भाषा का स्वत : स्फूर्त विस्फोट है फेसबुकिया भाषा
डिजिटल भाषा ने कुछ दिन पहले एक शब्द गढ़ा था -साइबोर्ग। संक्षिप्त रूप था यह साइबर्नेटिक ऑर्गेनिज़्म का।साइबर्नेटिक्स से 'साई' लिया गया और ऑर्गेनिज़्म से 'ऑर्ग' हो गया साइबोर्ग। हम और हमारे आसपास आज साइबोर्ग ही साइबोर्ग हैं किसी के दिल को पेसमेकर चलाये है तो कोई इन्सुलिन पेच सजाए है। किसी के घुटने तीन लाख के हैं किसी का जूता जयपुरिया है सवा लाख का।बाहर से लगाए गए अंग नर्वससिस्टम से स्वीकृति प्राप्त कर गए हैं ,प्रतिरक्षा तंत्र को मान्य है और आदमी हो गया साइबोर्ग। आधा आदमी ,आधा मशीन।
दरअसल आज कोई भी कैसा भी धत कर्म करके अपने को सेकुलर कहलवा लेता है चाहे वह जाति और मज़हब का खेल खेलने वाला लबारी लालू हो या हमेशा झूठ बोलने वाला सर्वप्रियकेजर।इन धत कर्म करने वालों ने ,निरंतर झूठ बोलने वाले केजरवालों ने ,भारतधर्मी समाज को इतना खिजा दिया है कि अब वह अपभाषा का प्रयोग करने लगा है सेकुलर को हरामी और कमीना कहने लगा है।यह कोई मान्य स्थिति नहीं है देश को एक सेकुलर टिंडर बॉक्स पे मत खड़ा होने दीजिये।
ऐसे ही एक सज्जन भारतधर्मी समाज के लिए कह लिख रहे थे इनके नीचे से छतरी डालके घुमा देना चाहिए। हम इस भाषा का समर्थन नहीं करते हैं। डर है कहीं भाषा अपने अर्थ न खो देवे इन सेकुलर विभूतियों के चलते।जो गुरुग्रंथ साहब को जलाने सनातन धर्म के गाय जैसे प्रतीकों को चिढ़ाकर ऐसे ही अकड़ जाते हैं जैसे बर्फ खाके चमार। (चमड़ा भीग जाने के बाद अकड़ जाता है ,एक दिन शीत ऋतु जब पाला पड़ रहा हो , जूते बाहर छोड़ के देख लीजिये ऐसे अकड़ जाएंगे जैसे आज बीफ खाके कई श्रीमान अकड़ रहे हैं। इसे अपने लिए एक उपलब्धि मान रहे हैं और सेकुलर की उपाधि से नवाज़े जा रहे हैं।
"यह वैसे ही जैसे हमारे आसपास कई हरामी और कमीने घूम रहे हों -और हम शरमा कर अपभाषा से बचते हुए उन्हें सेकुलर कह दें -चलिए ये तो हुआ भाषा का लोकप्रचलित बहुश्रुत ध्वनित अर्थ।"
हम आइन्दा ऐसा शब्द प्रयोग नहीं करेंगे। मुखचिठ्ठे की भाषा को जनमन की भाषा बनाएंगे। अब हम साइबोर्ग जैसे संकर ,हाईब्रीड शब्दों का विहंगावलोकन करते हैं बस सरसरी सी नज़र डालके आगे बढ़ जाएंगे:
पहले एक शब्दआया प्रेस्टीट्यूटमीडिया यानी प्रेस और प्रॉस्टीट्यूशन का संक्षिप्त रूप मीडिया यानी खबरंडी ,खबरों की मंडी (खबर और मंडी को संयुक्त कर दिया तो हो गया -खबरंडी ).इसका व्यक्तिवाचक अर्थ कृपया न निकालें। अब लो खबरँडुवा शब्द को -भैया जी यह भी व्यक्तिवाचक न समझा जाए। गुणवाचक है यह संकर शब्द भी। जिसकी समाचार देने वाली बीवी शरीर छोड़ गई समाचार एजेंसियां से जो विमुख हो चंद परिवारों का भांड हो गया दल्ला हो गया वह खबरंडुवा हो गया समझो भाईसाहब।
जिसकी सोच बीमार हो गई वह Sickular हो गया। सेकुलर का ध्वनित अर्थ बिलकुल दो टूक है। यह मोदी वर्सस रेस्ट आफ इंडिया मैच की तरह है।यानी एक तरफ मोदी दूसरी तरफ सारे सेकुलर।
आज ये सारे सेकुलर वाइरल हो रहें हैं मुखचिठ्ठे पर ,फेसबुक पर। आज जितने साधन हमारे पास हैं इतने कभी नहीं थे ,रातों रात एक चैन्नई का अनाम बच्चा वाइरल हो जाता है पाश्चात्य संगीत का धाकड़ गवैया मान लिया जाता है। फेसबुक प्रतिभाओं को आगे लाये। जो पुरूस्कार लौटा रहे हैं ,पाकिस्तान सोच को आगे बढ़ा रहे हैं उन्हें बस सेकुलर कहके आगे बढ़ जाएं। इनके सिर से जूता भी शर्माने लगा है। बचके निकलिए इनसे।
जैश्रीकृष्णा !
डिजिटल भाषा ने कुछ दिन पहले एक शब्द गढ़ा था -साइबोर्ग। संक्षिप्त रूप था यह साइबर्नेटिक ऑर्गेनिज़्म का।साइबर्नेटिक्स से 'साई' लिया गया और ऑर्गेनिज़्म से 'ऑर्ग' हो गया साइबोर्ग। हम और हमारे आसपास आज साइबोर्ग ही साइबोर्ग हैं किसी के दिल को पेसमेकर चलाये है तो कोई इन्सुलिन पेच सजाए है। किसी के घुटने तीन लाख के हैं किसी का जूता जयपुरिया है सवा लाख का।बाहर से लगाए गए अंग नर्वससिस्टम से स्वीकृति प्राप्त कर गए हैं ,प्रतिरक्षा तंत्र को मान्य है और आदमी हो गया साइबोर्ग। आधा आदमी ,आधा मशीन।
दरअसल आज कोई भी कैसा भी धत कर्म करके अपने को सेकुलर कहलवा लेता है चाहे वह जाति और मज़हब का खेल खेलने वाला लबारी लालू हो या हमेशा झूठ बोलने वाला सर्वप्रियकेजर।इन धत कर्म करने वालों ने ,निरंतर झूठ बोलने वाले केजरवालों ने ,भारतधर्मी समाज को इतना खिजा दिया है कि अब वह अपभाषा का प्रयोग करने लगा है सेकुलर को हरामी और कमीना कहने लगा है।यह कोई मान्य स्थिति नहीं है देश को एक सेकुलर टिंडर बॉक्स पे मत खड़ा होने दीजिये।
ऐसे ही एक सज्जन भारतधर्मी समाज के लिए कह लिख रहे थे इनके नीचे से छतरी डालके घुमा देना चाहिए। हम इस भाषा का समर्थन नहीं करते हैं। डर है कहीं भाषा अपने अर्थ न खो देवे इन सेकुलर विभूतियों के चलते।जो गुरुग्रंथ साहब को जलाने सनातन धर्म के गाय जैसे प्रतीकों को चिढ़ाकर ऐसे ही अकड़ जाते हैं जैसे बर्फ खाके चमार। (चमड़ा भीग जाने के बाद अकड़ जाता है ,एक दिन शीत ऋतु जब पाला पड़ रहा हो , जूते बाहर छोड़ के देख लीजिये ऐसे अकड़ जाएंगे जैसे आज बीफ खाके कई श्रीमान अकड़ रहे हैं। इसे अपने लिए एक उपलब्धि मान रहे हैं और सेकुलर की उपाधि से नवाज़े जा रहे हैं।
"यह वैसे ही जैसे हमारे आसपास कई हरामी और कमीने घूम रहे हों -और हम शरमा कर अपभाषा से बचते हुए उन्हें सेकुलर कह दें -चलिए ये तो हुआ भाषा का लोकप्रचलित बहुश्रुत ध्वनित अर्थ।"
हम आइन्दा ऐसा शब्द प्रयोग नहीं करेंगे। मुखचिठ्ठे की भाषा को जनमन की भाषा बनाएंगे। अब हम साइबोर्ग जैसे संकर ,हाईब्रीड शब्दों का विहंगावलोकन करते हैं बस सरसरी सी नज़र डालके आगे बढ़ जाएंगे:
पहले एक शब्दआया प्रेस्टीट्यूटमीडिया यानी प्रेस और प्रॉस्टीट्यूशन का संक्षिप्त रूप मीडिया यानी खबरंडी ,खबरों की मंडी (खबर और मंडी को संयुक्त कर दिया तो हो गया -खबरंडी ).इसका व्यक्तिवाचक अर्थ कृपया न निकालें। अब लो खबरँडुवा शब्द को -भैया जी यह भी व्यक्तिवाचक न समझा जाए। गुणवाचक है यह संकर शब्द भी। जिसकी समाचार देने वाली बीवी शरीर छोड़ गई समाचार एजेंसियां से जो विमुख हो चंद परिवारों का भांड हो गया दल्ला हो गया वह खबरंडुवा हो गया समझो भाईसाहब।
जिसकी सोच बीमार हो गई वह Sickular हो गया। सेकुलर का ध्वनित अर्थ बिलकुल दो टूक है। यह मोदी वर्सस रेस्ट आफ इंडिया मैच की तरह है।यानी एक तरफ मोदी दूसरी तरफ सारे सेकुलर।
आज ये सारे सेकुलर वाइरल हो रहें हैं मुखचिठ्ठे पर ,फेसबुक पर। आज जितने साधन हमारे पास हैं इतने कभी नहीं थे ,रातों रात एक चैन्नई का अनाम बच्चा वाइरल हो जाता है पाश्चात्य संगीत का धाकड़ गवैया मान लिया जाता है। फेसबुक प्रतिभाओं को आगे लाये। जो पुरूस्कार लौटा रहे हैं ,पाकिस्तान सोच को आगे बढ़ा रहे हैं उन्हें बस सेकुलर कहके आगे बढ़ जाएं। इनके सिर से जूता भी शर्माने लगा है। बचके निकलिए इनसे।
जैश्रीकृष्णा !
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