पाल ले एक रोग नादाँ इस सफ़र के वास्ते .,सिर्फ सेहत के सहारे ज़िन्दगी कटती नहीं .
एक सन्दर्भ है इस शैर का .गत दिनों एक नाम चीन अंग्रेजी अखबार ने यह बहस छेड़ दी कि राष्ट्रपति ओबामा ने न सिर्फ धूम्रपान को अलबिदा कह दिया .बाद इसके वह तमाम भौतिक परीक्षणों (फिज़िकल्स )में भी खरे उतरें हैं .उनका कोलेस्ट्रोल स्तर ,खून में घुली चर्बी भी मान्य स्तर पर बनी हुई है .अमरीकियों को उनकी यह अदा बेहद पसंद आई है .वहां राजनीतिकों का स्वास्थ्य एक प्राथमिकता है चयन का अधिकार है जिसकी सेहत ठीक उसका काम भी ठीक वोटर की वहां यही समझ बन रही है .
जबकी हमारे यहाँ सेहत को लेकर राजनीति में इस प्रकार की जागरूकता नहीं है .उन सांसदों की जो यूनियन केबनैट में जो पद भार संभाले हुए हैं औसत उम्र ६४ वर्ष है जबकी महत्वपूर्ण विभागों को जो सांसद संभाले हैं उनकी आयु और भी ज्यादा ७० का औसत आंकडा लिए है .७० वर्ष है .
सवाल यह है कि क्या राष्ट्रपति ओबामा सिर्फ कोलेस्ट्रोल के अच्छे स्तर की वजह से ही चुने गए हैं या एक खासकिस्म की बौद्धिक प्रखरता के चलते ऐसा हुआ है नके ?.उनकी वाक्पटुता काबलियत ही उनके चयन का आधार बनियो है जो खुलीलम्बी चली बहस में जगजाहिर हुई थी .
अष्टावक्र आठ जगह से टेढ़े थे .फिर भी उनकी बौद्धिक प्रखरता का कोई सानी नहीं था .हमारा मानना है तन और मन काया और बुद्धि का स्वस्थ संयोग दोनों का अपना महत्व है .यदि शरीर बीमार है तो मन को असर ग्रस्त करेगा ही .व्यक्ति एकाग्र नहीं हो पायेगा .देर तक काम ही नहीं कर पायेगा .मन को एकाग्र करने का अभ्यास भी तो चाहिए केवल निरोगी काया से भी कुछ नहीं होगा .इसलिए सवाल उतना सीधा नहीं है जितना की दिखता है .केवल शरीर का मुआयना ही होता है चंद मशीनों और कायिक परीक्षणों से मानसिक स्तर का जायजा सरकारी या निजी सेवा में भर्ती से पूर्व नहीं लिया जा सकता .बौद्धिक प्रखरता और बुद्धि तत्व ,बौद्धिकता का पैमाना और परिभाषा ,ही अभी अपरिभाषित है .काम बतलाता है तार्किक शक्ति ,बतलाती है व्यक्ति की प्रखरता और जागरूकता को सेवा के हर क्षेत्र में .राजनीति इसका अपवाद कैसे हो सकती है .स्वस्थ मन और स्वस्थ तन का मणि कांचन योग हर जगह ,सेवा के हर क्षेत्र में ज़रूरी है .ऐसा हमारा मानना है .
युवा तो अपने राहुल बाबा भी हैं लेकिन क्या कभी उनमे कैसी भी ,किसी भी किस्म क़ी बौद्धिक प्रखरता कभी किसी को भी दिखी चंद चिरकुटों को छोड़ कर .युवा होना राजनीतिक कुनबे का वारिश होना चयन का आधार नहीं हो सकता हाँ बौद्धिक प्रखरता भी है तब और बात है .मंद बुद्धि के लिए राजनीति में कोई स्थान नहीं है .
ram ram bhai
लाईट ड्रिंकर्स के लिए भी बढ़ जाता है ब्रेस्ट कैंसर के खतरे का वजन .
लाईट ड्रिंकर्स के लिए भी बढ़ जाता है ब्रेस्ट कैंसर के खतरे का वजन .
एक लाख से भी ज्यादा अमरीकी नर्सों पर संपन्न एक तीस साला अध्ययन से यह पता चला है की लाईट ड्रिंकर्स के लिए भी टी -टोटल -अर्स (teetotalers) के बरक्स ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम थोड़ा सा बढ़ ज़रूर जाता है .अब तक संपन्न अध्ययनों में ब्रेस्ट कैंसर और लाईट ड्रिंकिंग के बीच किसी रिश्ते की पुष्टि नहीं हुई थी .पहली मर्तबा लाईट ड्रिंक्स की अशोशियेशन इस दीर्घावधि तक चले अध्ययन में मिली है .हालाकि इस अध्ययन से यह नहीं कहा जा सकता कि शराब पीने से कैंसर होता है .या की ड्रिंकिंग ही कैंसर की वजह बनती है .ब्रेस्ट कैंसर के माहिरों के अनुसार दूसरे घटक भी प्रभाव छोड़ सकतें हैं मसलन हो सकता है लाईट ड्रिंकिंग करने वाली महिलाएं निष्क्रिय जीवन शैली बनाए रखतीं हो या ड्रिंक्स के बाद अन -हेल्दी फूड्स लेने का रुझान बढ़ जाता हो .
अलबत्ता हफ्ते में तीन ड्रिंक्स लेने वाली महिलाओं को लाईट ड्रिंकर्स की केटेगरी में रखा जाएगा .फिर चाहे वे हफ्ते में तीन ड्रिंक्स के रूप में बीयर लेतीं हो या वाइन और व्हिस्कीमें से कोई एक . .डॉ सुसान लोवे ऐसा ही मानतीं हैं .लाईट ड्रिंकर्स के लिए ब्रेस्ट कैंसर के खतरे का वजह बढ़ता ही बढ़ता है .
ram ram bhai
कब जानलेवा जहर बन जाती है शराब ?
कब जानलेवा जहर बन जाती है शराब ?
जब आदमी कम समय में बहुत ज्यादा शराब पी जाता है तब शराब जहर बन जाती है .एल्कोहल पोइजनिंग इसी को कह सकतें हैं .बेशक हरेक मामले में यह जान लेवा साबित न भी हो लेकिन कम समय में ली गई ज्यादा शराब व्यक्ति विशेष के लिए कभी ब्रेन डेमेज की तो कभी यकृत के विनष्ट होने की ,बे -साख्ता मिचली लगने या फिर नौज़िया ,नीम होशी क्या बे -होशी की भी वजह बन सकती है .सब की शराब को बर्दाश्त करने झेलने की क्षमता अलग अलग होती है .कितनी मात्रा कब किसके लिए ज़हर बन जाए इसका कोई निश्चय नहीं .
अलबत्ता एल्कोहल विषाक्तता के खतरे औरतों के लिए मर्दों से ज्यादा होतें हैं .इसकी वजह उनके शरीर में मर्दों के बरक्स अपेक्षाकृत कम फ्ल्युइड मौजूद रहना है .अभी हाल फिलाल मशहूर गायिका एमी वाइनहाउस की मौत एक बड़ी खबर बनी थी .जिस समय उनकी मौत हुई वह गाडी चला रही थीं और शराब की मात्रा उस वक्त उनके शरीर में स्वीकृत न्यूनतम मात्रा से पांच गुना ज्यादा पाई गई थी .ब्लड एल्कोहल का स्तर ०.४१६ मिला था जबकि ब्रिटेन और अमरीका दोनों ही मुल्कों में लीगल लिमिट फॉर ड्राइविंग मात्र ०.०८ तय की गई है .
अलबत्ता आदमी की उम्र उसका तौल ,शराब एवं अन्य नशीली चीज़ों के सेवन का पूर्ववृत्तांत तथा अनुभव ,पी गई शराब की क्वालिटी (किस्म )आदि अनेक घटक मिलकर तय करतें हैं शराब जन्य विषाक्तता ,एल्कोहल पोइजनिंग .बहुत आसान है शराब की ज्यादा मात्रा का शरीर में उडेलना लेकिन इसकी निकासी में वक्त लगता है और ब्लड एल्कोहल लेविल के बढ़ने की एक बड़ी वजह यही अंतर बनता है .तेज़ी से पी तो सकतें हैं आप शराब लेकिन इसे शरीर से उतनी जल्दी आप खारिज नहीं कर सकतें हैं .यही कहना है सेंटर फॉर एल्कोहल स्टडीज़ के निदेशक डॉ .रोबेर्ट पंदिना साहब का .आप रुत्गेर्स विश्वविद्यालय एल्कोहल अध्ययन केंद्र से सम्बद्ध हैं .
एक ड्रिंक के अपचयन में मेताबोलाइज़ेशन में हमारा शरीर पूरा एक घंटा माँगता है .अलबत्ता एक ड्रिंक कहते किसे हैं यह एल्कोहल की प्रकृति से तय होता है .
एक ड्रिंक का मतलब जहां १२ ओंज बीयर है वहीँ वाइन के लिए यही मात्रा ५ ओंज तथा ८० प्रूफ लिकर के लिए यही मात्रा मात्र १.५ ओंज रहेगी .तो ज़नाब एक ग्लास वाइन या फिर ६० मिलीलीटर व्हिस्की या एक मग बीयर सभी यूं तो एक ड्रिंक ही कहायेंगी लेकिन सबके शरीर के लिए इनका अर्थ यकसां नहीं होता है .
हार्ड लिकर के अपचयन में ज्यादा वक्त लगता है वाइन और बीयर के बरक्स यदि तीनों की मात्रा बराबर बराबर ही ली जाएँ .वाइन- हाउस के घर से उस रात वोदका की तीनखाली बोतलें मिली थीं .क्या उसने तीनों पीली थीं ?
राम जाने .मेटाबोलिज्म (अपचयन )की रफ़्तार एक जैसी ही रहती हैं चाहे आप ज्यादा शराब लें या कम ज्यादा शराब कम समय में लेने का मतलब यह नहीं है उसकी मेटाबोलिज्म भी जल्दी होगी .मेटाबोलिज्म की दर तो नियत ही रहती है .
पंदिना कहतें हैं ११० पोंड तौल की औरत यदि एक घंटे में ही १२-१३ ओंज ८० प्रूफ लिकर गड़प जायेगी तभी उसके ब्लड एल्कोहल का स्तर ०.४० आयेगा .
भनक मिल जाती है इस स्तर के पहुँचने से बहुत पहले ही एल्कोहल पोइजनिंग की :
ब्लड एल्कोहल लेविल ०.२ के नीचे रहने पर भी डॉक्टरी सहायता की ज़रुरत पड़ सकती है .एल्कोहल स्तर ०.२५ पहुँचने से पहले ही वाइटल फंक्शन शरीर के शट डाउन होने लगतें हैं .मुख्य अंगों का काम असर ग्रस्त होने लगता है .ब्लड एल्कोहल का स्तर ०.३ पहुँचने पर व्यक्ति की मौत भी हो सकती है .और ऐसा पूर्व में किये गए एल्कोहल यूज़ या ड्रग से लीवर डेमेज के बिना भी हो सकता है .ज़रूरी नहीं है इनका पूर्व वृत्तांत .
अलबत्ता उस व्यक्ति के लिए एल्कोहल पोइजनिंग का ख़तरा बढ़ ज़रूर जाएगा जिसका लीवर पहले से ही इन कुटेबों से देमेज्द रहा आया है .
सन्देश साफ़ है यदि कोई आपकी जानकारी मेंआपका कोई अपना कम समय में बहुत ज्यादा पी गया है तो यह वक्त जाया करने का वक्त नहीं है उसे अस्पताल पहुंचाइये .ऑक्सीजन लगवाइए .जान बच सकती है अभी भी उसकी .
ram ram bhai
वाइन गटक रहें हैं ब्रितानी मदरसों में पढने वाले बच्चे .
वाइन गटक रहें हैं ब्रितानी मदरसों में पढने वाले बच्चे .
ब्रितानी सरकार की एक हालिया रिपोर्ट में बतलाया गया है बहुत बड़ी तादाद में स्कूल जाने वाले बच्चे वाइन बेहिसाब गटक रहें हैं ;हर हफ्ते औसतन वाइन के १९ ग्लास गले से नीचे उतार रहें हैं ये बच्चे .तिस पर तुर्रा यह कि ये पूरी नींद भी नहीं ले रहें हैं .और इसीलिए स्कूल के टाइम में कक्षा में उनींदे रहतें हैं ये नौनिहाल .
ब्रिटेन की ही स्कूल हेल्थ एज्युकेशन इकाई ने तीन अलग अलग अध्ययनों के अनंतर यह निष्कर्ष निकालें हैं .पहले अध्ययन से इल्म हुआ १२ साला स्कूल छात्र हफ्ते भर में वाइन के १९ ग्लासों से अपना गला तर करतें हैं .पानी कम वाइन ज्यादा .इस आयु वर्ग के ४%बच्चों ने गत सप्ताह हुए सर्वे में बतलाया बीते हफ्ते उन्होंने २८ या और भी ज्यादा यूनिट्स वाइन गटकी .पुरुषों के लिए तीन से लेकर चार यूनिट्स तथा महिलाओं के लिए रोजाना दो से तीन यूनिट्स की गाइड लाइंस (अनुदेशों )का अतिक्रमण करती है बच्चों द्वारा सप्ताह भर में ही पी जा रही वाइन की यह मात्रा .
कुछ बच्चों को इसी लत की वजह से पर्याप्त नींद भी मयस्सर नहीं हो रही है .
सेलेब्रिटी कल्चर जो करादे सो कम .
सेलेब्रिटी कल्चर जो करादे सो कम .
सेल्फ इमेज ,गुड लुक्स ,देह यष्टि का आकर्षण और मन्त्रमुग्धता अब प्राइमरी स्कूल की उम्र में ही रहने लगी है .एक बेचैनी इनमे "कैसी दिखती हूँ मैं "यानी अपनी छवि को लेकर साफ़ मुखरित हो रही है .कुछ भी करने को तैयार हैं इसके लिए ये लडकियां .१० -११ साल के दरमियान ही ये तौल के फंदे में फंसी तौल घटाने की जुगत में बेचैन रहतीं हैं .
स्कूल हेल्थ एज्युकेशन यूनिट ने संपन्न किया है यह अध्ययन .जिन ८३,००० लड़कियों से इस अध्ययन के दौरान बातचीत की गई उनमे से एक तिहाई दस साला लड़कियों ने यह साफ़ साफ़ बतलाया वह तौल कम करने के लिए नाश्ता ही नहीं करतीं हैं .बातचीत से पहले दिन २४%लड़कियों ने दोपहर का भोजन भी नहीं लिया था .
जैसे जैसे लड़कियों की उम्र आगे खिसकती जाती है यह प्रतिशत भी उम्र के साथ साथ पींग बढाता है .
१४-१५ साला लड़कियों में से दो तिहाई वजन कम करना चाहतीं हैं .एक ख़ास लुक के लिए कुछ भी करेगा .कई किस्म के पापड बेलेगा .यही फलसफा है इनका इरादा भी है .कक्षा छ :की तमाम लड़कियों और लड़कों में से भी ४०%ने बतलाया -हम सप्ताह के सातों दिन प्रोटीन का सेवन ही नहीं करतें हैं .लेकिन इनमे से एक चौथाई crisps ,sweets और chocolate बराबर खातें हैं .
ब्रितानी न्यूट्रीशन फाउनदेशन की साइंसदान Dr Laura Wyness कहतीं हैं यह सब जनप्रिय मीडिया का करा धरा है .पोप्युलर मीडिया बेतरह युवा भीड़ की बॉडी इमेज को प्रभावित कर रहा है .इसी के चलते एक जद्दोजहद एक दवाब आदर्श कद काठी ,छवि आइडियल बॉडी शेप को लेकर बन रहा है .
इसी फेड के चलते प्रेशर के तले कुचले जाने से सेहत को चौपट करने वाली आदतें पनप रहीं हैं .इनमे शरीक हैं -धूम्रपान ,खाना परहेजी ,स्किप्पिंग मील्स ,खासकर नाश्ता न करना ,दूध और दुग्ध उत्पादों से छिटकना .प्रोटीन के अन्य प्रमुख स्रोतों यथा रेड मीट यहाँ तक की आयरन ,जिंक और केल्शियम से भी छिटकाव बढ़ रहा है .लो एनर्जी और कथित न्युत्रीयेंट डाईट का चलन ज़ोरों पर है .सेलेब्रिटी कल्चर इस दौर में जो करादे सो कम .
माँ बाप को ऐसे घटाटोप में क्या करना चाहिए ?
सन्दर्भ -सामिग्री :Even 1o 0-yr -olds starving themselves to stay thin 'No Breakfast For 30%Girls ,24%Skipped Lunch'/TIMES TRENDS /TOI,OCTOBER 31 ,2011 P23 CAPITAL ED.
शुक्रवार, 4 नवंबर 2011
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4 टिप्पणियां:
स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता है।
जानकारी परक आलेख।
सेहत का ख्याल ज़रूरी है.....
बेहतरीन जानकारी.....
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