Babies can smell mom's मिल्क
जैसे हमें सुस्वादु भोजन की भनक लग जाती है उसके रूप रस गंध वेपर से वैसे ही नवजात और दुधमुंहे शिशु माँ के दूध की गंध दूर से ही जांच लेतें हैं .भांप लेतें हैं .फ्रांस के नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च के शोध कर्ताओं के अनुसार नवजातों की घ्राण शक्ति सूंघने की क्षमता उन्हें माँ के पयोधरों , वक्ष स्थल तक तक पहुंचा देती है ।
वजह बनती हैं वे नन्नी नन्नी ग्रंथियां जो चूचुक पर मौजूद रहतीं हैं अतिसूक्ष्म उभारों के रूप में .इनमे से दूध की गंध रिसती रहती है .जिसे शिशु की संवेदी नाक ताड़ लेती है और बस वह मचलने लगता है दूध के लिए और आपसे आप वहां तक पहुँच जाता है ।
स्तन पान करने वाले शिशु उन माताओं से ज्यादा पोषण प्राप्त करतें हैं जिनके स्तनों पर इन ग्रन्थियों की संख्या अपेक्षाकृत ज्यादा होती है .छोटे छोटे बम्प्स के रूप में ये ग्रंथियां नंगी आँखों से भी दिखलाई दे जातीं हैं ।
रिसर्चरों के अनुसार इसी गंध का स्तेमाल उन समयपूर्व जन्मे शिशुओं(प्रिमीज़ ) को स्तनपान सिखलाने में किया जा सकता है जिन्हें किसी वजह से ट्यूब फीडिग देनी पड़ती है .(जो शिशु ३६ सप्ताह से भी पहले )ही पैदा हो जातें हैं वे प्रिमीज़ कहलातें हैं .इन्हें इन्क्युबेटर में रखना पड़ता है ट्यूब फीड किया जाता है ।
धीरे धीरे ये शिशु भी इन गंधों के सहारे स्तन पान सीख जातें हैं .और कुशलतापूर्वक दुग्ध पान करने लगतें हैं ।
हम जानतें हैं गर्भावस्था में "एरियोलर ग्लेंड्स "संख्या में बढ़ जातीं हैं कभी कभार इनमे से कुछ तरल रिसने भी लगता है .यह तरल चमड़ी को चिकनाने का काम करता रहता है .
अब ऐसा प्रतीत होता है इस रिसाव का मुख्य ध्येय बच्चे की भूख खोलना है उसे रिझाना ललचाना है .गंधों के जादू से बांधे रहना है ।
न्यू -साइंटिस्ट पत्रिका में इस शोध के नतीजे प्रकाशित हुएँ हैं .अध्ययन में १२१ महिलाओं को शरीक किया गया .इनके चूचुक पर मौजूद ग्लेंड्स की गणना की गई .प्रसव के तीन दिन तक यह जांच की गई ।
जिन महिलाओं के प्रत्येक स्तन पर नौ से ज्यादा ग्रंथियां थीं उनमे दूध जल्दी तैयार हुआ ज्यादा मात्रा में बना .बनिस्पत उनके जिनमें यह संख्या नौ से कम थी तथा इनके शिशु भी पर्याप्त पोषित हुए .इनके वजन में अपेक्षाकृत जल्दी वृद्धि दर्ज़ की गई .जो महिलायें पहली मर्तबा ही माँ बनीं थीं उनमें यह प्रक्रिया ज्यादा मुखरित देखी गई .
शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2011
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3 टिप्पणियां:
स्तनपान न सिर्फ शिशु के लिए,बल्कि माता के लिए भी एक सुखद अनुभव होता है। इसका शारीरिक अथवा वैज्ञानिक पहलू जो हो,मगर भावनात्मक पहलू सबसे ज़्यादा अहम है।
रोचक तथ्य।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
बहुत बहुत बधाई ||
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