शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011

'Teens ' brains don't work properly

'Teens ' brains don't work प्रोपरली
वय:संधि स्थल (किशोरावस्था )में किशोर किशोरियों का दिमाग ठीक से काम नहीं करता इसीलिए माँ बाप को उम्र के इस सौपान में किशोर -किशोरियों के साथ ज्यादा डाट डपट नहीं करनी चाहिए .बेड टेम्पर्ड एडोलिसेंट्स को नजर अंदाज़ करना ही अच्छा .एक ताज़ा शोध के अनुसार उम्र के इस पड़ाव में वह प्रक्रिया बाधित होने लगती है जिसके तहत दिमाग नव कोशाओं का निर्माण करता है .इसके नाटकीय नतीजे निकलते हैं .केवल व्यवहार सम्बन्धी समस्याएं ही इस दरमियान आड़े नहीं आती शिजोफ्रेनिया जैसे मानसिक रोग भी पैदा हो सकतें हैं .बड़ी नाज़ुक होती है यह उम्र इन रोगों के ट्रिगर के लिए ,जो बालिग़ होने पर अपना पूरा चेहरा दिखला देतें हैं ।
अखबार डेली मेल ने इस रिसर्च को छापा है ।
चूहों पर की गई आजमाइशों से इल्म हुआ है कि दिमागी कोशाओं के निर्बाध विकास की प्रक्रिया को यदि रोक दिया जाए इस प्रक्रिया में बाधा खड़ी हो जाए तब चूहों का व्यवहार गंभीर रूप से असामाजिक हो जाता है ।
रिसर्चरों ने अपना ध्यान न्यूरोजिनेसिस पर संकेंद्रित किया .यही वह प्रक्रिया है जिसके तहत जन्म के बाद दिमाग के खासुल ख़ास हिस्सों में नै कोशिकाएं पैदा होतीं हैं .बाल्यकाल और वय:संधि स्थल (एडोलिसेंस ) पर यह प्रक्रिया द्रुत रफ़्तार पकड़ लेती है ।
प्रोफ़ेसर एरी काफ्फमन कहतें हैं सामाजिक विकास को आणविक स्तर पर बूझने समझने में इस अध्ययन का विशेष महत्व है ।
मेच्युर चूहों की सहज प्रवृत्ति होती है अजनबी चूहों के साथ अधिक समय बिताने उनके साथ क्रिया -प्रति -क्रिया इन्टेरेक्त करने की ,सहज होने की लेकिन यह तभी मुमकिन होता है जब वय:संधि स्थल पर न्यूरोजिनेसिस में व्यवधान पैदा न हुआ हो ।
जिनमें यह प्रक्रिया एडोलिसेंस में बाधित हो जाती है वह बालिग़ होने पर अजनबियों से बचके निकलते हैं .दूसरों की सामाजिक पहल पर भी ये छिटकते हैं .ये ऐसा दिखते भालते हैं जैसे जो करीब आने की कोशिश कर रहा है उसे ये जानते ही नहीं ,कन्नी काटतें हैं ,उससे .
Neurogenesis :The formation and development of nerve cells is called neurogenesis .

Babies can smell mom's milk

Babies can smell mom's मिल्क
जैसे हमें सुस्वादु भोजन की भनक लग जाती है उसके रूप रस गंध वेपर से वैसे ही नवजात और दुधमुंहे शिशु माँ के दूध की गंध दूर से ही जांच लेतें हैं .भांप लेतें हैं .फ्रांस के नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च के शोध कर्ताओं के अनुसार नवजातों की घ्राण शक्ति सूंघने की क्षमता उन्हें माँ के पयोधरों , वक्ष स्थल तक तक पहुंचा देती है
वजह बनती हैं वे नन्नी नन्नी ग्रंथियां जो चूचुक पर मौजूद रहतीं हैं अतिसूक्ष्म उभारों के रूप में .इनमे से दूध की गंध रिसती रहती है .जिसे शिशु की संवेदी नाक ताड़ लेती है और बस वह मचलने लगता है दूध के लिए और आपसे आप वहां तक पहुँच जाता है
स्तन पान करने वाले शिशु उन माताओं से ज्यादा पोषण प्राप्त करतें हैं जिनके स्तनों पर इन ग्रन्थियों की संख्या अपेक्षाकृत ज्यादा होती है .छोटे छोटे बम्प्स के रूप में ये ग्रंथियां नंगी आँखों से भी दिखलाई दे जातीं हैं
रिसर्चरों के अनुसार इसी गंध का स्तेमाल उन समयपूर्व जन्मे शिशुओं(प्रिमीज़ ) को स्तनपान सिखलाने में किया जा सकता है जिन्हें किसी वजह से ट्यूब फीडिग देनी पड़ती है .(जो शिशु ३६ सप्ताह से भी पहले )ही पैदा हो जातें हैं वे प्रिमीज़ कहलातें हैं .इन्हें इन्क्युबेटर में रखना पड़ता है ट्यूब फीड किया जाता है
धीरे धीरे ये शिशु भी इन गंधों के सहारे स्तन पान सीख जातें हैं .और कुशलतापूर्वक दुग्ध पान करने लगतें हैं
हम जानतें हैं गर्भावस्था में "एरियोलर ग्लेंड्स "संख्या में बढ़ जातीं हैं कभी कभार इनमे से कुछ तरल रिसने भी लगता है .यह तरल चमड़ी को चिकनाने का काम करता रहता है .
अब ऐसा प्रतीत होता है इस रिसाव का मुख्य ध्येय बच्चे की भूख खोलना है उसे रिझाना ललचाना है .गंधों के जादू से बांधे रहना है
न्यू -साइंटिस्ट पत्रिका में इस शोध के नतीजे प्रकाशित हुएँ हैं .अध्ययन में १२१ महिलाओं को शरीक किया गया .इनके चूचुक पर मौजूद ग्लेंड्स की गणना की गई .प्रसव के तीन दिन तक यह जांच की गई
जिन महिलाओं के प्रत्येक स्तन पर नौ से ज्यादा ग्रंथियां थीं उनमे दूध जल्दी तैयार हुआ ज्यादा मात्रा में बना .बनिस्पत उनके जिनमें यह संख्या नौ से कम थी तथा इनके शिशु भी पर्याप्त पोषित हुए .इनके वजन में अपेक्षाकृत जल्दी वृद्धि दर्ज़ की गई .जो महिलायें पहली मर्तबा ही माँ बनीं थीं उनमें यह प्रक्रिया ज्यादा मुखरित देखी गई .

3 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||

बहुत बहुत बधाई ||

कुमार राधारमण ने कहा…

वयःसंधिकाल में ही डांट-डपट का कुछ परिणाम निकल सकता है। जब दिमाग ठीक से काम न कर रहा हो,उस समय सही राह न दिखाई जाए तो मां-बाप का अनुभव किस काम का? इसी दौर में किशोरवय लोग भ्रष्ट साहित्य की ओर उन्मुख होते हैं। शारीरिक अवसंरचना में हो रही तब्दीली उनकी अनेक जिज्ञासाओं का कारण बनती है जिसके उच्छृंखलता में तब्दील होने की संभावना रहती है। आपने भी देखा होगा,बिना डांट-डपट के बच्चे आज़ादी के नाम पर क्या गुल खिला रहे हैं।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सबके साथ यही होता है।