स्क्रीनिंग बनाम रोगनैदानिक मेमोग्रेफी (Screening vs diagnostic mammography).
प्रतिबिम्बन तरकीबों इमेजिंग टेक्नीक्स द्वारा वक्षस्थल (दोनों स्तनों )का अध्ययन मेमोग्राफी कहलाता है .आम तौर पर इस हेतु एक्स रेज़ का ही स्तेमाल किया जाता है .एक्स रे उतारते वक्त रेडियोल्यूसेंट प्लेटों के बीच स्तनों को संपीडित (कम्प्रेस )करना पड़ता है .अब कोमल ऊतकों के बीच परस्पर भेद करने के लिए कम ऊर्जा एक्स किरणें वक्षस्थल पर डाली जातीं हैं .शिनाख्त और रोग निदान हेतु एक्स रेज़ आजमाई जातीं हैं .उम्र के मुताबिक़ कम या अधिक ऊर्जावान एक्स रेज़ काम में ली जातीं हैं .
बेशक जिन युवतियों के परिवार में स्तन कैंसर का पूर्ववृत्तांत फस्ट डिग्री रिलेतिव्ज़ माँ पिता बहिन भाई मौसी आदि में रहा आया है उनके लिए अल्ट्रासोनोग्रेफ़ी रोग निदान का बेहतर ज़रिया साबित होता है .इनकी ब्रेस्ट डेंसिटी (वक्षस्थल का घनत्व )अपेक्षाकृत ज्यादा रहता है उम्र दराज़ औरतों के बरक्स .स्त्री रोग प्रसूति और स्रावी विज्ञान की माहिर ब्रीच केंडी अस्पताल की माहिर गीता पंडया ऐसा ही मानतीं हैं .
जब तक यह आशंका न पैदा हो जाए कि कुछ गलत है युवतियां स्केनिंगकरवाने की पहल ही नहीं करतीं हैं जबकि पंडया कहतीं हैं कि यदि महिला हाईरिश्क समूह में आती है तब नियमित सेल्फ चेक अप के अलवा चेक अप्स के लिए माहिर के पास भी पहुंचना चाहिए .
यहीं से स्क्रीनिंग एवं रोगनैदानिक मेमोग्रेफी की बात उठती है .
स्क्रीनिंग मेमोग्रेफी एक्स रेज़ की कमतर बमबारी से ही कर ली जाती है क्योंकि स्क्रीनिंग का काम स्तन द्रव्यमान में गहरे पैठकर गांठों ,लम्प्स की शिनाख्त करना नहीं है .केईएम् अस्पताल में रेडियोलोजी (विकिरण विज्ञान )के मुखिया डॉ हेमन्त देशमुख साहब स्क्रीनिंग मेमोग्रेफी को उन महिलाओं के लिए सबसे अच्छा मानतें हैं जिनमे स्तन कैंसर के कैसे भी लक्षण प्रगट नहीं हुए हैं .
स्क्रीनिंग मेमोग्राम्स का काम केल्शियम के सूक्ष्म ज़माव का पता लगाना है .केल्शियम के टाइनी डिपोज़िट्स का पता लगाना है .कैंसर के वजूद को तस्दीक करना है इनकी शिनाख्त .होना .
लेकिन डायग्नोस्तिक मेमोग्राम्स उतारने के लिए अति -परिष्कृत मशीनों का स्तेमाल किया जाता है तब जब लम्प्स मौजूद हों स्तन कैंसर के अन्य लक्षणों का प्रगटीकरण होता हो .
ram ram bhai
भारी पड़ती है स्तन गांठों की अनदेखी ,कीमत चुकानी पड़ती है अज्ञानता की ,अनभिज्ञता की अनजाने ही .
आंतरिक साजसज्जा की माहिर हैं४७ वर्षीय सोनिया सिंह जी .महीनों से उनकी कांख (बगल ,आर्मपिट ,अंडरआर्म )में एक गांठ पनप रही थी .बेशक दर्द नहीं कर रही थी यह गांठ लेकिन तथ्य यह भी है कि यह आकार में लगातार बढ़ रही थी .आप इसकीअपने अनजाने ही अनदेखी करती रहीं फिर एक दिन जब फोर्टिस अस्पताल ,चंडीगढ़ में कैंसर विज्ञान के माहिर डॉ .पंकज गर्ग के पास पहुंची ,तब नैदानिक परीक्षण (क्लिनिकल एग्जामिनेशन ),इमेजिंग तथा नीडिल टेस्ट के बाद पता चला उनका ब्रेट्स कैंसर अग्रिम चरण में पहुँच चुका है .स्वाभाविक तौर पर डॉ .पंकज ने हतप्रभ होकर पूछा आप इतनी देर से क्यों पहुंची परीक्षण करवाने जब की ट्यूमर दस्तक दे चुका था और गांठ दिनानुदिन आकार में बढ़ भी रही थी ."डॉ .साहब गांठ में दर्द नहीं था "-ज़वाब मिला .
डॉ .गर्ग ने अपने एक अध्ययन में जो चंडीगढ़ में तकरीबन १००० महिलाओं पर आपने संपन्न किया है शुरूआती स्तन कैंसर के मामले में इन महिलाओं की जिनमे अच्छी खासी आधुनिक महिलाएं भी शामिल रहीं हैं नज़रिए की पड़ताल की है .इनमे से ८२ %महिलाएं इस तथ्य से वाकिफ नहीं थी कि शुरूआती चरणों में स्तन कैंसर गांठें ,दर्द हीन ही बनी रहतीं हैं .ज्यादातर इसी गफलत में रहतीं हैं कि पीडाहीन स्तन गांठें निरापद(बिनाइन ) ही होतीं हैं इनका कोई नहीं होता .
यदि इसी चरण में शिनाख्त हो जाए तो इलाज़ भी पुख्ता हो जाए संभवतया मुकम्मिल इलाज़ भी .छुटकारा (निजात )भी मिल जाए इन्हीं चरणों में स्तन कैंसर से .बेहतर हो तमाम महिलाए संकोच छोड़ इसी शुरूआती चरण में जांच की पहल करें आगे आएं .क्या बरखा जब कृषि सुखाने देरी का यही मतलब निकलेगा .सब कुछ चौपट हो रहेगा .८०%मरीजाओं को यह इल्म नहीं है कि कांख में बढती हुई गांठें कैंसर के शुरूआती दौर का ज्ञात लक्षण हैं .एक तिहाई को यह गफलत है कि स्तन में पीड़ा का होना ही स्तन कैंसर के शुरूआती चरण का एक एहम लक्षण है .इसी गफलत के भारत भर में चलते यहाँ ७० %मामलों की शिनाख्त (रोग निदान ,डायग्नोसिस )अग्रिम चरण में ही हो पाती है जब की विकसित देशों में अग्रिम चरण में मात्र २०%मामलों क़ी ही शिनाख्त होती है शेष का पता इससे पहले ही चल जाता है जन जागरूकता के चलते .
बी एल के सुपर स्पेशियलटी अस्पताल में कैंसर महकमें के मुखिया डॉ .सिद्धार्थ साहनी कहतें हैं यदि कैंसर का पता प्रथम चरण में लगा लिया जाए तब ९८%मामलों में कामयाब इलाज़ हो जाए .ठीक होने की दर ९८%रहे .
बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है क़ि ट्यूमर है किस टाइप का ,लन्दन में स्तन अर्बुद (ब्रेस्ट ट्यूमर ,स्तन गांठ )का औसत आकार १.१सैन्तीमीतर (११ मिलीमीटरव्यास वाला ) रहता है जबकी भारत की राजधानी नै दिल्ली में इसका औसत डायमीटर ३.९ सैंटीमीटर मिला है .यहाँ माहिरों का पाला दूसरे और तीसरे चरण में पहुच चुके स्तन कैंसर से पड़ता है .
औरत के चालीस साला होने पर हर साल दो साल में उसे स्क्रीनिंग मेमोग्रेफी करवाने की सिफारिशें की जातीं हैं उन मामलों में जिनमे स्तन कैंसर होने और न होने दोनों ही मामलों में लक्षण हीन(असिम्तोमेतिक )ही बना रहता हैं .लेकिन पचास साला होने पर यह जांच हर साल करवाने की हिदायतें ही दी जातीं हैं .
भारत के ग्रामीण अंचलों में .दूरदराज़ के क्षेत्रों में नियमित नैदानिक परीक्षण तथा मेमोग्रेफी (वक्ष स्थल का एक्स रे )संभव भी नहीं है .वजह एक तरफ प्रशिक्षित क्लिनिशियनों की कमी है ,दूसरी तरफ एक्स रे मशीनों का तोड़ा (तंगी,कमी बेशी ).ऊपर से इन परीक्षणों का मंहगा होना भी एक वजह बनता है रोग निदान से वंचित रह जाने का .
वर्ल्ड हेल्थ स्टेतिस्तिक्स ("WHS").के अनुसार २०००-२००३ के दरमियान ५०-६९ साला कुल ५%से भी कम महिलाएं ही मेमोग्रेफी स्क्रीनिंग (जांच )करवा सकीं थीं .
विश्वस्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ यदि इस आयु वर्ग की तमाम महिलाओं को यह जाँच नसीब हो जाए तब मौत की दर को १५-२५%घटाया जा सकता है . डॉ .गर्ग को अपने अध्ययन से यह भी मालूम हुआ क़ि ७१ %महिलाओं को मेमोग्रेफी के बारे में भी कोई जानकारी नहीं थी .
औरत का संकोच भी उसे मारता है जो अपने असेट्स (वक्ष स्थल )की जांच के लिए संकोच वश आगे नहीं आपातीं .एक जन्म जात भय भी उनपर तारी रहता है -"कहीं कैंसर निकल ही न आये ?"इसीलिए वह जांच से छिटकती है लेकिन ख़तरा टलता कहाँ है ? यही कहना है डॉ .गीता पंड्या का .आप जसलोक अस्पताल ,मुंबई में स्तन कैंसर की माहिर हैं .
ram ram bhai
स्तन कैंसर से जुड़े कुछ अर्थपूर्ण तथ्य
(१)यदि कैंसर का शुरूआती चरण में ही जल्दी से जल्दी पता चल जाए तब इससे पूरी तरह छुटकारा मिलने की संभावना एक दम से बढ़ जाती है .माहिरों के अनुसार नतीजे इस बात से सीधे सीधे ताल्लुक ही नहीं रखते तय होतें हैं कि जिस समय स्तन कैंसर का इलाज़ शुरु किया गया उस वक्त अर्बुद (गांठ या ट्यूमर आकार में कित्ता था ,साइज़ क्या था कैंसर युक्त गांठ का ).
(२)ट्यूमर का आकार शुरूआती चरण में ही इलाज़ के वक्त केवल एक मिलीमीटर से भी कम व्यास (डायमीटर )का होने पर ९०%मामलों में बीस साल की औसतन मोहलत ,बचने की,बने रहनें ,ज़िंदा रहने की दर पैदा हो जाती है .
(३)लेकिन इलाज़ के वक्त ट्यूमर का डायमीटर ३ मिलीमीटर या उससे भी ज्यादा बड़ा होने पर सर्वाइवल रेट घटके ५०%पर आजाती है .
(४)२०२० तक भारत में कैंसर के मामले अमरीका और योरोप के बराबर ही हो जायेंगे यानी सात में से एक औरत तब स्तन कैंसर की ज़द में होगी .(स्रोत :विश्वस्वास्थ्य संगठन की एक प्रागुक्ति ,एक अनुमान ,एक कयास ).
(५)शुरूआती चरण में स्तन कैंसर के किसी भी प्रकार के लक्षणों का प्रगटीकरण ही नहीं होता है .अ-लाक्षणिक ही बना रहता है यह दौर जिसे स्टेज जीरो भी कह सकते हैं जब चंद कोशाएं ही मरना भूल द्विगुणित होना आरम्भ करती हैं .
संभल जाइए यदि आपकी कांख (बगल या आर्म पिट/अंडरआर्म )में कोई गांठ मासिक स्राव के संपन्न होने पर भी बनी रहती है .बेशक इन गांठों में आमतौर पर कोई दर्द नहीं होता है लेकिन दर्द होने या इनके स्पर्श के प्रति अति -संवेदनशील होने टेंडरनेस महसूस होने पर इसकी भूल कर भी अनदेखी न करें .कैंसर के माहिर से फ़ौरन संपर्क करें .कुछ मामलों में प्रिकली सेंसेशन भी हो सकती है .बगल में सोजिश भी हो सकती है .
साइज़ और शेप चमड़ी की बुनावट टेक्सचर में अंतर दिखलाई दे सकता है .मसलन puckering or dimpling दृष्टि गोचर हो सकती है .चमड़ी में परतें ,फोल्ड्स या क्रीज़ दिख सकती है ,गड्ढा प्रगट हो सकता है नन्ना सा ,ब्यूटी स्पोट सा डिम्पल पड़ सकता है .
निपिल से खून के धब्बे नुमा हलका रिसाव भी हो सकता है .खतरे के संकेत है ये जिनकी अनदेखी भारी पड़ती है .ख़तरा टलता नहीं है बढ़ जाता है नजर अंदाज़ करने पर .
ram ram bhai
.ब्रेस्ट . कैंसर से जुड़े कुछ मिथ ओर यथार्थ.
स्तन कैंसर जागरूकता महीने में चर्चा हो जाए ब्रेस्ट कैंसर से जुड़े कुछ मिथ ओर यथार्थ
की .
मिथ :
(१)मेमोग्रामं जांच से कैंसर फ़ैल सकता है ?
मेमोग्राम स्तन कैंसर का जल्दी से जल्दी सूक्ष्म स्तर पर पता लगाने के लिए वक्ष स्थल का उतारा गया एक्स रे होता है .
यथार्थ :
न तो एक्स रे ओर न ही एक्स रे मशीन से स्तनों पर पड़ने वाला दवाब या संपीडन (कम्प्रेशन ) स्तन कैंसर के बढाव फैलाव की वजह बनता है .महज़ मिथ है यह मिथ्या धारणा है सामाजिक भ्रम जाल है .
(२)स्तन में गांठ ट्यूमर या स्वेलिंग का मिलना हमेशा ही ब्रेस्ट कैंसर का ही नतीजा होता है ?
यथार्थ :आकडे गवाह हैं दस में से आठ गांठें कैंसर कारी नहीं होतीं हैं बिनाइन या निरापद ही होती है .अलबत्ता यदि इस गांठ में बदलाव दिखलाई देतें हैं या फिर स्तन ऊतकों में कैसे भी बदलाव प्रगट होतें हैं तब अविलम्ब कैंसर के माहिर से परामर्श करना चाहिए .समय बहुत कीमती है .समय रहते रोगनिदान इलाज़ के प्रति आश्वस्त क में नहीं आते रता है .कबूतर की तरह खतरे के प्रति आँख मूंदने से खतरे का जोखिम वजन बढ़ता जाएगा .होनी टलेगी नहीं .बचाव में ही बचाव है .द्रुत रोगनिदान ही इलाज़ है .
(३)पुरुष ब्रेस्ट कैंसर की ज़द में नहीं आते ?
यथार्थ :बेशक मर्दों में इसकी दर कमतर रहती है लेकिन हर महीने जांच आशंका होने पर न कि जाए इसकी कोई वजह नहीं है .ध्यान रहे मर्दों में यह ज्यादा आक्रामक रुख इख्तियार करता है .तथा बहुत देर वसे पकड़ में आता है तब तक बहुत समय जाया हो चुका होता है इसलिए ऊतकीय बदलावों की आहट का फ़ौरन नोटिस लिया जाए अविलम्ब स्तन कैंसर के माहिर से मिला जाए .
(४)स्तन कैंसर एक छूत की बीमारी है संक्राम्य है .?
यथार्थ :महज़ मिथ है ऐसा मानना समझना .कैंसर आपके अपने शरीर में कोशाओं की बे -काबू अनियंत्रित बढ़वार (अन -कंट्रोल्ड सेल ग्रोथ )का नतीज़ा बनता है तब जब कोशिका मरना भूल जाती है .
(५)आम दुर्गन्धनाशी , पसीना हर "common deodorant ,antiperspirants '''का आमतौर पर किया जाने वाला स्तेमाल ब्रेस्ट कैंसर के खतरे के वजन को बढा देता है .?
यथार्थ :
इस आशय के कोई साक्ष्य आदिनांक नहीं जुटाए जा सकें हैं कि आम चलन में आ चुके पसीना या दुर्गन्ध रोधी स्प्रे ब्रेस्ट कैंसर के वजन को बढा देतें हैं .
(६)गर्भ निरोधी गोलियों का सेवन ब्रेस्ट कैंसर के जोखिम में इजाफा करता है ?
यथार्थ :इस मिथ के पीछे की मिथ्या धारणा इस तथ्य पर टिकी हुई है कि गर्भ निरोधी तमाम किस्म की गोलियां हारमोनों की खुराकें होतीं हैं जो मासिक स्राव का विनियमन करतीं हैं .
इस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्त्रोंन हारमोन ब्रेस्ट कैंसर की वजह नहीं बनतें हैं बेशक कुछ अध्ययनों में ऐसे संकेत ज़रूर मिले कि बाद के बरसों में इन गोलियों के स्तेमाल से स्तन कैंसर का ख़तरा थोड़ा सा बढ़ जाता है .लेकिन निश्चय पूर्वक ऐसा नहीं कहा जासकता है .अन्य अनेक अध्ययनों में ऐसा कुछ भी पुष्ट नहीं हुआ है .परीक्षण चल रहें हैं .आजमाइशें ज़ारी हैं . यथार्थ की .
मिथ :तमाम तरह के स्तन प्रत्यारोप(ब्रेस्ट इम्प्लान्ट्स ) आपके स्तन कैंसर के खतरे को बढा देतें हैं ?
यथार्थ :
अधुनातन शोध इस मिथ का खंडन करती है .स्तन प्रत्यारोप के बाद कैंसर के खतरे का वजन नहीं बढ़ता है सामान्य ख़तरा ही मौजूद रहता है औरों जैसा .अलबत्ता रोग निदान के लिए प्रयुक्त मानक मेमोग्राम्स के सही नतीजे इन महिलाओं पर नहीं निकलते हैं . ऊतकों के पूर्ण परीक्षण के लिए अतिरिक्त एक्स रे -विकिरण की ज़रुरत पड़ती है प्रत्यारोप लगवा चुकी महिलाओं के मामले में .
मिथ :आठ में से एक महिला को स्तन कैंसर होने का ख़तरा बना रहता है .?
यथार्थ :
ख़तरा आपकी बढती हुई उम्र के साथ बढ़ता है सभी आयु वर्ग की महिलाओं के लिए यकसां नहीं रहता है .तीसम तीस (थर्तीज़)के दौर में जहां स्तन कैंसर का ख़तरा २३३ में से एक महिला के लिए ही रहता है वहीँ ८५ साल की उम्र पर यह बढ़कर ८ में से १ के लिए मौजूद रहता है .
मिथ :पीन-स्तन (पीनास्तनी ) के बरक्स लघु स्त्नियों (स्माल ब्रेस्टिद) महिलाओं के लिए स्तन कैंसर के खतरे का वजन कमतर रहता है ?
यथार्थ :कोई सारांश (सार तत्व ,काम की बात नहीं है )इस मिथ्या या भ्रांत धारणा के पीछे .इसके विपरीत लघु स्तनों की जांच आसानी से संपन्न हो जाती है पीन स्तनों के बरक्स .अलबत्ता संस्कृत साहित्य में पीस्तानी का गायन है प्रशंशा है .जंघाए केले के तने सी ,स्तन घड़े से .
मेमोग्राम्स (बड़े स्तनों का एक्स रे )उतारने में चुम्बकीय अनुनाद प्रति -बिम्बंन (मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग )में भी यही दिक्कत पेश आती है .लेकिन सभी महिलाओं को ज़रूरी जांच के लिए निस्संकोच स्वेच्छा आगे आना ही चाहिए .
1013 ,luxmi Bai Ngr ,New -Delhi -110-023.
093 50 98 6685
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
ज्ञानभरी व ध्यानभरी पोस्ट।
शुभकामनाएं ||
रचो रंगोली लाभ-शुभ, जले दिवाली दीप |
माँ लक्ष्मी का आगमन, घर-आँगन रख लीप ||
घर-आँगन रख लीप, करो स्वागत तैयारी |
लेखक-कवि मजदूर, कृषक, नौकर व्यापारी |
नहीं खेलना ताश, नशे की छोडो टोली |
दो बच्चों का साथ, रचो मिलकर रंगोली ||
एक टिप्पणी भेजें