सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

दिवाली पर लक्ष्मी पूजन क्यों ?

Virendra Sharma मान्यवर रणवीर सिंह ने बड़ा मौज़ू सवाल उठाया है दिवाली पर लक्ष्मी पूजन क्यों ?दरअसल यदि हम कुछ आध्यात्मिक शब्दों के अर्थ समझ लें तो कई भ्रांतियां शायद दूर हो जाएं। राम का अर्थ है जो रमैया है रमा हुआ है ज़र्रे -ज़र्रे में वह राम है (इसका मतलब यह नहीं है वह रामायण का रामचरित मानस का राम नहीं है ,दशरथ पुत्र राम नहीं है वह भी उसी में शामिल है ,कृष्ण का अर्थ है जो आकर्षित करे ,गोविन्द का अर्थ है जो हमारी इन्द्रियों को आकर्षित करे। मानस में बाबा तुलसी कहते हैं :


सियाराम मय सब जग जानि,

करहुँ प्रणाम जोरि जुग पाणि।

गुरुग्रंथ साहब की वाणी कहती है :

अवल अल्लाह नूर उपाया ,कुदरत के सब बन्दे ,

एक नूर ते सब जग उपजौ कौन भले कौन मंडे।

पूरे गुरु ग्रन्थ साहब में एक ही ज्योत है नानक की (महला एक ,दो ...नौ आदि अलग अलग शरीरों को दर्शाते हैं ज्योत एक ही है जिसका इन शरीरों को एहलाम होता है।वह अलग अलग हैं इसलिए कहीं नानक लिखा है कहीं नानकु। ये महले अलग अलग कालखण्डों को सवा दो सौ साला मिथिहास को दर्शाते हैं। कुरआन शरीफ और कुरआन मज़ीद में मोहम्मद एक शरीर है जिसे एहलाम होता है रिवेलेशन होते हैं अल्लाह के यही किस्सा बाइबिल का है।

गीता में श्री कृष्ण अर्जुन को कहते हैं -अर्जुन जो मुझे जिस रूप में भजता है मैं भी उसे उसी रूप में भजता हूँ प्राप्त होता है। अब चाहे आप गणेश को पूजो या लक्ष्मी को ,देवताओं को पूजने से प्राप्ति जल्दी होती है लेकिन वह टिकाऊ नहीं होती सारा लक्ष्मी पूजन लाभ केंद्रित है ,शुभ लाभ ,वणिक वर्ग के लिए इसका ,लक्ष्मी पूजन का बड़ा महत्व है। इति आपका मान्यवर एक बार फिर से शुक्रिया आपने बड़ा प्रासंगिक सवाल उठाया सकाम कर्म से जुड़ा हुआ -लक्ष्मी पूजन क्यों दिवाली पर।


पावर्स सारी एक की हैं उसे कृष्ण कहो या राम ,राम कहो या रहीम ,अलबत्ता देवताओं को अंतरित की गई हैं।

विज्ञानियों ने अक्सर हिग्स फील्ड की सर्व -व्यापकता की बात की है लेकिन इसकी पुष्टि के लिए स्वयं हिग्स बोसॉन के अस्तित्व पर मोहर लगना ज़रूरी था। स्विट्ज़रलेंड के प्रयोगों से आदिनांक अर्द्ध सत्य ही सामने आया है। आ -दिनांक कोई नहीं जानता -पदार्थ के बुनियादी कणों को पदार्थ होने का बुनियादी गुण द्व्यमान (संहति या मॉस )कौन प्रदान करता है। अनुमान मात्र है यह काम हिग्स बोसॉन का है जो द्रव्य का एक बुनियादी लेकिन अति -अल्पकालीन कण है जिसका अस्तितिव वन टेंथ सेकिंड्स आफ ए सेकटीलियन (टेन टू दी पावर माइनस ट्वैंटीटू )बताया गया है।

जो काम ईश्वर का है वह विज्ञान के भौतिक उपकरणों की पकड़ में कभी नहीं आएगा। ठीक इसीप्रकार सियाराम का द्वैत है।


Hanuman is a Servitor (Search Engine )of Ram only and works and exercises His powers only .

All powers rests in Him and controlled by Him .The universe is the creation of these powers only and is controlled too .

DrArvind Mishra स्वान्त: सुखाय रघुनाथ गाथा के गायक को क्यों कोस रहे हैं?

Ranbir Singh Phogat चूंकि सीता के साथ पक्षपात हुआ. सब आप की तरह पढ़े-लिखे थोड़े ही थे. वशिष्ठ मुनि ने राम को क्या शिक्षा दी थी?

Virendra Sharma Krishna is the source of all incarnations the rest are His plenary powers .Ram is not different form sita and so is krishna with Radha .Gopis are the plenary powers of Radha.All Godesses are the plenary power of that personality of God head i.e Lord of Lords Krishna .He can be present in past ,present and future and beyond that also .He is both within and without .The whole universe (and there are infinite universes )exists in Him and His expression only .Ram-Sita ,Krishan -Radha are just akin to space-time continuum ,and are one and no second .

avinder Jeet Singh कहानी तो कहानी है।

Devi Saini Commercialisation of this festival of light is directly or indirectly symbolises the importance of goddess laxmi instead of Raam... perhaps time is the sole witness of this change of values ... the subjects of King Raam have left the way to the devotee of Laxmi...reasons may be numerous... as far as celebration of diwali festival is concerned modern generation is least concerned with the historical background ...they just believe in epicurian philosophy of eat drink nd be merry where enjoyment is supreme to all other facts and facets of life...

Ranbir Singh Phogat The glorification of Rama and consequently he became the Lord. As Jat I am more concerned with Hanuman ji than any of the characters of Ayodhya's ruling family.

Virendra Sharma विद्या (ईश्वर की परा शक्ति ,चैतन्य शक्ति जिसमें मनुष्य अग्रणी है )और अविद्या (ईश्वर की जड़ शक्ति या त्रिगुणात्मक प्रकृति ,नदी पहाड़ परबत नाले आदि )दोनों उसी एक ईश्वर की शक्तियां हैं। वह ईश्वर जो एक साथ आगे पीछे ,अतीत ,वर्तमान ,भविष्य में एक साथ हो सकता है ,जिसे जान लेने के बाद फिर कुछ जान ना शेष नहीं रहता है। ही इज़ थ्योरी आफ एवरीथिंग। फिर दोहरा दें -राम और सीता दो हैं ही नहीं। एक ईश्वर का नर रूप है दूसरा स्त्रैण बस। दोनों में एकत्व है क्योंकि वह दोनों ही नहीं है। ईश्वर कहते ही उसे हैं जो एक साथ विरोधों गुणों का अधिष्ठान है। डाइकोटॉमी है -सुख और दुःख की ,पाप और पुण्य की उसके बाहर कुछ है ही नहीं। सब यौनियों की वही योनि है। बीज भी वही है फल भी वही है अंकुर भी वही है।

कबीर कहते हैं -डाली फूल जगत की माहीं जहां देखूं वहां तू का तू।इट इज़ यू ओनली यू वेअर एवर आई लुक। 



शनिवार, 29 अक्तूबर 2016

विनय न माने जलधि जब ,गए तीन दिन बीत , बोले राम सकोप तब ,भय बिन होत न प्रीत।

संजीव जी जो लोग यह कह रहें हैं ,पाकिस्तान खुद आतंकवाद से ग्रस्त है उनसे हमारा कहना है बारूद से खेलते खेलते बारूद कभी हाथ में भी फट जाता है। भारत भी यही चाहता है पाक में ज्यादा से ज्यादा अखबार डॉन की सदाशयता वाली जुबान में बोलें ,लेकिन ये सोच भी कोई आत्मभाव से पैदा नहीं हुई है। बेशक भारत एक जाति वादी राष्ट्र नहीं है मानवतावादी राष्ट्र है। हम विश्वबिरादरी की बात करते आये हैं लेकिन पाकिस्तान ने हमें उस सीमा तक पहुंचा दिया है जहां गाली देने के अलावा कोई चारा नहीं रहा है जबकि ये आखिरी विकल्प होना चाहिए था। यदि पाकिस्तान में सहोदर आत्म भाव होता तो मुल्क के टुकड़े ही क्यों होते।

डर इधर भी यही रहता है कहीं हम इस प्रतिक्रिया में फंसकर उनके जैसे न हो जाएं। हमारी मानवता वादी दृष्टि कहीं बिला न जाए। लेकिन परम्परा से भारत शाक्त रहा है शक्ति का उपासक रहा है। तुलसीदास ने यह बात मध्यकाल में कहीं थी -

विनय न माने जलधि जब ,गए तीन दिन बीत ,

बोले राम सकोप  तब ,भय बिन  होत न प्रीत।

एक प्रतिक्रिया :


Edit Platter हिंदी replied to your comment on their video.
October 27 at 12:44am

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

कबीर इस पद में तत्व दर्शन की बात करते हैं। कबीर कहते हैं माया का प्रभाव इस भौतिक जगत तक ही सीमित नहीं है भौतिकेतर जगत भी उसके प्रभाव से बच नहीं सका है

माया महा ठगनी हम जानी।।
तिरगुन फांस लिए कर डोले बोले मधुरे बानी।।
केसव के कमला वे बैठी शिव के भवन भवानी।।
पंडा के मूरत वे बैठीं तीरथ में भई पानी।।
योगी के योगन वे बैठी राजा के घर रानी।।
काहू के हीरा वे बैठी काहू के कौड़ी कानी।।
भगतन की भगतिन वे बैठी ब्रह्मा  के ब्रह्माणी।।
कहे कबीर सुनो भई साधो यह सब अकथ कहानी।।

माया महा ठगनी हम जानी।।
तिरगुन फांस लिए कर डोले बोले मधुरे बानी।।
केसव के कमला वे बैठी शिव के भवन भवानी।।
पंडा के मूरत वे बैठीं तीरथ में भई पानी।।
योगी के योगन वे बैठी राजा के घर रानी।।
काहू के हीरा वे बैठी काहू के कौड़ी कानी।।
भगतन की भगतिन वे बैठी ब्रह्मा  के ब्रह्माणी।।
कहे कबीर सुनो भई साधो यह सब अकथ कहानी।।

कबीर इस पद में तत्व दर्शन की बात करते हैं। कबीर कहते हैं माया का प्रभाव इस भौतिक जगत तक ही सीमित नहीं है भौतिकेतर जगत भी उसके प्रभाव से बच नहीं सका है.जिसे प्रधान या महत तत्व कहा गया है जिससे  दृश्य अदृश्य ,जड़ चेतन ,स्वेदज ,अंडज ,उद्भिज ,जेरज ,जलचर ,थलचर ,नभचर प्राणि प्रकट हुए हैं वह सब माया ही है। 

जितने भी अनंत अवतार हुए हैं सब इस महामाया के साथ ही प्रकट हुए हैं। जिसने जीव को उलझाये रखा है।ब्रह्म को जानने  के लिए माया का अतिक्रमण करना पड़ेगा। अंदर की यात्रा करनी पड़ेगी बाहर तो संसार (माया )है।  

भावार्थ करने की चेष्टा करते हैं। पहले यह जाने माया है क्या ?जो अभी है और अभी नहीं है ,नित बदलती रहती है हमारे शरीर की तरह ,जो म्यूटेबिल है वह माया है। लेकिन इस शरीर में एक और तत्व है वह इम्यूटेबिल  है अपरिवर्तनीय है। नित्य है ,सत्य है। वही "मैं "हूँ रीअल  सेल्फ है.

 लेकिन जो सत्य भी नहीं है असत्य भी नहीं है और यह दोनों भी नहीं है ,वह माया है। जगत को मिथ्या कहा गया है जगत मिथ्या नहीं है ,उसके साथ हमारा लेन देन  है ट्रांजेक्शन है वह मिथ्या कैसे हो सकता है। जगत स्वयं परमात्मा की अभिव्यक्ति है। उससे अलग नहीं है। माया परमात्मा की शक्ति है लेकिन जीव को विमोहित किये रहती है। माया को ही प्रकृति (त्रिगुणात्मक प्रकृति ,सतो-रजो-तमो गुणी सृष्टि )कहा गया है। 

विशुद्ध रूप में न सत का अस्तित्व न रज का न तम का। ऐसा होने पर तीनों तत्वों सतो -रजो -तमो में परस्पर संतुलन होने पर इस सृष्टि का विलय हो जाएगा उसी प्रधान में जिसमें से यह उद्भूत हुई है। वह प्रधान ही माया है जो ईश्वर की  शक्ति है, और हमें  नांच नचाये रहती है। 

जब हम यह जान लेते हैं कि :

ईश्वर ,जीव और माया अनादि हैं। जीव माया के अधीन है। जीव और माया दोनों ईश्वर के अधीन है। माया से हमारे विमोहित होने का कारण हमारा अहंकार है। हम तो कृत हैं परमात्मा की और अपने को कर्ता मानने बूझने लगते है। 

जबकि हम न करता हैं न भोक्ता ,भुक्त हैं। करता प्रकृति के तीनों गुण हैं हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ अपने विषयों में आसक्त हो जाती हैं।यही सकाम कर्म है। जो हो रहा है हम नहीं कर रहे प्रकृति के तीनों गुण ही कर रहे हैं ,हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ ही अपने विषयों में रमण  कर रही हैं , हम आनंद को बाहर ढूंढने लगते हैं।जबकि आनंद तो हम स्वयं है। 

आनंद अंदर की यात्रा है हम इसे बाहर ढूंढ रहे हैं।  यही हमारे आत्म -विमोह का कारण है। जबकि  सृष्टि भी कृत है और हम भी इससे जुदा नहीं हैं अलहदगी हमारी दृष्टि में है।जब हम यह जान लेते है जब सारा द्वैत भाव तिरोहित हो जाता है डाईकोटमी गिर जाती है तब जो शेष रह जाता है वही ब्रह्म है ,रीअल सेल्फ है इसे ही कहा  गया है  -

अहंब्रह्मास्मि 

कृपया इस सेतु को भी देखें :

रविवार, 9 नवंबर 2014


माया मरी न मन मरा , मर -मर गए शरीर , आशा तृष्णा न मरी ,कह गए दास कबीर।


http://veerubhai1947.blogspot.com/2014/11/blog-post_41.html


  


Maya Maha Thugni Hum Jaani

Tirgun Phans Liye Kar Dole Bole Madhuri Bani
Kesav Ke Kamla Ve Baithi Shiv Ki Bhavan Bhavani
Punda Ke Murat Ve Baithi Tirath Mein Bhai Pani
Yogi Ke Yogin Ve Baithi Raja Ke Ghar Rani
Kahu Ke Hira Ve Baithi Kahu Ke Kodi Kani
Bhaktan Ke Bhaktin Veh Baithi Brahma Ke Brahmani
Kahe Kabir Suno Bhai Sadho Yeh Sab Akath Kahani

Translation
I Have Come to Know the Illusory Power to be a Great Thug

Her Hands Sway Holding a Web-like Trap
She Speaks in a Sweet Voice

For Kesava, the Sustainer, She is Seated as the Embodiment of Abundance
For Shiva, the God of Dissolution, She is the Empress of the Worlds
For the Priest She is Seated as the Idol of Worship
And in Places of Pilgrimage She Manifests as the Holy Water

For Yogis She is Seated as the Spiritual Partner
In the King's Palace She is the Queen
For Some She is Seated as a Priceless Diamond
For Some She is a Mere Penny

For Devotees She is Seated in the Object of Devotion
For Brahma She is His Consort
Says Kabir Listen Oh Practicing Aspirant
All this is an Untold Story

Explanation
Maya has been traditionally described as illusion. Often the physical world itself is referred to as being not real or an illusion. However, in my experience, the illusion is really in our perception of the physical reality where we experience the outside world as different from ourselves. We believe that happiness is a function of this outside world, thereby making us put extraordinary effort in changing this external reality. This dynamic experience stimulated by the external world is seductive and change is its inherent property. Even though this changing transient reality is unable to give us lasting joy or happiness, we continue to fervently believe in its capability to give us exactly that. This is Maya or illusion.

Kabir succinctly describes this fact by illustrating how the life's focus, for everybody, is on an external reality. And this continuing externally-directed focus is illusory because of the transient nature of the relationship between the subject and the object. Whether it is a rich man looking for a diamond, a beggar wanting a penny, a devotee seeking the object of her worship, Maalok translating a Kabir song that will be well received by the readers or Rajender monitoring readers' comments and page views on the site - they all are rooted in Maya. Here is an exercise that I recommend (I fail in it more often than not) - Try to find a source of joy that is independent of anything (external) or any person. Doing that may require some effort but it should be possible. Now try to observe (and not act on) your tendency to teach/tell/discuss/write this with others - not that there is anything "wrong" in being motivated by the external world; however this exercise will help you clearly see whether the source of joy is indeed coming from within you. Perhaps this may embark you too on a journey that Kabir describes as the untold story.



Maya, maha thagini hum jaani... - YouTube

https://www.youtube.com/watch?v=YJt2EdYufno

Feb 18, 2010 - Uploaded by nemobose71
Kahat Kabir suno ho santo, ... Mayamaha thagini hum jani. ... maha mayi ta ki hai chayaa ( maya ...
असत्य भी नहीं है और यह दोनों भी नहीं है ,वह माया है। जगत को मिथ्या कहा गया है जगत मिथ्या नहीं है ,उसके साथ हमारा लेन देन  है ट्रांजेक्शन है वह मिथ्या कैसे हो सकता है। जगत स्वयं परमात्मा की अभिव्यक्ति है। उससे अलग नहीं है। माया परमात्मा की शक्ति है लेकिन जीव को विमोहित किये रहती है। माया को ही प्रकृति (त्रिगुणात्मक प्रकृति ,सतो-रजो-तमो गुणी सृष्टि )कहा गया है। 

ईश्वर ,जीव और माया अनादि हैं। जीव माया के अधीन है। जीव और माया दोनों ईश्वर के अधीन है। माया से हमारे विमोहित होने का कारण हमारा अहंकार है। हम तो कृत हैं परमात्मा की और अपने को कर्ता मानने बूझने लगते है। 

हम न करता हैं न भोक्ता ,भुक्त हैं। करता प्रकृति के तीनों गुण हैं हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ अपने विषयों में आसक्त हो जाती हैं। हम आनंद को बाहर ढूंढने लगते हैं।जबकि आनंद तो हम स्वयं है। 

आनंद अंदर की यात्रा है हम इसे बाहर ढूंढ रहे हैं।  यही हमारे आत्म -विमोह का कारण है। जबकि  सृष्टि भी कृत है और हम भी इससे जुदा नहीं हैं अलहदगी हमारी दृष्टि में है। 

कृपया इस सेतु को भी देखें :

रविवार, 9 नवंबर 2014


माया मरी न मन मरा , मर -मर गए शरीर , आशा तृष्णा न मरी ,कह गए दास कबीर।


http://veerubhai1947.blogspot.com/2014/11/blog-post_41.html


  


Maya Maha Thugni Hum Jaani

Tirgun Phans Liye Kar Dole Bole Madhuri Bani
Kesav Ke Kamla Ve Baithi Shiv Ki Bhavan Bhavani
Punda Ke Murat Ve Baithi Tirath Mein Bhai Pani
Yogi Ke Yogin Ve Baithi Raja Ke Ghar Rani
Kahu Ke Hira Ve Baithi Kahu Ke Kodi Kani
Bhaktan Ke Bhaktin Veh Baithi Brahma Ke Brahmani
Kahe Kabir Suno Bhai Sadho Yeh Sab Akath Kahani

Translation
I Have Come to Know the Illusory Power to be a Great Thug

Her Hands Sway Holding a Web-like Trap
She Speaks in a Sweet Voice

For Kesava, the Sustainer, She is Seated as the Embodiment of Abundance
For Shiva, the God of Dissolution, She is the Empress of the Worlds
For the Priest She is Seated as the Idol of Worship
And in Places of Pilgrimage She Manifests as the Holy Water

For Yogis She is Seated as the Spiritual Partner
In the King's Palace She is the Queen
For Some She is Seated as a Priceless Diamond
For Some She is a Mere Penny

For Devotees She is Seated in the Object of Devotion
For Brahma She is His Consort
Says Kabir Listen Oh Practicing Aspirant
All this is an Untold Story

Explanation
Maya has been traditionally described as illusion. Often the physical world itself is referred to as being not real or an illusion. However, in my experience, the illusion is really in our perception of the physical reality where we experience the outside world as different from ourselves. We believe that happiness is a function of this outside world, thereby making us put extraordinary effort in changing this external reality. This dynamic experience stimulated by the external world is seductive and change is its inherent property. Even though this changing transient reality is unable to give us lasting joy or happiness, we continue to fervently believe in its capability to give us exactly that. This is Maya or illusion.

Kabir succinctly describes this fact by illustrating how the life's focus, for everybody, is on an external reality. And this continuing externally-directed focus is illusory because of the transient nature of the relationship between the subject and the object. Whether it is a rich man looking for a diamond, a beggar wanting a penny, a devotee seeking the object of her worship, Maalok translating a Kabir song that will be well received by the readers or Rajender monitoring readers' comments and page views on the site - they all are rooted in Maya. Here is an exercise that I recommend (I fail in it more often than not) - Try to find a source of joy that is independent of anything (external) or any person. Doing that may require some effort but it should be possible. Now try to observe (and not act on) your tendency to teach/tell/discuss/write this with others - not that there is anything "wrong" in being motivated by the external world; however this exercise will help you clearly see whether the source of joy is indeed coming from within you. Perhaps this may embark you too on a journey that Kabir describes as the untold story.



Maya, maha thagini hum jaani... - YouTube

https://www.youtube.com/watch?v=YJt2EdYufno

Feb 18, 2010 - Uploaded by nemobose71
Kahat Kabir suno ho santo, ... Mayamaha thagini hum jani. ... maha mayi ta ki hai chayaa ( maya ...

माया महा ठगनी हम जानी।।

माया महा ठगनी हम जानी।।
तिरगुन फांस लिए कर डोले बोले मधुरे बानी।।
केसव के कमला वे बैठी शिव के भवन भवानी।।
पंडा के मूरत वे बैठीं तीरथ में भई पानी।।
योगी के योगन वे बैठी राजा के घर रानी।।
काहू के हीरा वे बैठी काहू के कौड़ी कानी।।
भगतन की भगतिन वे बैठी ब्रह्मा  के ब्रह्माणी।।
कहे कबीर सुनो भई साधो यह सब अकथ कहानी।।

भावार्थ करने की चेष्टा करते हैं। पहले यह जाने माया है क्या ?जो अभी है और अभी नहीं है ,नित बदलती रहती है हमारे शरीर की तरह ,जो म्यूटेबिल है वह माया है। जो सत्य भी नहीं है असत्य भी नहीं है और यह दोनों भी नहीं है ,वह माया है। जगत को मिथ्या कहा गया है जगत मिथ्या नहीं है ,उसके साथ हमारा लेन देन  है ट्रांजेक्शन है वह मिथ्या कैसे हो सकता है। जगत स्वयं परमात्मा की अभिव्यक्ति है। उससे अलग नहीं है। माया परमात्मा की शक्ति है लेकिन जीव को विमोहित किये रहती है। माया को ही प्रकृति (त्रिगुणात्मक प्रकृति ,सतो-रजो-तमो गुणी सृष्टि )कहा गया है। 

ईश्वर ,जीव और माया अनादि हैं। जीव माया के अधीन है। जीव और माया दोनों ईश्वर के अधीन है। माया से हमारे विमोहित होने का कारण हमारा अहंकार है। हम तो कृत हैं परमात्मा की और अपने को कर्ता मानने बूझने लगते है। 

हम न करता हैं न भोक्ता ,भुक्त हैं। करता प्रकृति के तीनों गुण हैं हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ अपने विषयों में आसक्त हो जाती हैं। हम आनंद को बाहर ढूंढने लगते हैं।जबकि आनंद तो हम स्वयं है। 

आनंद अंदर की यात्रा है हम इसे बाहर ढूंढ रहे हैं।  यही हमारे आत्म -विमोह का कारण है। जबकि  सृष्टि भी कृत है और हम भी इससे जुदा नहीं हैं अलहदगी हमारी दृष्टि में है। 

कृपया इस सेतु को भी देखें :

रविवार, 9 नवंबर 2014


माया मरी न मन मरा , मर -मर गए शरीर , आशा तृष्णा न मरी ,कह गए दास कबीर।


http://veerubhai1947.blogspot.com/2014/11/blog-post_41.html


  


Maya Maha Thugni Hum Jaani

Tirgun Phans Liye Kar Dole Bole Madhuri Bani
Kesav Ke Kamla Ve Baithi Shiv Ki Bhavan Bhavani
Punda Ke Murat Ve Baithi Tirath Mein Bhai Pani
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Kahu Ke Hira Ve Baithi Kahu Ke Kodi Kani
Bhaktan Ke Bhaktin Veh Baithi Brahma Ke Brahmani
Kahe Kabir Suno Bhai Sadho Yeh Sab Akath Kahani

Translation
I Have Come to Know the Illusory Power to be a Great Thug

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She Speaks in a Sweet Voice

For Kesava, the Sustainer, She is Seated as the Embodiment of Abundance
For Shiva, the God of Dissolution, She is the Empress of the Worlds
For the Priest She is Seated as the Idol of Worship
And in Places of Pilgrimage She Manifests as the Holy Water

For Yogis She is Seated as the Spiritual Partner
In the King's Palace She is the Queen
For Some She is Seated as a Priceless Diamond
For Some She is a Mere Penny

For Devotees She is Seated in the Object of Devotion
For Brahma She is His Consort
Says Kabir Listen Oh Practicing Aspirant
All this is an Untold Story

Explanation
Maya has been traditionally described as illusion. Often the physical world itself is referred to as being not real or an illusion. However, in my experience, the illusion is really in our perception of the physical reality where we experience the outside world as different from ourselves. We believe that happiness is a function of this outside world, thereby making us put extraordinary effort in changing this external reality. This dynamic experience stimulated by the external world is seductive and change is its inherent property. Even though this changing transient reality is unable to give us lasting joy or happiness, we continue to fervently believe in its capability to give us exactly that. This is Maya or illusion.

Kabir succinctly describes this fact by illustrating how the life's focus, for everybody, is on an external reality. And this continuing externally-directed focus is illusory because of the transient nature of the relationship between the subject and the object. Whether it is a rich man looking for a diamond, a beggar wanting a penny, a devotee seeking the object of her worship, Maalok translating a Kabir song that will be well received by the readers or Rajender monitoring readers' comments and page views on the site - they all are rooted in Maya. Here is an exercise that I recommend (I fail in it more often than not) - Try to find a source of joy that is independent of anything (external) or any person. Doing that may require some effort but it should be possible. Now try to observe (and not act on) your tendency to teach/tell/discuss/write this with others - not that there is anything "wrong" in being motivated by the external world; however this exercise will help you clearly see whether the source of joy is indeed coming from within you. Perhaps this may embark you too on a journey that Kabir describes as the untold story.



Maya, maha thagini hum jaani... - YouTube

https://www.youtube.com/watch?v=YJt2EdYufno

Feb 18, 2010 - Uploaded by nemobose71
Kahat Kabir suno ho santo, ... Mayamaha thagini hum jani. ... maha mayi ta ki hai chayaa ( maya ...


सोमवार, 24 अक्तूबर 2016

विचार प्रवाह :जब नाटक नाटककार से बड़ा हो जाए

विचार प्रवाह :जब नाटक नाटककार से बड़ा हो जाए

नाटक तभी तक नाटक रहता है जब उसकी पटकथा नाटककार द्वारा सृजित कथा के अनुरूप बढ़ती रहे। लेकिन जब श्रोता भी उसमें शामिल हो जाए तब नाटक उलझ जाता है। मुलायम के कुनबे द्वारा खेले गए नाटक के साथ यही हुआ है।नाटक नाटक-कार से बड़ा हो गया है।


एक तरफ मुलायम अमर  सिंह को छोड़ने के लिए राजी नहीं हैं जिन्होनें मुलायम को जेल जाने से बचाया था। दूसरी तरफ शिवपाल यादव उस मार को नहीं भुला पा रहे हैं जो उन्होंने अखिलेश के लड़कों के हाथों खाई है। इसीलिए उन्होंने रामगोपाल यादव को छः साल के लिए पार्टी से निकाल दिया है।मामला पूरी तरह उलझ गया है। मुलायम सिंह यदुवंश की  कलह के अब दर्शक तो बन सकते हैं सूत्रधार नहीं।   

रविवार, 23 अक्तूबर 2016

"जब गुन को गाहक मिले, तब गुन लाख बिकाय । जब गुन को गाहक नहीं, तब कौडी बदले जाय ॥"

गुण  गाहक  को  बेचिये औगुण गुण बन जाए का, गुण का ग्राहक जो मिले तो गुण लाख बिकाए।


"जब गुन को गाहक मिले, तब गुन लाख बिकाय ।
जब गुन को गाहक नहीं, तब कौडी बदले जाय ॥"


“Jab gun ko gaahak mile, Tab gun laakh bikaay |
Jab gun ko gaahak nahi, Tab kaudi badle jaay ||”
Meaning in English:
Quality, goodness, excellence – all the virtues
are judged to be invaluable and priceless
and are treated accordingly,
only when there is a connoisseur,
the one who knows and values them.
But, when there is no cognoscente,
no one to recognize and value them,
the same virtues are judged to be worthless,
just a few cowries’ worth,
and are treated accordingly.
https://www.youtube.com/watch?v=0tSQ1zQx3xs
Gun Ka Gahak Nanakaa Virla Ko-ee Hoay - Bhai Harjot Singh Ji Zakhmi