषण देता है वाणी की भी वाणी है ,मन को सोचने की सामर्थ्य देता है
वह साक्षी ही तो मैं हूँ। लेकिन प्रकाश प्रकाश को कैसे देखे। वह तो प्रकाशक
है। अयं आत्मा ब्रह्म। अहम ब्रह्मास्मि। सत्यम ज्ञानम् अनन्तं। कबीर दास जी
कहते हैं सातों समन्दरों की यदि स्याही बना ली जाए और सगरे वनप्रांतरों की
कलम तो भी उसकी महिमा कही नहीं जा सकती।
गिरा नैन बिन ,
नैन बिन वाणी।
न जुबान को दिखाई देता है ,न निगाहों से बात होती है। प्रेम और ईश्वर अनुभूति का विषय है ,गूंगे के गुड़ सा ,बयाँ कैसे किया जाए ?
एक प्रतिक्रिया :
प्रेम और ईश्वर
ये दो विषय ऐसे हैं, जिनको परिभाषित करने में
मैंने स्वयं को हमेशा असमर्थ पाया है।
ये दो विषय ऐसे हैं, जिनको परिभाषित करने में
मैंने स्वयं को हमेशा असमर्थ पाया है।
1 टिप्पणी:
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (10.11.2015) को "दीपों का त्योंहार "(चर्चा अंक-2156) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ, सादर...!
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