पोर्न का चस्का ही खा रहा है सेक्स को .
कामसूत्र का एक श्लोक है जिसकी व्याख्या कुछ यूं है :
काव्य का आनंद शाश्त्र को खा जाता है .संगीत काव्य को नष्ट कर देता है .संगीत ऊपर हो जाता है काव्य उसके नीचे दब खप जाता है .धुन ओर स्वर लहरी प्रमुख हो जाती है .संगीत को नारी विलास खा जाता है .आज के अधुनातन पश्चिमी कृत शैली के नृत्यों की मैथुनी मुद्राएं मैथुन के द्वार पर ही जाकर शांत होतीं हैं ,उसके बाद वही संगीत शोर लगने लगता है .और भूख नारी विलास का विलोप कर देती है .पेट में अन्न के दाने न हों तो नारी विलास भी चुक जाता है .यही भाव है वात्सायन के उस सारगर्भित श्लोक का .
जब देह दर्शन ज्यादा हो जाता है तब प्रेम चुक जाता है .उत्तेजना की अति होने पर उत्तेजना भी चुक जाती है .पैदा ही नहीं होती .
पोर्न सेवियों के साथ यही हुआ है .जिनको यह चस्का किशोरावस्था के बीच में ही लग गया था उन्हें यह पता ही नहीं है लोग हस्त मैथुन तब भी करते थे जब दृश्य उद्दीपन के तौर पर पोर्न नहीं था .तब फेंटेसी थी .कल्पना थी .प्रेम था .अब पोर्न का चस्का उन्हें उस मुकाम पर ले आया है जहां हकीकी ज़िन्दगी में यौन उत्तेजन ही नहीं होता .लिंगोथ्थान ही नहीं होता अब ,एक्सट्रीम मेटीरियल चाहिए .चस्का जो है उसका .
दो ताज़ा अध्ययन इस बात की पुष्टि करतें हैं अधिकाधिक इतालवी मर्द इस यौन उत्तेजन हीनता की गिरिफ्त में आचुकें हैं खासकर वह जो किशोरावस्था के दरमियानी सालों में ही पोर्न से चिपक गए थे .किताब
"Cupids Poisoned Arrow "की लेखिका मर्निया रोबिनसन ज़िक्र करतीं हैं अपनी किताब में ऐसे मर्दों का जिन्हें जल्दी ही वर्च्युअल देह दर्शन और देहसुख दृश्य भोग का चस्का लग गया था आज अपने यौन साथी के साथ निर-उत्तेजन हैं .देह में आंच ही नहीं सुलगती इनकी .लिगोथ्थान नदारद है .
तमाम नश्ल और संस्कृतियों ,अलग अलग शैक्षिक पृष्टभूमी के ,धर्म और विश्वासों के ,मूल्यों और मान्यताओं के ,भिन्न खान पानी वालों की युवा भीड़ में यदि कोई एक सूत्र आज सांझा है तो वह है पोर्न की लत .दृश्य रति .इनमे अफीमची भी है गांजा पीने वाले भी हैं शोट्स और पोट्स लेने वाले भी हैं .धुर दर्जे का दृश्य यौन उत्तेजन चाहिए इन्हें अब वरना बेड रूम में ये ठन्डे रहेंगें .
इनका यौन प्रदर्शन पोर्न खा गया है यह इस बात से पूरी तरह ना -वाकिफ हैं .मर्निया ने एक पर्चा 'साइकोलोजी टुडे 'में प्रकाशित किया है जिनमे ऐसी युवा भीड़ के बारे में खुलकर बतलाया गया है .एडिक्शन साइंस से ये मर्दुए पूरी तरह बे -खबर हैं .हार्ड पोर्न ने इन्हें तबाह कर दिया है इन्हें इसका इल्म ही नहींहै. किसी ने नहीं बतलाया इन्हें इसके निहितार्थ .
भौतिक परीक्षण के लिए ये पहले भी माहिरों के पास पहुंचे थे .खरे उतरे थे इन परीक्षणों में लेकिन "काम" के वक्त मैथुन के क्षणों में पता चलता है ये परफोर्मेंस एन्ग्जायती से ग्रस्त हैं ,यौन प्रदर्शन बे -चैनी को ये साक्षी भाव से निहार रहें हैं .
वजह शारीरिक (शरीर क्रिया वैज्ञानिक )ही तमाम लगतीं हैं मनोवैज्ञानिक नहीं .शुक्रिया अदा कीजिए २४ x ७ के एक माउस की क्लिक की दूरी पर ललचाते पोर्न भोग का .
उत्तेजन बेहद का इनके दिमाग के इनामी परिपथ (रिवार्ड सर्कित्री )को मात दे चुका है . अब इसके बिना रहा न जाए जिया भी न जाए इसके संग ,वाली, गति हो गई है इनकी .छोडो तो मरो .नहीं
छोडो तो. विद्रोवल सिंड्रोम ,लत छोड़ने के नतीजे भुगतो न छोडो तो इरेक्टाइल डिसफंक्शन ,परफोर्मेंस एन्ग्जायती .नामरदी सी .अनिद्रा रोग ,पैनिक अटेक ,हताशा ,ध्यान भंग ,चिडचिndडापन ,फ्ल्यू से लक्षण ,यौन संबंधों में अरुचि देखो .
समाधान :दिमाग की रीबूटिंग कीजिए .सामान्य डोपामिन सेंसिटिविटी चाहिए दिमाग को जबकि .यहाँ तो इस जैव रसायन की अत हो चुकी है .ज़नाब .सेक्स सिर्फ देह में नहीं होता .प्रेम से भी उपजता है .और देह का अतिरिक्त दर्शन प्रेम को ले डूबता है संबंधों को रोबोटिक बना देता है काग भगोड़े सा निर्जीव .
सुभग विश्वास की अमराइयों की छाँव तले ,
प्रीत की पगडंडियों के नाम अर्पित ज़िन्दगी .
लेकिन यहाँ तो सब चुक गया न प्रेम न भरोसा सिर्फ और सिर्फ , देह और देह ,अतिरिक्त देह दर्शन .नतीजा नहीं भुगतना पड़ेगा ?
सन्दर्भ -सामिग्री :Porn addiction leads to 'sexual anorexia'(Times Trends ,TOI,Oct .25 ,2011 ).
कोंग्रेस का भाग्य दिग्विजय सिंह की जेब में है .दुर्भाग्य यह है दिग्विजय सिंह की जेब फटी हुई है .उन्हें बोलने का अतिसार है .
दिग्विजय सिंह का यह वाक् -अतिसार लाइलाज है .
बचना चाहिए भावी माताओं को संशाधित पैकेज्ड फ़ूड से ,डिब्बा बंद खाद्य से .
हारवर्ड विश्वविद्यालय के रिसर्चरों ने पता लगाया है गर्भस्थ कन्या भ्रूण के मामलों में पैकेज्ड फ़ूड में रिसकर पहुंचा एक रसायन बिस्फिनोल ए व्यवहार सम्बन्धी दिक्कतें उनके तीन साला होते होते खड़ी कर देता है .बिस्फिनोल ए प्लास्टिक उत्पादों का एक आम घटक है .यह प्लास्टिक को कठोर बनाने के लिए काम में लिया जाता है .जिन डिब्बों और बोतलों का स्तेमाल खाद्य सामिग्री के भंडारण में किया जाता है उनका अंदरूनी स्तर इनर लाइनिंग ,चाक़ू और फोर्क्स के सिरों पर यह सत्यानाशी रसायन बिस्फिनोल ए मिला है जो लड़कियों में जेंडर बेनदर (लड़कियों का लड़कों की तरह व्यवहार ,लड़कों से कपडे पहन सजना धजना ,जेंडर भेद को धुंधला कर देता है .हारमोन केमिस्ट्री ,हारमोनों के सशाधन को प्रोसेसिंग को असर ग्रस्त करता है यह रसायन नतीज़न तीन साला होते होते लडकियां (कन्याएं )हाइपरएक्टिव तथा आक्रामक हो जातीं हैं .अध्ययन से यह भी पता चला है लडकों के मामले में ऐसा कुछ भी नहीं होता है .
अपनी रिसर्च के तहत यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ के साइंसदानों ने २४४ गर्भवती महिलाओं के शरीर में इस रसायन बिस्फिनोल ए के स्तरों का मिलान किया ,तुलना की रसायन के मौजूद स्तर की हरेक में .तीन नमूने इस एवज गर्भकाल में तथा एक प्रसव के वक्त लिया गया .इसकी जांच बिस्फिनोल के स्तर के लिए की गई .जब शिशु एक बरस के हो गए इनके शरीर में भी इसके स्तर की जांच की गई .अगले दो बरसों में भी ऐसी ही जांच की गई .इनके तीन साला होते ही इनकी माताओं से एक प्रश्नावली भरवाई गई .इस सर्वे में इन नौनिहालों के व्यवहार का ब्योरा जुटाया गया था .
पता चला लड़कियों के हाइपरएक्टिव ,अवसाद ग्रस्त ,आक्रामक ,बे -चैनी से ग्रस्त त्तथा अपने व्यवहार पर नियंतार्ण न होने की संभावना उन मामलों में ज्यादा थी जिनकी माताओं में गर्भकाल में बिस्फिनोल ए का स्तर अधिक मिला था .लेकिन लड़कों के मामले में ऐसे किसी अंतर सम्बन्ध की पुष्टि नहीं हुई थी .
शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011
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10 टिप्पणियां:
ये ही तो जीवन है, दोनों का मजा लो ना मुँह छिपाओ ना झूठ बोलो।
आप के ब्लॉग के पीछे लगता है कि किसी की बुरी गंदी वासना की नजर पड गयी है तभी तो कल नजर नहीं आ रहा था।
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* आप सबको दीवाली की रामराम !*
*~* भाईदूज की बधाई और मंगलकामनाएं !*~*
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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बड़ा ही गहरा अवलोकन, जीवन के सब क्षेत्रों को प्रभावित करता हुआ।
"बड़ा ही गहरा अवलोकन, जीवन के सब क्षेत्रों को प्रभावित करता हुआ।"
प्रवीण जी की टिप्पणी मेरी भी!साथ ही यह भी कि इन हाट और हार्ड विषयों का भी आप निर्वाह इतनी सहजता से कर जाते हैं की रस्क होता है:) मैं छू भर लूं तो कुहराम मच जाता है और आप मजे मजे से विषयारत हो जाते हैं ! :) मगर एक शिकायत है -
वीरू भाई, एक विषय ही लिया करें -नहीं तो रस भंग हो जाता है:(
आपको इतनी विषयारति क्यों है ? एक ही विषय काफी था इस बार और हर बार भी !
ji sahi kaha................tippne main risk hai
संस्कृति के रंगों से संसिक्त मार्ग दर्शक पोस्ट है अरविन्द भाई मिश्र की ,छोटी बना है पंडत .राम लीला की शुरुआत दिवाली केरंगों में और भी रंग भरेगी .आत्म रति भी एक रति है भाई साहब .अपने पास इफरात से है इसी का व्युत्पाद है विषयरति ,अलबत्ता दृश्य रतिक हम नहीं हैं . यकीन मानिए .
एक शैर अरविन्द जी की नजर -हम आह भी भरते हैं तो हो जातें हैं बदनाम ,वो कत्ल भी करतें हैं तो चर्चा नहीं होता .दरअसल आवारा लोगों की और कोई ध्यान भी तो नहीं देता ,संस्कृति जीवी होतें हैं बदनाम .लोग उन्हें संस्कृति ही समझने लगतें हैं .इमेजिज़ डाई हार्ड .यहाँ छवियाँ बनतीं हैं ब्लॉग जगत में .हम लोगों को पैसे बाँट कर अफवाह फैलाने को कहते थे अपने बारे में तब भी भाई साहब कोई ध्यान ही नहीं देता था .
कलमतोड़ दी आपने................................
.हम लोगों को पैसे बाँट कर अफवाह फैलाने को कहते थे अपने बारे में तब भी भाई साहब कोई ध्यान ही नहीं देता था .
सच्चाई के धरातल पर खड़ी पोस्ट !जिसे पढ़ेगें सब ..मानेगा कोई-कोई ?
लगे रहो ...वीरुभाई!
बड़ा ही गहरा अवलोकन!!!!
बहुत सुन्दर रचना|
आपको तथा आपके परिवार को दिवाली की शुभ कामनाएं!!!!
गहरा अवलोकन
संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
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