सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

क्या है 'ओंकोप्लास्टिक ब्रेस्ट कंज़र्वेशन '?

क्या है 'ओंकोप्लास्टिक ब्रेस्ट कंज़र्वेशन '?
आपको बतला दें ओन्कोलोजी कैंसर विद्या ,कैंसर रोग के अध्ययन का विज्ञान है .इसके माहिर को ओंकोलोजिस्त कहा जाता है .जीने की ललक ,जिजीविषा आदमी की मूल ,आदिम प्रवृत्ति है .कैंसर मरीज़ भी इसका अपवाद नहीं हैं .जल्दी शिनाख्त रोग निदान होने पर कैंसर मरीजों को बचा लिया जाता है .७०%स्तन कैंसर के ऐसे ही मामलों में ट्यूमर से निजात मिलने ,रोग मुक्त होने के बाद महिलाएं सौन्दर्य बोध शल्य (एस्थेटिक सर्जरी )के लिए आगे आतीं हैं .
इसी ज़रूरीयात को पूरी करने के लिए अब अधिकाधिक कैंसर सर्जन कोस्मेटिक सर्जरी में भी माहिरी हासिल करने को उत्सुक हैं .पहल करतें हैं इस दिशा में .ताकि एस्थेटिक सर्जरी की बढती हुई मांग के अनुरूप कोस्मेटिक सर्जन उपलब्ध हो सकें .
कैंसर शल्य के साथ प्लास्टिक सर्जरी की अधुनातन तकनीकों का संयोग ,मेलमिलाप ,संयोजन ही आज 'ओंकोप्लास्टिक ब्रेस्ट कंज़र्वेशन 'के रूप में जाना जाने लगा है .भारत के शहराती कैंसर केन्द्रों में इसकी लोकप्रियता बढ़ने लगी है गत पांच सात सालों से यह प्रोसीज़र पश्चिम के विकसित देशों में खासा लोकप्रिय होता गया है .भारतीय मरीज़ और कैंसर शल्य के माहिर भी इसका गर्मजोशी से स्वागत कर रहें हैं .
क्या है यह ओंकोप्लास्टिक प्रोसीज़र (कैंसर प्लास्टिक शल्य तरकीब )?
इसके तहत सबसे पहले कैंसर ग्रस्त संक्राम्य ऊतकों अर्बुद या मलिग्नेंत ट्यूमर को हटाया जाता है .अब स्तनों की आकृति में इस प्रोसीज़र से पैदा हुए विरूपण को दूर किया जाता है .कोशिश की जाती है हर मायने में वक्षस्थल पहले जैसा आकार रूप लावण्य आकर्षण ग्रहण कर ले .कह सकतें हैं यह खोये हुए सौन्दर्य ब्रेस्ट प्रोजेक्शन की पुनरप्राप्ति ही है .निरापद है यह प्रोसीज़र जिसके अच्छे नतीजे मिल रहें हैं यही कहना है कोकिलाबेन अस्पताल के माहिर डॉ मनडॉर नाडकर्णी साहब का .इसी निरापदता के चलते टाटा मेमोरियल अस्पताल ,परेल में उन ७०%मरिज़ाओं में से जो समय रहते रोगनिदान हो जाने से रोगमुक्त होकर ब्रेस्ट कंज़र्वेशन अपनातीं हैं ,उनमे से २५%ओंकोप्लास्टिक सर्जरी भी करवा रहीं हैं .
आखिर विरूपण के साथ जीना कौन चाहता है इससे अच्छा तो स्तनों की सम्पूर्ण तराशी को समझती हैं महिलाएं .देह यष्टि का अपना एक सौन्दर्य शाश्त्र और देह-अभिमान है ,मनोजगत है .पुनर्वास के लिए भी यह ज़रूरी है .ज़िन्दगी कभी खत्म नहीं होती है .ज़िन्दगी जिंदा दिली का नाम है ,मुर्दा दिल क्या ख़ाक जियेंगें ?
गौर तलब है "Lumpectomy"कैंसर गांठ उन्मूलन के बाद औरत रोज़ -बा -रोज़ दागदार विरूप स्तनों को देख कर दुखी होती है .आखिर चमचमाती गाडी में डेंट पड़ना किसे सुहाता है ?सौन्दर्यबोध प्लास्टिक सर्जन के सधे हुए हाथ स्तनों के ऊतकों को ही करामाती हरकत में लाकर शल्य से पैदा गह्वरों और दरारों ब्रेस्ट केविटी को करीने से भर देतें हैं .इसका हु -बा -हु मिलान ,अलाइन्मेन्त स्वस्थ रोग रहित स्तन जैसा ही कर लिया जाता है .सम्पूर्णता का यही एहसास महिलाओं को इसकी पहल के लिए आगे ला रहा है .मजेदार बात यह है दोनों प्रोसीज़र साथ -साथ एक ही ओपरेशन टेबिल पर संपन्न कर लिए जातें हैं .एस एल रहेजा तथा लीलावती अस्पताल में भी यह प्रोसीज़र संपन्न किया जारहा है .
बेशक यह विद्या अभी अपनी शैशव अवस्था में ही है .ले देकर दस सर्जन ही इस विद्या के माहिर हैं .सुनिश्चित कर लिया जाता है रेडियोलोजिकल (विकिरण वैज्ञानिक )तथा नैदानिक (क्लिनिकल असेसमेंट )जायजा लेकर किसे माफिक आयेगा यह प्रोसीज़र किसे नहीं .हड़बड़ी में कुछ नहीं किया जाता है .मकसद हैरोग मुक्ति के बाद मानसिक रुग्णता से मुक्ति दिलवाना .कैंसर सर्जरी और प्लास्टिक सर्जरी का रचनात्मक खूबसूरत संयोग है ओंकोप्लास्टिक प्रोसीज़र .स्तन तराशी (Mastectomy)के बाद की गई पुनरसंरचनात्मक शल्य (रीकंस्ट्रक्शन सर्जरी )से सर्वथा भिन्न है यह शल्यप्राविधि . स्वजातीय ऊतकों (होमोलोगस टिश्यु )मरीजा के अपने ही ऊतकों का स्तेमाल किया जाता है शल्य से पैदा दरारों ब्रेट्स केवितीज़ और विरूपण को भरने में .
.रेडियेशन का लाजिमी तौर पर स्तेमाल किया जाता है इस प्राविधि में .ब्रेस्ट कंज़र्वेशन के बाद जो मरीज़ ओंकोप्लास्टिक प्रोसीज़र के लिए आगे आता है उसके लिए रेडियेशन मेंडेत्री है अपरिहार्य है .इसलिए मरीजों की सावधानी पूर्वकही छंटनी की जाती है .देखना पड़ता है किसे क्या माफिक आता है .आयेगा भी या नहीं .
जिनका रोग फिर लौट आता है उन्हें फिर स्तन तराशी करवानी पड़ती है .
कैंसर इलाज़ की कुल कीमत बढ़कर ढाई से तीन गुना आती है प्राइवेट अस्पतालों में .इस प्रोसीज़र के साथ .
ram ram bhai

रविवार, २३ अक्तूबर २०११
क्या है डिजिटल मेमोग्राफी आंकड़ों को अंकों में दर्शाने वाली प्रणाली
क्या है डिजिटल मेमोग्राफी आंकड़ों को अंकों में दर्शाने वाली प्रणाली जो वक्षस्थल के ऊतकों का विभेदन करती है .स्वस्थ ऊतकों को कैंसरयुक्त होते ऊतकों से अलग दर्शाती है .ऊतकों का अंकीय दर्शन करवाती है .
हम जान गए हैं मेमोग्राम एक्स रे होता है स्तनों का जिसे उतारने के लिए स्तनों को दो रेदियोल्युसेंत प्लेटों के बीच अलग अलग स्थितियों और दशाओं में संपीडित या कम्प्रेस करके पहले फ्लेट किया जाता है फिर एक्स रे विकिरण की बरसात की जाती है .बौछार की जाती है .ब्रेस्ट कैंसर की समय रहते जल्दी शिनाख्त करने में मेमोग्रेफी की बड़ी भूमिका रहती है .स्तनों के ऊतकों में होने वाले सूक्ष्मतर बदलावों का इस तकनीक से पता लगा लिया जाता है .यही शुरूआती संकेत या लक्षण होतें हैं ब्रेस्ट कैंसर के जो नामालूम बने रहतें हैं बरसों जब तक पता चलता है बहुत देर हो चुकी होती है .
फुल फील्ड डिजिटल मेमोग्राफी ने इस शिनाख्त को एक नै परवाज़ नया क्षितिज मुहैया करवाया है .
इस के तहत कम्प्यूटरों के अलावा विशेष तौर पर गढ़े गए संसूचकों या डिटेकटर काम में लिए जातें हैं .ऊतकों का सारा कच्चा चिठ्ठा इस तरकीब में एक उच्च विभेदन क्षमता के धनी कंप्यूटर मोनिटर पर हाज़िर हो जाता है .इसका आगे सम्प्रेषण भी हो जाता है फ़ाइल भी तैयार हो जाती है .संरक्षण और भंडारण हो जाता है एहम सूचना का फाइलों में .
मेमो पैड्स की मौजूदगी इस तकनीक को परम्परा गत मेमोग्रेफी के बरक्स तकरीबन पीड़ा रहित ही बना देती है .इसमें मुलायम फोम के गद्देदार पैड्स का स्तेमाल किया जाता है .रूर बतलाएं
अलबता कुछ बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए :
(१)मासिक स्राव समाप्त होने के एक हफ्ता बाद यदि यह प्रोसीज़र करवाया जाए तब यह तकरीबन पीड़ा रहित साबित होता है .दर्द की तीव्रता और भी कम रह जाती है इस वक्फे में .
(२)जहां भी यह सुविधा उपलब्ध है आपका हक़ बनता है आप मेमोपैड्स की उपलब्धता अनुपलब्धता के बारे में दरयाफ्त करें .इनकी मौजूदगी दर्द को खासा घटा देती है .
(३)जिस दिन यह परीक्षण या जांच करवानी हो वक्ष स्थल और कांख के गिर्द किसी किस्म का दुर्गन्धनाशी ,पसीनारोधी स्तेमाल में न लें .
(४)अपना पहले का पूरा मेडिकल रिकोर्ड साथ रखें जांच के वक्त दिखलाने के लिए पुरानी फ़िल्में आदि साथ ले जाएं .
(५)गर्भावस्था की यदि जरा भी संभावना आपको लगती है तो इसकी इत्तला अपने रेडियोविज्ञानी को ज़रूर दें .
(६)यदि ब्रेस्ट्स पर स्कार्स या मुंहासे आदि हैं तो उनके बारे में भी ज़रूर बतलाएं .
(७)पूर्व में संपन्न बायोप्सी या किसी भी किस्म की यदि सर्जरी करवाई गई है तो उसकी इत्तला भी दें .
रविवार, २३ अक्तूबर २०११
स्क्रीनिंग बनाम रोगनैदानिक मेमोग्रेफी (Screening vs diagnostic mammography).

प्रतिबिम्बन तरकीबों इमेजिंग टेक्नीक्स द्वारा वक्षस्थल (दोनों स्तनों )का अध्ययन मेमोग्राफी कहलाता है .आम तौर पर इस हेतु एक्स रेज़ का ही स्तेमाल किया जाता है .एक्स रे उतारते वक्त रेडियोल्यूसेंट प्लेटों के बीच स्तनों को संपीडित (कम्प्रेस )करना पड़ता है .अब कोमल ऊतकों के बीच परस्पर भेद करने के लिए कम ऊर्जा एक्स किरणें वक्षस्थल पर डाली जातीं हैं .शिनाख्त और रोग निदान हेतु एक्स रेज़ आजमाई जातीं हैं .उम्र के मुताबिक़ कम या अधिक ऊर्जावान एक्स रेज़ काम में ली जातीं हैं .
बेशक जिन युवतियों के परिवार में स्तन कैंसर का पूर्ववृत्तांत फस्ट डिग्री रिलेतिव्ज़ माँ पिता बहिन भाई मौसी आदि में रहा आया है उनके लिए अल्ट्रासोनोग्रेफ़ी रोग निदान का बेहतर ज़रिया साबित होता है .इनकी ब्रेस्ट डेंसिटी (वक्षस्थल का घनत्व )अपेक्षाकृत ज्यादा रहता है उम्र दराज़ औरतों के बरक्स .स्त्री रोग प्रसूति और स्रावी विज्ञान की माहिर ब्रीच केंडी अस्पताल की माहिर गीता पंडया ऐसा ही मानतीं हैं .
जब तक यह आशंका न पैदा हो जाए कि कुछ गलत है युवतियां स्केनिंगकरवाने की पहल ही नहीं करतीं हैं जबकि पंडया कहतीं हैं कि यदि महिला हाईरिश्क समूह में आती है तब नियमित सेल्फ चेक अप के अलवा चेक अप्स के लिए माहिर के पास भी पहुंचना चाहिए .
यहीं से स्क्रीनिंग एवं रोगनैदानिक मेमोग्रेफी की बात उठती है .
स्क्रीनिंग मेमोग्रेफी एक्स रेज़ की कमतर बमबारी से ही कर ली जाती है क्योंकि स्क्रीनिंग का काम स्तन द्रव्यमान में गहरे पैठकर गांठों ,लम्प्स की शिनाख्त करना नहीं है .केईएम् अस्पताल में रेडियोलोजी (विकिरण विज्ञान )के मुखिया डॉ हेमन्त देशमुख साहब स्क्रीनिंग मेमोग्रेफी को उन महिलाओं के लिए सबसे अच्छा मानतें हैं जिनमे स्तन कैंसर के कैसे भी लक्षण प्रगट नहीं हुए हैं .
स्क्रीनिंग मेमोग्राम्स का काम केल्शियम के सूक्ष्म ज़माव का पता लगाना है .केल्शियम के टाइनी डिपोज़िट्स का पता लगाना है .कैंसर के वजूद को तस्दीक करना है इनकी शिनाख्त .होना .
लेकिन डायग्नोस्तिक मेमोग्राम्स उतारने के लिए अति -परिष्कृत मशीनों का स्तेमाल किया जाता है तब जब लम्प्स मौजूद हों स्तन कैंसर के अन्य लक्षणों का प्रगटीकरण होता हो .
ram ram bhai

भारी पड़ती है स्तन गांठों की अनदेखी ,कीमत चुकानी पड़ती है अज्ञानता की ,अनभिज्ञता की अनजाने ही .


आंतरिक साजसज्जा की माहिर हैं४७ वर्षीय सोनिया सिंह जी .महीनों से उनकी कांख (बगल ,आर्मपिट ,अंडरआर्म )में एक गांठ पनप रही थी .बेशक दर्द नहीं कर रही थी यह गांठ लेकिन तथ्य यह भी है कि यह आकार में लगातार बढ़ रही थी .आप इसकीअपने अनजाने ही अनदेखी करती रहीं फिर एक दिन जब फोर्टिस अस्पताल ,चंडीगढ़ में कैंसर विज्ञान के माहिर डॉ .पंकज गर्ग के पास पहुंची ,तब नैदानिक परीक्षण (क्लिनिकल एग्जामिनेशन ),इमेजिंग तथा नीडिल टेस्ट के बाद पता चला उनका ब्रेट्स कैंसर अग्रिम चरण में पहुँच चुका है .स्वाभाविक तौर पर डॉ .पंकज ने हतप्रभ होकर पूछा आप इतनी देर से क्यों पहुंची परीक्षण करवाने जब की ट्यूमर दस्तक दे चुका था और गांठ दिनानुदिन आकार में बढ़ भी रही थी ."डॉ .साहब गांठ में दर्द नहीं था "-ज़वाब मिला .
डॉ .गर्ग ने अपने एक अध्ययन में जो चंडीगढ़ में तकरीबन १००० महिलाओं पर आपने संपन्न किया है शुरूआती स्तन कैंसर के मामले में इन महिलाओं की जिनमे अच्छी खासी आधुनिक महिलाएं भी शामिल रहीं हैं नज़रिए की पड़ताल की है .इनमे से ८२ %महिलाएं इस तथ्य से वाकिफ नहीं थी कि शुरूआती चरणों में स्तन कैंसर गांठें ,दर्द हीन ही बनी रहतीं हैं .ज्यादातर इसी गफलत में रहतीं हैं कि पीडाहीन स्तन गांठें निरापद(बिनाइन ) ही होतीं हैं इनका कोई नहीं होता .
यदि इसी चरण में शिनाख्त हो जाए तो इलाज़ भी पुख्ता हो जाए संभवतया मुकम्मिल इलाज़ भी .छुटकारा (निजात )भी मिल जाए इन्हीं चरणों में स्तन कैंसर से .बेहतर हो तमाम महिलाए संकोच छोड़ इसी शुरूआती चरण में जांच की पहल करें आगे आएं .क्या बरखा जब कृषि सुखाने देरी का यही मतलब निकलेगा .सब कुछ चौपट हो रहेगा .८०%मरीजाओं को यह इल्म नहीं है कि कांख में बढती हुई गांठें कैंसर के शुरूआती दौर का ज्ञात लक्षण हैं .एक तिहाई को यह गफलत है कि स्तन में पीड़ा का होना ही स्तन कैंसर के शुरूआती चरण का एक एहम लक्षण है .इसी गफलत के भारत भर में चलते यहाँ ७० %मामलों की शिनाख्त (रोग निदान ,डायग्नोसिस )अग्रिम चरण में ही हो पाती है जब की विकसित देशों में अग्रिम चरण में मात्र २०%मामलों क़ी ही शिनाख्त होती है शेष का पता इससे पहले ही चल जाता है जन जागरूकता के चलते .
बी एल के सुपर स्पेशियलटी अस्पताल में कैंसर महकमें के मुखिया डॉ .सिद्धार्थ साहनी कहतें हैं यदि कैंसर का पता प्रथम चरण में लगा लिया जाए तब ९८%मामलों में कामयाब इलाज़ हो जाए .ठीक होने की दर ९८%रहे .
बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है क़ि ट्यूमर है किस टाइप का ,लन्दन में स्तन अर्बुद (ब्रेस्ट ट्यूमर ,स्तन गांठ )का औसत आकार १.१सैन्तीमीतर (११ मिलीमीटरव्यास वाला ) रहता है जबकी भारत की राजधानी नै दिल्ली में इसका औसत डायमीटर ३.९ सैंटीमीटर मिला है .यहाँ माहिरों का पाला दूसरे और तीसरे चरण में पहुच चुके स्तन कैंसर से पड़ता है .
औरत के चालीस साला होने पर हर साल दो साल में उसे स्क्रीनिंग मेमोग्रेफी करवाने की सिफारिशें की जातीं हैं उन मामलों में जिनमे स्तन कैंसर होने और न होने दोनों ही मामलों में लक्षण हीन(असिम्तोमेतिक )ही बना रहता हैं .लेकिन पचास साला होने पर यह जांच हर साल करवाने की हिदायतें ही दी जातीं हैं .
भारत के ग्रामीण अंचलों में .दूरदराज़ के क्षेत्रों में नियमित नैदानिक परीक्षण तथा मेमोग्रेफी (वक्ष स्थल का एक्स रे )संभव भी नहीं है .वजह एक तरफ प्रशिक्षित क्लिनिशियनों की कमी है ,दूसरी तरफ एक्स रे मशीनों का तोड़ा (तंगी,कमी बेशी ).ऊपर से इन परीक्षणों का मंहगा होना भी एक वजह बनता है रोग निदान से वंचित रह जाने का .
वर्ल्ड हेल्थ स्टेतिस्तिक्स ("WHS").के अनुसार २०००-२००३ के दरमियान ५०-६९ साला कुल ५%से भी कम महिलाएं ही मेमोग्रेफी स्क्रीनिंग (जांच )करवा सकीं थीं .
विश्वस्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ यदि इस आयु वर्ग की तमाम महिलाओं को यह जाँच नसीब हो जाए तब मौत की दर को १५-२५%घटाया जा सकता है . डॉ .गर्ग को अपने अध्ययन से यह भी मालूम हुआ क़ि ७१ %महिलाओं को मेमोग्रेफी के बारे में भी कोई जानकारी नहीं थी .
औरत का संकोच भी उसे मारता है जो अपने असेट्स (वक्ष स्थल )की जांच के लिए संकोच वश आगे नहीं आपातीं .एक जन्म जात भय भी उनपर तारी रहता है -"कहीं कैंसर निकल ही न आये ?"इसीलिए वह जांच से छिटकती है लेकिन ख़तरा टलता कहाँ है ? यही कहना है डॉ .गीता पंड्या का .आप जसलोक अस्पताल ,मुंबई में स्तन कैंसर की माहिर हैं .

3 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हर पोस्ट से थोड़ा थोड़ा ज्ञान बढ़ता हुआ।

मनोज कुमार ने कहा…

बड़े विस्तार से आपने इस सर्जरी के बारे में बताया। ऑंकोप्लास्टिक ब्रेस्ट कंज़र्वेशन के बारे में जानकारी नहीं थी।

Amrita Tanmay ने कहा…

बहुत उपयोगी आलेख है जिसे आपने सविस्तार समझाया है. आपका आभार.