बिहार चुनाव में एनडीए अर्थात भाजपा की पराजय पर अनेक तर्क वितर्क दिए जा रहे हैं। पराजय के मूल कारण संगठन सम्बन्धी और टिकिट वितरण संबंधी जो भी कमज़ोरियाँ रहीं हों उनको दरकिनार कर ये जताने की कोशिश की जा रही है कि आरएसएस के मोहन भागवत के आरक्षण सम्बन्धी बयान से भाजपा की हार हुई है। कई चैनल तो आरक्षण संबंधी विचार संज्ञा शब्द के स्थान पर आरक्षण विरोधी विचार ऐसी शब्दावली का इस्तेमाल कर रहे हैं और इसी रूप में विषय को प्रस्तुत कर अनेक चैनल आरएसएस बनाम भाजपा को मुद्दा बनाये हुए हैं और शातिराना तरीके से बहसें करवा रहे हैं। उनकी मूल मंशा तो आरएसएस और भाजपा के बीच में दारार डलवाना है।
चलो यहां तक तो ये भारत के अंदरूनी मामले हैं। किन्तु इस समय भारत के चैनलों पर जिस बात की चर्चा है वो ये कि पाकिस्तानी मीडिया में बिहार का चुनाव छाया हुआ है। नीतीश और लालू की तारीफों के पुल बांधे जा रहे हैं। श्रीमती सोनिया मायनो और राहुल के मुस्कुराते हुए चहरे दिखाए जा रहे हैं और ये टिप्पणियाँ और जुमले बार बार दोहराये जा रहें हैं कि भारत में मुसलमान और हिन्दुओं को लड़ाने वाले और मुसलमानों के लिए भय बने मोदी का यह हश्र तो होना ही था। कुल मिलाकर वे भारत के मुसलमानों की गोलबंदी की अप्रत्यक्ष प्रशंशा कर रहे हैं और ये सन्देश दे रहे हैं कि तुम एक भारत भाव के विरोधी समूहों के साथ गोलबंदी बनाये रखो।
भाजपा की हार के कारण चाहे भारतीय राजनीति के अपने अंतर द्वन्द्वों में रहे हों ,पर दुर्भाग्य पूर्ण बात यह है कि बिहार में जाति और मजहब की गोलबंदी केवल बिहार के लिए नहीं बल्कि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। लालू और नीतीश को ऐसी बातों से क्या लेना उन्हें तो जैसे तैसे बिहार की कुर्सी चाहिए। किन्तु उन्होंने संविधान के विरुद्ध जाकर जाति और मजहब का नाम ले लेकर विघटन वादी नेहरुवादी काँग्रेसियों को अपने साथ मिला लिया है। वह भारत राष्ट्र के लिए शुभ नहीं है। चुनाव में जीतना या हारना कोई बड़ी बात नहीं है पर सभी सच्चे भारतीय राष्ट्र भक्तों का ध्यान इस ओर जाना ही चाहिए कि जाति और मजहब की नीतीश और लालू की राजनीति में अब पाकिस्तान भी एक पक्ष बन गया है। शायद इस खतरे को महसूस कर भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने यह कहा था कि यदि गलती से भी भाजपा बिहार में चुनाव हार गई तो पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे। भारत के लोग खुली आँखों से द देखें और महसूस करें कि ये ख़तरा भारतीय राजनीति का एक हिस्सा बनने जा रहा है।
कैसी थुक्क फजीहत भैया ,
चलो यहां तक तो ये भारत के अंदरूनी मामले हैं। किन्तु इस समय भारत के चैनलों पर जिस बात की चर्चा है वो ये कि पाकिस्तानी मीडिया में बिहार का चुनाव छाया हुआ है। नीतीश और लालू की तारीफों के पुल बांधे जा रहे हैं। श्रीमती सोनिया मायनो और राहुल के मुस्कुराते हुए चहरे दिखाए जा रहे हैं और ये टिप्पणियाँ और जुमले बार बार दोहराये जा रहें हैं कि भारत में मुसलमान और हिन्दुओं को लड़ाने वाले और मुसलमानों के लिए भय बने मोदी का यह हश्र तो होना ही था। कुल मिलाकर वे भारत के मुसलमानों की गोलबंदी की अप्रत्यक्ष प्रशंशा कर रहे हैं और ये सन्देश दे रहे हैं कि तुम एक भारत भाव के विरोधी समूहों के साथ गोलबंदी बनाये रखो।
भाजपा की हार के कारण चाहे भारतीय राजनीति के अपने अंतर द्वन्द्वों में रहे हों ,पर दुर्भाग्य पूर्ण बात यह है कि बिहार में जाति और मजहब की गोलबंदी केवल बिहार के लिए नहीं बल्कि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। लालू और नीतीश को ऐसी बातों से क्या लेना उन्हें तो जैसे तैसे बिहार की कुर्सी चाहिए। किन्तु उन्होंने संविधान के विरुद्ध जाकर जाति और मजहब का नाम ले लेकर विघटन वादी नेहरुवादी काँग्रेसियों को अपने साथ मिला लिया है। वह भारत राष्ट्र के लिए शुभ नहीं है। चुनाव में जीतना या हारना कोई बड़ी बात नहीं है पर सभी सच्चे भारतीय राष्ट्र भक्तों का ध्यान इस ओर जाना ही चाहिए कि जाति और मजहब की नीतीश और लालू की राजनीति में अब पाकिस्तान भी एक पक्ष बन गया है। शायद इस खतरे को महसूस कर भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने यह कहा था कि यदि गलती से भी भाजपा बिहार में चुनाव हार गई तो पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे। भारत के लोग खुली आँखों से द देखें और महसूस करें कि ये ख़तरा भारतीय राजनीति का एक हिस्सा बनने जा रहा है।
कैसी थुक्क फजीहत भैया ,
ऐसा ही अब होता है ,
एक अकेला मोदी भैया ,
तूफ़ान में नैया खेता है।
भारत भाव का भारत देखो ,
आंसू बेबस रोता है ,
जीतो आप बिहार में भैया ,
जश्न पाक में होता है।
जश्न पाक में होता है-डॉ.वागीश मेहता ,एवं
वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा ,एचएएस - I ,सेवा निवृत्त )
जश्न पाक में होता है-डॉ.वागीश मेहता ,एवं
वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा ,एचएएस - I ,सेवा निवृत्त )
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