Veggies ,fruits cut genetic heart risk
हरी ताज़ी तरकारियाँ तथा ताज़ा ताज़ा फल पर्याप्त मात्रा में खाने से उन लोगों में दिल की बीमारी के खतरे का वजन थोड़ा कम ज़रूर हो सकता है जिन्हें आनुवंशिक तौर पर इन रोगों की लपेट में आने का जोखिम रहता है .
भारतीय मूल के एक रिसर्चर ने अपने एक अध्ययन के नतीजों में यही बात बतलाई है .
PLOS MEDICINE विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित कनाडा में संपन्न इस अध्ययन के अनुसार योरोपीय मूल की आबादी के तकरीबन पांचवें हिस्से में गुणसूत्र संख्या ९पर एक हृद रोगों की और प्रवृत्त करने वाला कुसूरवार जीवन खंड यानी जीवन इकाई जीन मौजूद रहती है .जो लोग ताज़े फल और तरकारियाँ दिन भर में पांच छ :मर्तबा खातें हैं उनमे यह कुसूरवार जीवन इकाई अपना असर खोकर निष्प्रभावी हो जाती है ,इसकी रोगों की और ले जाने वाली प्रवणता चुकने लगती है .
जन स्वास्थ्य के लिए की गई सिफारिशों का यह शोध अनुमोदन करती है जिसके तहत दिन भर में कमसे कम पांच मर्तबा फल तरकारियों के सेवन की हिदायतें बारहा दी जातीं हैं ..दीगर है कि ऐसी सिफारिश अच्छी सेहत बनाए रखने के लिए की जाती है .इस रिसर्च की अगुवा सोनिया आनंद MCMASTER UNIVERSITY से सम्बद्ध हैं .
ram ram bhai
'Vitamin E pills tied to prostate cancer'
खासा खतरनाक भी हो सकता है विटामिन ई की गोलियों का गैर -ज़रूरी अतिरिक्त सेवन ,बड़ी खुराकें .एक अध्ययन में उन तमाम लोगों पर नजर रखी गई जो पांच बरसों तक विटामिन ई की बड़ी खुराकें लेते रहे थे .पता चला इनके लिए प्रोस्टेट कैंसर के खतरे का वजन बढ़ गया है .यह जोखिम इनके गोलियां बंद करने के बाद भी बरकरार रहा .इसलिए ज़रूरी है लोग विटामिन ई एवं दूसरे विटामिन सम्पूरकों का सोच समझकर विवेकपूर्ण दोहन सेवन करें .
एक गलत फहमी लोगों को यह बनी रहती है कि इन विटामिन गोलियों का सेवन निरापद होता है .फायदा नहीं तो कोई नुकसान भी इनसे होना हवाना नहीं है .भाई साहब नितांत भ्रामक है यह धारणा .लोग सोचते हैं जैसे चिकिन सूप लेने में कोई हर्ज़ नहीं है वैसे ही विटामिनों का सेवन है .
क्लीव्लेंड क्लिनिक के साइंसदान डॉक्टर एरिक क्लेन इससे जरा भी इत्तेफाक नहीं रखते आपने ही यह अध्ययन संपन्न किया है .यदि आपके शरीर के लिए इसका स्तर सामान्य है फिर आपको इसकी जरा भी ज़रुरत नहीं है कि आप इसे गोलियों के रूप में लें .और अगर आप इसका ज़रुरत से ज्यादा सेवन कर रहें हैं तो इसके उलटे नतीजे ही निकलेंगे .नुकसानी उठानी पड़ सकती है आपको .
अपने अध्ययन में आपने कुछ लोगों को रेंडमली विटामिन के ४०० यूनिट का कैप्स्यूल रोजाना मुहैया करवाया तो कुछ को रेंडमली ही प्लेसिबो छद्म दवा , प्लेसिबो या डमी पिल्स ही दीं.पांच साल तक यही सिलसिला चलाया .पता चला विटामिन ई पिल्स लेने वालों के लिए प्रोस्टेट कैंसर के खतरे का वजन १७%बढ़ गया है .
गौर तलब यह भी है कि ओवर दी काउंटर बिना डॉक्टरी पर्ची के मिलने वाली इस गोली की यह मात्रा सिफारिश की गई स्वीकृत खुराख से बीस गुना ज्यादा है .स्वीकृत डोज़ मात्र २३ यूनिट है .
नतीजों का मतलब कुछ यूं निकला प्रति १००० गोली लेने वालों में प्रोस्टेट कैंसर के ११ मामले सामने आये बरक्स उनके जो डमी पिल्स ही ले रहे थे .
ram ram bhai
Meteorites led to life on earth ?
साइंसदानों की माने तो पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत अन्तरिक्ष से होने वाले उल्कापात से हुई थी .बेशक यह भी प्रामाणिक तौर पर माना जाता है कि पृथ्वी से भीमकाय छिपकिलियों का सफाया भी अब से कोई. साढ़े छ :करोड़ बरस पहले हुए उल्का वर्षण से ही हुआ था .
साइंसदानों की माने तो पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत अन्तरिक्ष से होने वाले उल्कापात से हुई थी .बेशक यह भी प्रामाणिक तौर पर माना जाता है कि पृथ्वी से भीमकाय छिपकिलियों का सफाया भी अब से कोई साढ़े छ :करोड़ बरस पहले हुए उल्का वर्षण से ही हुआ था .विज्ञानियों का ऐसा मानना है कि पृथ्वी के जन्म के शैशव काल में ही बड़ी बड़ी चट्टानें अधजली उल्काओं के रूप में पहुँच गईं थीं .इन्हीं विशालकाय चट्टानों ने पृथ्वी पर जीवन के अनुरूप परिश्तिथियाँ (माहौल )रची थीं .जीवन के लिए शुरूआती कच्चा माल ,आदिम जीवन स्वरूप इसी भारी उल्कापात ने मुहैया करवाया था .
"When people think of impact events and life ,probably 99%think of the extinction of dinosaurs .There are always destructive effects but afterwards particularly if you are a microbe ,these impacts can be beneficial ," Gordon Osinski at the university of western Ontario said .
यानी जब भी पृथ्वी पर हुए भीषण उल्कापात का ज़िक्र चलता है ९९%लोग डायनासोरों के विनाश की ही बात सोचते हैं .जीवन के उद्भव और विकास की नहीं .जबकि जीवन के बीज प्राकृत घटनाओं ने ही बोये हैं .विनाश के बाद फिर जीवन है .मृत्यु ही नए जीवन के लिए जीवन के नवीकरण के लिए वरदान है यह कोई नहीं सोचता .
ram ram bhai
RAM RAM BHAI !Children eat less if parents nag :
Children eat less if parents nag :
बच्चे भाजी तरकारी पौष्टिक आहार लेने में आनाकानी करतें ही हैं अपवाद स्वरूप ही कुछ बच्चे हरी सब्जी सलाद आदि खाते देखे जातें हैं ऐसे में ही माँ बाप के धैर्य की परीक्षा होती है .ऐसे में डाट डपट फटकार और किसी और के सामने इसका बखान करके बच्चे को ज़लील करने के उलटे नतीजे ही निकलते हैं .बच्चे और भी ज्यादा छिटकने लगते हैं पौष्टिक लेकिन कम स्वादु चीज़ों से . एक नवीन अध्ययन के अनुसार माँ -बाप की जोर आज़माइश के ज़बरिया बच्चे को उसकी नापसंद चीज़ों को डाट डपट के खिलाने के उलटे नतीजे ही नकलते हैं .बच्चे नापसंद चीज़ को खाएं और पूरा खाएं यह कतई ज़रूरी नहीं है .
अध्ययन से पता चला है खाने पीने के मामलों में दवाब डालने से बच्चों के पौष्टिक लेकिन गैर स्वादु भोजन ग्रहण करने की संभावना और कम हो जाती है .दवाब हटाइये यह सम्भावना बढ़ जायेगी .यही सार रूप सन्देश है इस अध्ययन का .बच्चे को मनाइए धमकाइए नहीं .
RAM RAM BHAI !
Housewives ?Modern women prefer to be called 'stay at home mums'
आज की औरत खुद को हाउस वाइफ कहलवाना पसंद नहीं करतीं हैं .उन्हें लगता है उनके के लिए प्रयुक्त यह पद संबोधन उनकी हेटी करता है .बेशक इस शब्द का अवमूल्यन भी बहुत हुआ है .नकारात्मक अर्थ छटा आदिनांक बनी रही है इस शब्द की जैसे बच्चों की परवरिश ,उनका होम वर्क करवाना कोई आया गया ,गया बीता दोयम दर्जे का काम रहा हो .और दफ्तारिया औरत कुछ बड़े झंडे गाडती हो .कमाऊ समझी जाती है वर्किंग वोमेन जैसे घरेलू , घरु औरत भाड़ झोंकती हो बेगार उठाती हो गैर कमाऊ गैर कमेरी हो .
इसीलिए अब अधुनातन घरेलू औरत परिवार के प्रति -समर्पित औरत खुद को 'स्टे एट होम मम/मम्स 'कहलवाना ही पसंद करतीं हैं .एक ब्रितानी अध्ययन के मुताबिक़ ब्रिटेन में रहने वाली दो तिहाई महिलायें 'हाउसवाइफ 'की नकारात्मक अर्थच्छ्ता (अर्थ -छटा )देख समझ रहीं हैं .उन्हें लगता है यह संबोधन उनकी अस्मिता उनके घर के प्रति समर्पण भाव को एक छोटा काम ,घोषित कर रहा है .नकार रहा है उनके योगदान को .
इनमे से एक तिहाई औरतें तो इस संबोधन ,इस लेबिल को अब अपना अपमान समझने लगीं हैं .
यह अध्ययन जो २००० औरतों के एक हालिया सर्वेक्षण पर आधारित है दर्शाता है कि किस प्रकार औरत का नज़रिया अपने और समाज में उसकी भूमिका के प्रति तबदील हुआ है .
'स्टे एट होम मम्स 'का ध्वनित अर्थ बच्चों की देखभाल से ,लगाया जा रहा है औरतें मानतीं हैं उनका पहला काम घर में रहकर बच्चों को संभालना ही है ,जहां तक घरेलू काम का सम्बन्ध है वह अब औरत मर्द दोनों सांझा करतें हैं .दोनों मिलकर ही करते हैं .मिलबैठकर ही उठाते हैं दोनों घरेलू कामों की जिम्मेवारी .डेली एक्सप्रेस ने यह अध्ययन प्रकाशित किया है .
संस्था मदर केयर की सलाहकार लिज़ डे ने यह अध्ययन संपन्न किया है .आप कहतीं हैं -अब समय बदल गया है अधुनातन महिला घर में अपने रोल को नए ढंग से वर्णित करने की तमन्ना रखती है क्योंकि उसका रोल भी खासा बदला है आधुनिक होता गया है उसी के अनुरूप उसका बखान भी तो होना चाहिए .उसी परम्परा बद्ध घिसे पिटे अंदाज़ में नहीं .अब घरेलू काम दोनों के बीच की हिस्सेदारी से ही चलता है किसी एक का जिम्मा भर नहीं रह गया है .औरत मर्द दोनों की बराबर की भागेदारी से ही सुचारू रूप चलता है .
अध्ययन में न सिर्फ औरतों की बदलती भूमिकाऔर रुझानों की पड़ताल की गई है उनके अपने बारे में दूसरों के नज़रिए और .बने बनाए विचारों को भी खंगाला गया है .कितनी ही औरतें आज यह मान रहीं हैं उन्हें लोग कमतर देख रहें हैं केवल इस बिना पर इस वजह से कि वह घर पर रहतीं हैं .उनकी कर्म भूमी सिर्फ घर है .
रविवार, 16 अक्तूबर 2011
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4 टिप्पणियां:
हा हा हा... अब इनसे हमारा क्या होगा ?वीरुभाई और नई पीढ़ी सुनती नही ...?
और सुनने वाले के लिय वीरुभाई की जानकारी काम की ...कोई शक ...न !
औरतों की बदलती भूमिकाऔर रुझानों की पड़ताल की गई है उनके अपने बारे में दूसरों के नज़रिए और .बने बनाए विचारों को भी खंगाला गया है .कितनी ही औरतें आज यह मान रहीं हैं उन्हें लोग कमतर देख रहें हैं..................sahi hai sir
आपने इस लेख के माध्यम से जो सलाह दी है वह ज़रूर अपनाऊंगा।
बाक़ी की दी गई जानकारी मेरे लिए नई थी।
सब्जियाँ आवश्यक हैं स्वास्थ्य के लिये।
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