रविवार, 10 नवंबर 2013

इनके तो मस्तल पे लिखा होना चाहिए - मार्क्सवादी बौद्धिक गुलाम बोले तो MBG.

मार्क्सवादी बौद्धिक गुलाम जो अंग्रेज़ों के  मुखबिर थे क्रांतिकारियों की मुखबरी करते थे उनका कोई हक़ नहीं

बनता है वह भारतीय प्रतीकों की बात करें।वे स्टालिन की बात करें जो उनकी प्रेरणा के स्रोत रहें हैं।

भारत पर  चीन ने बाहर से हमला किया था ये अंदर से कर रहें हैं इनके तो  मस्तल पे लिखा  होना चाहिए -

मार्क्सवादी बौद्धिक गुलाम बोले तो MBG.

जहां तक कोंग्रेस पार्टी की बात है उसमें दो तरह के लोग थे -एक योरपीय समाजवाद के समर्थक जिनका

प्रतिनिधित्व नेहरू करते थे। दूसरे सरदार वल्लभ भाई पटेल जो क्रांतिकारियों और राष्ट्रवादियों के बीच की

कड़ी थे। ये वही सरदार पटेल थे जिन्होनें सोमनाथ मंदिर का पुनरोद्धार करवाया था। जिन्हें नेहरू ने उस दौर

का सबसे बड़ा  साम्प्रदायिक कहा था।

नेहरू तो खुद कहते थे मैं शिक्षा से ईसाई हूँ ,संस्कार से मुसलमान और इत्तेफाक से हिन्दू।

आर एस एस पे प्रतिबन्ध भी नेहरू ने ही लगवाया था जो राष्ट्रवादी धारा से बे हद चिढ़ते थे। सरदार पटेल पे

पूरी तरह दवाब बनाये रहे नेहरू। और नेहरूवियन राजनीति  का करिश्मा देखिये उन्हीं सरदार पटेल की

अंत्येष्टि पर जो उम्र में भी नेहरू से बड़े थे नेहरू नहीं पहुंचे।

भारत धर्मी समाज में यदि आज कोई सरदार पटेल की विरासत को अक्षुण्य बनाये रख सकता है तो वह

राष्ट्रवादी धारा ही रख सकती है मोदी जिसके प्रतीक बन चुकें हैं। और भारत का मुकुट सरदार पटेल को

पहनाना चाहते हैं।

बौद्धिक भकुओं को क्या हक़ हासिल है वह सरदार पटेल की विरासत और उन्हें प्रतीक बनाने की बात करें। वैसे

भी आज इन लेफ्टियों का कोई नाम लेवा तो है नहीं।

एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :

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तोते में जान आ गयी

लो क सं घ र्ष ! पर Randhir Singh Suman

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2 टिप्‍पणियां:

राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत सुन्दर विश्लेषण.
नई पोस्ट : फिर वो दिन

रविकर ने कहा…

सटीक हमला-
बोलती बंद-
आभार भाई जी-