बच्चों के आत्म -सम्मान को ठेस पहुंचाती है ये टाइगर मम्मियां .
जो माँ बाप अपने बच्चों पर ज़रुरत से ज्यादा दवाब बनाए रहतें हैं कठोर अनुशाशन के तले उन्हें रोंदें रहतें हैं वह न सिर्फ उनके आत्म सम्मान को ठेस पहुंचाते हैं उन्हें गहरे अवसाद में भी ले आतें हैं .टाइगर मोम्स इस आत्माभिमान को रोंदने में बड़ा किरदार निभा रहीं हैं इसी मुगालतें में की कठोर अनुशाशन सुरक्षित भविष्य की गारंटी है .होता ठीक इसका उलटा है बच्चों में अवसाद का परिमाण और स्तर बढ़ जाता है .
एक ताज़ा तरीन अध्ययन का यही सन्देश है .
चीनी लेखिका Amy Chua अपनी मशहूर किताब 'Battle Hymn of the Tiger Mother 'में यह प्रस्तावना रखती हैं कि भले एशियाई बच्चों को ज्यादा दवाब के साए में पल्लवित करना उन्हें अकादमिक सफलता दिलवा देता हो मन बहलाव ,होबी में भी ये बच्चे अच्छा करतें हों .
लेकिन मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के ताज़ा अध्ययन यही संकेत देते हैं कि ये बच्चे अपने माँ बाप से भावात्मक रूप से निराश ही नहीं रहते बे -चैन और अवसाद ग्रस्त भी रहते हैं .औरों केअपने हमजोलियों के बनिस्पत कहीं ज्यादा .
आपको बतलादें प्रोफ़ेसर Desiree Quin मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी से ताल्लुक रखतें है .आपने न्यूयोर्क के एलीट हाई स्कूल के चीनी -अमरीकी बच्चों का अध्ययन किया है .आपकी यह टिपण्णी गौर तलब है :कामयाबी और ख़ुशी में परसपर वैर भाव हो यह ज़रूरी तो नहीं है .लेकिन पश्चिम के बच्चे चीनी बच्चों से ज्यादा खुश हाल नहीं हैं.
लेकिन रिसर्च से यह साबित हुआ है कि जब माँ -बाप ज़रुरत से ज्यादा दवाब बच्चों पर अपनी अपेक्षाओं का बनातें हैं तब बच्चों से ख़ुशी जैसे छिन ही जाती है .
सन्दर्भ -सामिग्री :-'Tiger moms causing low self -esteem in children '/TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,JANUARY 20,2012.
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12 टिप्पणियां:
अच्छा करने की ललक अन्दर से जागे, न कि उन पर थोपी जाये।
बच्चों को प्रोत्साहित करने से आत्म सम्मान बढ़ता है
बहुत अच्छी प्रस्तुति,बेहतरीन पोस्ट....
new post...वाह रे मंहगाई...
सही कहा ।
पेरेंटल प्रेशर अक्सर बच्चों के लिए अभिशाप बन जाता है ।
बच्चों के विकास के लिए सीमित स्वंत्रता आवश्यक है ।
आप का कहना दुरुस्त है ...वीरू भाई जी !
पर यहाँ सब को ए-ग्रेड ही मांगता ...???
आभार!
राम राम जी इन टाइगर या कहो शेरनी से तो बच्चे तो क्या उन बच्चों के बाप भी सहम जाते है।
बढ़िया प्रस्तुति...
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 23-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
प्रोत्साहन देना और ज़बरदस्ती करना दोनों अलग अलग हैं......
ak vaicharik urja ka sanchar karati post ....badhai Veru ji.
बच्चो के मन की पीड़ा का अच्छा विश्लेषण
शत-प्रतिशत सही है।
very true.Too much discipline , too much care , too much neglect , spoils child. ati sarvatra varjayeti.
एकदम सहमत. जब तक दिल से कुछ करने की इच्छा नहीं जागती अच्छे परिणाम की अपेक्षा मुश्किल ही लगती है.
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